सत्यवादी
प्रस्तुति: डॉ0 संतोष राय
आजकल प्रचार का जमाना है .और लोग अपना प्रचार करने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाते रहते हैं .इसीलिए कुछ मुस्लिम ब्लोगरों ने इस्लाम का प्रचार करने के लिए यही तरकीब अपना रखी है .सब जानते हैं कि अधिकांश हिन्दू संगठन और संस्थाए भी दोगली विचारधारा रखती हैं .और कुछ तथाकथित स्यंभू आचार्य ,और पंडित अपना धर्म बेच चुके है ,और इस्लाम का प्रचार कर रहे है .कुछ दिनों पूर्व " सनातन धर्म इस्लाम " (http://sanatan-dharm-islam.blogspot.com/)के नाम से एक ब्लॉग नजर में आया ,जिसमे किसी अहमद पंडित और किसी लक्ष्मी शंकर आचार्य के साथ कुछ अन्य हिन्दू लेखकों ने मिलकरयह सिद्ध करने का प्रयास किया है ,कि इस्लाम एक उदार धर्म है ,इसमें जबरदस्ती नहीं है .यह हरेक व्यक्ति को अपना धर्म पालन करने की अनुमति देता है .इस्लाम की नजर में सभी मनुष्य समान हैं .इस्लाम लोगों में सद्भावना फैलाना चाहता है .आदि ,इन्हीं बातों प्रमाणित करने के लिए इस ब्लॉग में कुरान शरीफ की कुछ आयतें और विडिओ भी दिए गए है .यहाँ पर ब्लॉग में किये गए दावों की दुर्भावना रहित समीक्षा दी जा रही है ,ताकि उन हिन्दू विद्वानों को सटीक उत्तर दिया जा सके .और सत्यासत्य का निर्णय हो सके .देखिये -
1 - इस्लाम का अर्थ शांति नहीं है .
अभी तक लोग इसी भ्रम में पड़े हुए हैं ,कि इस्लाम का अर्थ शांति है .और इसलिए इस्लाम शांति का धर्म है .लेकिन इस्लाम का वास्तविक अर्थ शांति नहीं बल्कि समर्पण है ."Islam" does not mean "peace" but "submission"जैसा कि कहा जाता है ("السلام" ولكن "تقديم"استسلاما )इस्लाम शब्द अरबी के तीन अक्षरों (root sīn-lām-mīm (SLM [ س ل م ) से बना है .और कुरान में कई जगह इस्लाम का अर्थ समर्पण ही किया गया है ,सूरा तौबा 9 :29 में इसका अर्थ-
To surrender -اسلام=Submission बताया है .इसी तरह सूरा आले इमरान 3 :83 में इसका अर्थ अल्लाह का धर्म और सूरा आले इमरान 3 :19 में भी वही अर्थ"islam is surrender to allah 's will استسلاما=To surrender " दिया है .इस्लाम का अर्थ शांति फैलाना कदापि नहीं है .इस शब्द का प्रयोग लोगों को धमकी देकर आत्मसमर्पण (surrender ) करने के लिए किया जाता रहा है ,जो इन हदीसों से सिद्ध होता है .
"रसूल ने यहूदियों से कहा कि यह सारी जमीन मुसलमानों की है .इसलिए तुम इसे खाली कर दो .और इस्लाम कबूल करो .और खुद को अल्लाह के रसूल के सामने समर्पित कर दो " बुखारी -जिल्द 9 किताब 92 हदीस 447
"एक औरत ने रसूल से पूछा कि इस्लाम क्या है ,तो रसूल ने कहा ,सिर्फ अल्लाह की इबादत करना , रोजा रखना ,जकात देना और खुद को अल्लाह की मर्जी के हवाले कर देना "बुखारी -जिल्द 1 किताब 1 हदीस 47
"रसूल ने Byzantine ईसाई शाशक "हरकल Harcaleius को सन्देश भेजा ,जिसमे कहा कि मैं अल्लाह का रसूल मुहम्मद तुम्हें चेतावनी देता हूँ ,कि अगर तुम अपनी जान बचाना चाहते हो ,तो समर्पण कर दो .और इस्लाम स्वीकार कर लो "बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 191
वह इस्लाम भक्त हिन्दू आचार्य बताएं कि क्या इस्लाम का अर्थ समर्पण करना नहीं है ? और इस्लाम के जन्म से लेकर मुसलमान इसी तरह से विश्व में शांति (अशांति ) नहीं फैला रहे हैं ?
