अखिल भारत हिन्दू महासभा
49वां अधिवेशन पाटलिपुत्र-भाग:3
(दिनांक 24 अप्रैल,1965)
अध्यक्ष बैरिस्टर श्री नित्यनारायण बनर्जी का अध्यक्षीय भाषण
प्रस्तुति: पं0 बाबा नंद किशोर मिश्र
(7) हिंदू महासभा ने ही सर्वप्रथम कश्मीर राज्य के भारत में विलय की न्यायसंगत मांग प्रस्तुत की। किंतु ''एक निशान, एक विधान और एक प्रधान'' की घोषणा करने वाले हजारों हिंदू सभाई नेता और कार्यकर्ता कांग्रेस सरकार द्वारा दिल्ली में बंदी बनाये गये। हमें उस शेख अब्दुल्ला की कलई खोलने के पावन अपराध में सांप्रदायिक होने की उपाधि कांग्रेस द्वारा प्रदान की गई, जिसे पंडित नेहरू ने अपना छोटा भाई कहने में गौरव का अनुभव करते थे। हिंदू महासभा ने कहा था कि शेख अब्दुल्ला राष्ट्र भक्त नही अपितु पाकिस्तान के प्रति अनुरक्त है। घटनाक्रम ने यह सत्य सिद्ध कर दिया है कि शेख अब्दुल्ला के संबंध में हिंदू महासभा द्वारा किया गया विवेचन ही सही था। आज कांग्रेस सरकार को ही विवश होकर हिंदू महासभा द्वारा कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय की मांग को क्रियान्वित करना पड़ रहा है।
(8) जहां कांग्रेस राष्ट्र को अहिंसा के पाठ पढ़ाती रही वहां कम्युनिस्ट पार्टी ने भी देश के सैनिकीकरण का विरोध किया। किंतु 1962 ई0 में चीन के आक्रमण ने यह सिद्ध कर दिखाया कि हिंदू महासभा की राजनैतिक दूर दृष्टि ही स्वदेश रक्षा में समर्थ है। अहिंसा का डिम-डिम नाद करने वाली कांग्रेस सरकार को भी कठोर वास्तविकता के थपेड़ों ने विवश कर दिया कि चाहे विवश होकर भले ही क्यों न हो, उसे गणराज्य के पूर्ण राजस्व का तृतीयाआंश देश की सुरक्षार्थ व्यय करना पड़ रहा है।
अब सुरक्षा-योजना के अंतर्गत हमारी सेना की शक्ति 8,25,000 तक बढ़ाने का निश्चय किया गया है। एक बार लार्ड हार्डिंग पर बम फेंकने वाले अमर हुतात्मा खुदीराम बोस बोस की प्रतिमा पर पुष्पाहार चढ़ाना भी स्वर्गीय पंडित नेहरू ने अस्वीकार दिया था। इसका कारण इन्होने यह बताया था कि क्योंकि श्री बोस हिंसा पथ के अनुगामी थे, अत: मैं ऐसा नही कर सकता। किंतु उन्हीं नेहरू जी को कल्याणी में नेता जी की प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन समर्पित करने पड़े और अब तो श्री य0ब0 चव्हाण (पूर्व केन्द्रीय सुरक्षा मंत्री) सरीखे कांग्रेसी नेताओं को राष्ट्र की सुरक्षा के लिये फीरोजपुर की जन-सभा में 24 मार्च 1965 को लाहौर षणयंत्र केस के अमर हुतात्माओं स्व0 भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव के नाम पर संकल्प लेने का आह्वान करना पड़ा है।
इस भांति वास्तविकता आज कांग्रेस को हिंदू महासभा की इस विचारधारा के समीप ला रही है कि किसी भी मूल्य पर हमें अपने राष्ट्र को शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में सन्नद्ध करना होगा।
(9) हिंदू महासभा ''अखण्ड भारत'' में विश्वास करती है। हम भारत को एक और अविभाज्य मानते हैं हमारी मातृभूमि अपनी अखंड और अविभाज्य भौगोलिक सीमाओं को प्राप्त कर ही प्राणवान हो सकती है। वह एक संयुक्त आर्थिक इकाई है। इसका आध्यात्मिक अथवा भौतिक किसी भी प्रकार से किया गया विभाजन अप्राकृतिक व अनैतिक तो है ही साथ ही प्रकृति प्रदत्त सिद्धांतों के भी सर्वथा विपरीत है। किंतु जब तक कांग्रेस द्वारा कराया गया यह अप्राकृतिक विभाजन अस्तित्व में है, पाकिस्तान बना हुआ है, हिंदू महासभा यह मांग करती है कि धर्म के आधार पर किये गये मातृभूमि के विभाजन की स्वाभाविक परिणति स्वरूप जनसंख्या का विनिमय किया जाना अनिवार्य है।