2 -इस्लाम में जबरदस्ती नहीं है
इन इस्लाम परस्त पंडितों ने जकारिया नायक के सामने मुस्लिमों को खुश करने के लिए यह कह दिया कि इस्लाम में किसी प्रकार की जबरदस्ती नहीं है ,और सबको अपना धर्म पालने की आजादी है .इसके लिए इन लोगों ने कुरान की इन आयतों का हवाला दिया है -
अ -"दीन (इस्लाम ( में कोई जबरदस्ती नहीं है " सूरा -बकरा 2 :256
ब-"तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन और हमारे लिए हमारा दीन "सूरा -काफिरून 109 :6
बहुत कम लोग यह जानते हैं कि कुरान की सूरतें और आयते घटनाक्रम के अनुसार ( according revelation ) नहीं है .इसलिए इनका सही तात्पर्य और अर्थ समझने के लिए हदीसों का सहारा लेना जरुरी है .पहली आयत 2 :256 यहूदियों से सम्बंधित है .हदीस में कहा है ,
"अब्दुल्ला इब्न अब्बास ने कहा कि इस्लाम से पहले जिन औरतों के बच्चे नहीं होते थे ,या बार बार मर जाते थे ,वह यहूदियों के मंदिर में जाकर रब्बी के सामने यह मन्नत मांगती थीं ,कि अगर मुझे बच्चा होगा ,या मेरी संतान जीवित रहेगी तो उसे मैं यहूदी बनाकर तुम्हारे हवाले कर दूंगी . मक्का में ऐसे बहुत से बच्चे यहूदियों के पास थे . जब इस्लाम आया तो रसूल ने उन सभी बच्चों को यहूदियों से मुक्त कराया और कहा कि " दीन ( मान्यता ) में कोई जबरदस्ती नहीं है "
अबू दाउद-किताब 14 हदीस 2676
इसी तरह दूसरी आयत 109 :6 का जवाब उसी सूरा में मिल जाता है ,जिसमे कहा है कि "हे काफिरों मैं उसकी इबादत नहीं करूँगा ,तुम जिसकी इबादत करते हो
" सूरा -काफिरून 109 :4 .इसी बात को और स्पष्ट करने के लिए कुरान की इस आयत को पढ़िए जो कहती है कि,
"और जो लोग इस सच्चे दीन (इस्लाम )को अपना दीन नहीं मानते ,तुम उनसे लड़ो ,यहाँ तक वह अपमानित और विवश होकर जजिया न देने लगें "
सूरा- तौबा 9 :29
अब कोई कैसे मान सकता है ,कि इस्लाम बलपूर्वक नहीं फैलाया गया ,और सबको अपने धर्मों के पालन करने की अनुमति देता है ?
3 -इस्लाम वैश्विक भाईचारा चाहता है
वास्तव में इस्लाम " वैश्विकबंधुत्व "الأخوة العالمية" universal fraternity" नहीं बल्कि " मुस्लिम भाईचारे "" الاخوان المسلمين" muslim brotherhood की वकालत करता है . जो इन आयतों से स्पष्ट हो जाती है ,जो कहती हैं .
" ईमान वाले (मुस्लिम ) तो भाई भाई हैं "सूरा -अल हुजुरात 49 :10
यही बात इन हदीसों में में साफ तौर से कही गयी है ,कि मुसलमान दुसरे धर्म वालों के भाई या मित्र नहीं हो सकते .हदीस में है ,
"रसूल ने कहा कि इमान वालों को सिर्फ इमान वालों से ही दोस्ती करना चाहिए "अबू दाउद -किताब 41 हदीस 4815 और 4832
"रसूल ने कहा हे ईमान वालो तुम मेरे शत्रुओं ( गैर मुस्लिम ) को अपना भाई या दोस्त नहीं समझो " बुखारी -किताब 59 हदीस 572
कुरान में गैर मुस्लिमों से दोस्ती न करने का कारण भी दे दिया है और रसूल के स्वभाव के बारे में कहा है कि ,
"मुहम्मद अल्लाह के ऐसे रसूल हैं ,जो काफिरों के प्रति कठोर और अपने लोगों ( मुसलमानों ) के प्रति अत्यंत दयालु हैं "सूरा -अल फतह 48 :29
सब जानते हैं कि मुसलमान रसूल का अनुकरण करते हैं ,और जब रसूल ही गैर मुस्लिमों से दोस्ती और भाईचारे को बुरा बताते हों ,तो मुसलमानों क्या मजाल जो हिन्दुओं से दोस्ती कर सकें .यही कारण था कि जब केजरीवाल मौलाना अरशद मदनी के पास दोस्ती के लिए गए तो उनको भगा दिया गया .और अन्ना का आन्दोलन फेल हो गया .( जागरण 28 दिसंबर 2011 )याद रखिये गाँधी ने भी यही किया था .
4-विधर्मी भटके लोग और जानवर हैं
आप सोच रहे होंगे कि इस्लाम गैर मुस्लिमों से मित्रता करने का विरोधी क्यों है .क्योंकि इस्लाम कि नजर में सभी गैर मुस्लिम ,जैसे यहूदी ,ईसाई और हिन्दू भटके हुए लोग और कुत्ते ,बन्दर ,सूअर और चूहे की तरह निकृष्ट प्राणी है .यह कुरान की इन आयातों और हदीसों से सिद्ध होता है .जो कहती हैं कि-
"क्या कभी कोई अँधा और आँखों वाला व्यक्ति बराबर हो सकता है "सूरा -रअद 13 :16
" निश्चय ही जमीन पर चलने वाले सभी जीवों में अल्लाह कि नजर सबसे निकृष्ट जीव वह लोग हैं जो इस्लाम नहीं लाते"सूरा-अनफ़ाल 8 :55
"जो इस्लाम को छोड़कर अपनी ही इच्छा पर चलते हैं ,उनकी मिसाल कुते की तरह है .जो अपनी इच्छा पर चलता है "सूरा-आराफ 7 :176
"जब वह हमारी बात ( इस्लाम लाओ ) छोड़कर ढिढाई से वही पुराना काम करने लगे ,तो हमने (अल्लाह ) कहा जाओ तुम धिक्कारे हुए बन्दर बन जाओ "
सूरा -आराफ़ 7 :166
"और जब उन लोगों (यहूदी ) हमारे आदेश को नहीं माना तो हमने कहा तुम बन्दर बन जाओ "सूरा -बकरा 2 :65
"जिन्होंने अल्लाह के आलावा किसी और की इबादत की ,तो उन पर अल्लाह का प्रकोप हुआ .जिस से उन में से बन्दर और सूअर बना दिए गए .
सूरा -अल मायदा 5 :60 .यही बातें इन हदीसों में दी गयी है -
" अबू सईद ने कहा कि रसूल ने कहा "सभी यहूदी और ईसाई भटके हुए लोग है और जानवरों से बदतर है .यह एक दिन गर्त में जा गिरेंगे "
बुखारी -जिल्द 4 किताब 56 हदीस 662
" अबू हुरैरा ने कहा कि रसूल ने कहा यहूदी चूहों की तरह है ,जब इनको बकरी का दूध दिया जाता है ,तो पी लेते है .लेकिन जब ऊंटनी का दूध दिया जाता है तो इनको कोई स्वाद नहीं आता.यानि तौरेत पढ़ लेते हैं लेकिन कुरान से इकार करते है "सही मुस्लिम किताब 42 हदीस 7135 यही कारन है कि मुसलमान हिन्दू ,ईसाई और यहूदी जैसे जानवरों से दोस्ती नहीं करते हैं .