जनसंख्या विनिमय से भारतीय उप महाद्वीप के दोनों देशों में विद्यमान सांप्रदायिक समस्या का ही स्थायी समाधान नहीं होगा अपितु अंततोगत्वा आर्थिक दबाव के फलस्वरूप पाकिस्तान भी धराधाम से मिट जायेगा। आज कांग्रेस एवं तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल अपने को सत्तारूढ़ करने की लालसा से मुस्लिम वोटों की प्राप्ति हेतु मुस्लिम तुष्टीकरण के लिये हिंदू महासभा की इस मांग का विरोध कर रहे हैं। वस्तुस्थिति यह है कि ये तथाकथित धर्म-धर्मनिरपेक्ष दल ही मुसलमानों को सांप्रदायिकता के नाम पर उभार कर उनमें सदैव साम्प्रदायिक चेतना को सजग रखते हैं और अपनी इस स्वार्थपूर्ण गतिविधि के फलस्वरूप राष्ट्र के लिये उत्पन्न होने वाले संकटों का दर्शन होकर भी नहीं हो पाता।
मातृभूमि के प्रति प्रेम नहीं, अपितु सत्ता की भूख के फलस्वरूप तुष्टीकरण की इस शरारतपूर्ण नीति के अवलंबन का ही यह परिणाम हुआ है कि पाकिस्तान से एक करोड़ हिंदू या तो निष्कासित कर दिये गये हैं अथवा उनका नरमेध हुआ है। इस नीति के फलस्वरूप 1952 से 1965 के मध्य की अवधि में भारत में भी मुसलमानों की जनसंख्या 2 करोड़ की वृद्धि हुयी है। असम, त्रिपुरा, प0 बंगाल और बिहार तथा राजस्थान आदि प्रदेशों में जिनकी सीमाएं पाकिस्तान से मिलती है, मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि का यह क्रम और भी अधिकि चिंताजनक है।
आज राजनैति दृष्टि से भी भारत में मुसलमान पहले की अपेक्षा शनै:शनै: अधिक संगठित होते जा रहे हैं। 1957 ई0 में केरल में मुस्लिम लीग को 4.7 प्रतिशत, 1960 ई0 में 4.9 प्रतिशत तथा 1965 ई0 के निर्वाचनों में 5.9 प्रतिशत मत प्राप्त हुये हैं और इस बार के निर्वाचन में(1965 के करीब निर्वाचन) तो उसनें 22 प्रत्याशी खड़े किये थे। राजनैतिक घटनाक्रम ने यह सिद्ध कर दिया है कि हिंदू महासभा की चेतावनी और भविष्य वाणियां सदैव सिद्ध हुई है जबकि कांग्रेस हिमालय सरीखी भूलें करने की अपनी परंपरा का अबाध गति से निर्वाह करती आ रही है।
कांग्रेस की उपेक्षा एवं स्वार्थपूर्ण नीति
आज जब कि पाकिस्तान असम के सिलहट जिले के कई स्थानों पर अपना अवैध अधिकार जमाये हुये हैं और कच्छ के दक्षिण स्थित कंजरकोट एवं पश्चिम बंगाल तथा असम के सीमांत क्षेत्रों पर अधिकार जमाता चला जा रहा है, तब भी कांग्रेस सरकार बेरूवाड़ी, चिलाहाटी तथा छित्रमहल के भारतीय क्षेत्रों को पाकिस्तान की भेंट चढ़ाने के किये कृतसंकल्प प्रतीत होते है।
इस तुष्टीकरण नीति का ही यह परिणाम है कि हमारे शासक रूस और अमेरिका, दोनों को ही संतुष्ट करने के लिये उनके स्वर में स्वर मिलाते दिखाई देते हैं और आज उन्हें भारत के सम्मान और संपत्ति का पराभव भी चिंतित नही बना पाता।
विभाजन से पूर्व तो कांग्रेस द्वारा मुसलमानों को संतुष्ट करने की नीति का ही अवलंबन किया जाता था, किंतु आज के कांग्रेसी शासक केवल हिंदुओं को छोड़कर धरा-धाम के प्रत्येक व्यक्ति को तुष्ट करने के लिये लालायित हैं। वे तो आज सदाचार के प्रमाण-पत्र लेने मात्र को ही जीवन का उद्देश्य मान बैठे हैं, जिससे की अंर्तराष्ट्रीय अन्नदाताओं के आगे झोली फैलाने पर उन्हें निराशा न पल्ले पड़े तथा दाता रूष्ट न हों।
अत: विद्यमान आपदाओं का एक मात्र निदान है कि वर्तमान शासन को हटा कर इसके स्थान पर एक सुदृढ़ सशक्त, वास्तविकतानुगामी तथा ईमानदार सरकार की स्थापना की जाये। किन्तु इस लक्ष्य की प्राप्ति लोकतांत्रिक साधनों से किस भांति हो सकेगी? इसका उपाय है बहुसंख्यक जनता को एक दल की पताका के नीचे संघबद्ध किया जाये और इस एकता का आधार होगी विचारधारा। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु वर्तमान राजनीति और राजनैतिक दलों का सही स्वरूप जनता जनार्दन के समक्ष प्रस्तुत करना होगा।
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