5-अल्लाह भटकाता रहे ,और
लगता है अल्लाह ने जिस दिन कुरान उतारी थी ,उसी दिन से पृथ्वी से काफिरों ( गैर मुस्लिम ) के सफाया की योजना बना रखी थी .कि वह उनको गुमराह करके उनसे गुनाह ,अपराध कराता रहे .फिर जहाँ भी इस्लामी हुकूमत हो जाये वहां जिहादी किसी न किसी बहाने उनको क़त्ल करते रहें .यह बात कुरान कि इन आयतों से स्पष्ट हो जाता है -
" यदि अल्लाह चाहता तो सबको एक गिरोह बना देता ( ताकि वह सत्कर्म करते ) लेकिन वह जिसको चाहे गुमराही में डाल देता है "
सूरा-अन नह्ल 16 :93
" वह लोग बिच में ही डावांडोल रहते हैं ,न इधर के और न उधर के . जिसको चाहे गुमराही में डाल देता है,और जिसे खुद अल्लाह भटका दे उनके लिए कोई रास्ता नहीं रहता "सूरा -अन निसा 4 :143
"अल्लाह जिसको चाहे उसको भटका देता है ,और जिसको चाहे सन्मार्ग दिखा देता है "सूरा-अल मुदस्सिर 74 :31
"अल्लाह ने जानबूझ कर उनको सन्मार्ग से भटका दिया है ,और उनके कानों और दिलों पर ठप्पा लगा दिया है "सूरा -अल जसिया 45 :23
अल्लाह के इस काम में शैतान भी मदद करते रहते हैं .जो इस आयत से पता चलता है .
"क्या तुम नहीं जानते कि हमने इन काफिरों पर अपने शैतानों को छोड़ रक्खा है ,जो इनको गुमराह करते रहते हैं "सूरा -मरियम 19 :83
काश वह हिन्दू पंडित जकारिया नायक से पूछते कि ,जब खुद अल्लाह ही शैतान के साथ मिलकर लोगों को गुमराह कराता रहता है ,तो असली अपराधी अल्लाह क्यों नहीं है .फिर गैर मुस्लिमों पर हमले क्यों किये जाते हैं ?जैसा कि आगे बताया गया है -
6-जिहादी मारते रहें
क्या इसी को इस्लामी कानून कहते हैं कि ,करे अल्लाह और भरें हिन्दू या गैर मुस्लिम .फिर भी जिहादी अल्लाह की जगह गैर मुस्लिमों पर जिहाद करते रहते हैं .जैसा कि कुरान की इन आयतों में लिखा है ,
"हे ईमान वालो तुम उन सभी काफिरों से लड़ते रहो जो तुम्हारे आस पास रहते हों "सूरा -तौबा 9 :123
"जो इमान वाले हैं ,वह हमेशा अल्लाह के लिए लड़ते रहते है "सूरा -निसा 4 :76
"जहाँ तक हो सके तुम हमेशा सेना और शक्ति तैयार रखो ,और काफिरों को भयभीत करते रहो "सूरा -अनफाल 8 :60
" हे नबी तुम काफिरों और मुनाफिकों के साथ सदा जिहाद करो और उन पर सख्ती करते रहो "सूरा -अत तहरिम 66 :9 .और सूरा तौबा 9 :73
"तुम उनसे इतना लड़ो की वह बाकि न रहें ,और सभी धर्म इस्लाम हो जाएँ "सूरा -अन्फाल 8 :39 और सूरा -बकरा 2 :193
"हे नबी तुम ईमान वालों को हमेशा लड़ाई करने पर उकसाते रहो "सूरा -अन्फाल 8 :63
अब पाठकों से विनम्र नवेदन है कि वह पहले ऊपर दिए गए "सनातन धर्म इस्लाम "में दिए गए हिन्दू पंडितों के तर्कों को पढ़े ,फिर निष्पक्ष होकर कुरान की दी गयी आयतों को पढ़ें . फिर अपना निर्णय टिपण्णी के रूप में देने की कृपा करें .अथवा ,प्रथम अनुच्छेद में जिस ब्लॉग का हवाला दिया गया है ,उसमे उन पंडितों और आचार्यों के पते दिए गए हैं ,जो इस्लाम के भक्त है .आप उन से सवाल कर सकते हैं .
http://www.thereligionofpeace.com/Pages/Quran-Hate.htm
No comments:
Post a Comment