अनिल माधव दवे
प्रस्तुति- डॉ0 संतोष राय
प्रस्तुति- डॉ0 संतोष राय
‘भारत के हर कोने में आये दिन आतंकी हमले होते रहते है। सरकार ‘‘फिर नहीं होने देंगे’’ और असहाय समाज ‘‘हम क्या कर सकते है’’ के भाव से कुछ ही घंटों में सब कुछ भुलकर सामान्य जीवन बिताने लगता हैं। सैकड़ों की संख्या में सामान्य नागरिक, पुलिस और सैनिक मारे जाते है। इसका उत्तर क्या है ? उसी की खोज में मैं माउंट हर्जल, येरूशेलम में योनातन नेतनयाहू की समाधि पर आ गया हूं। यह वहीं युवा है जिसने आतंकवाद से निपटने की एक मुहिम ‘‘ऑपरेशन थंडरबोल्ट’’ में कमांड़ों टुकड़ी का नेतृत्व किया और वीर गति को प्राप्त हुआ। इजराइल के वर्तमान प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतानयाहू का वह बड़ा भाई था।
आतंकवाद को देखने की दृष्टि क्या हो ? उससे निपटने की तैयारी कैसी हो ?
देश के नीति निर्धारिकों, राजनेता, सुरक्षा बलों व समाज की भूमिका कैसी हो ? इन सब पर यह घटना प्रकाश डालती है।
27 जून 1976 को फ्रांस एयरवेज की उड़ान संख्या 139 जो तेल अवीव से एथेंस होते हुए पैरिस जा रही थी। 248 यात्री और 12 चालक दल एवं सहकर्मियों के साथ उसमें कुल 260 लोग थे। एथेंस से उड़ान भरते ही 4 आतंकवादी जिसमें से 2 फिलिस्तीनी व 2 जर्मन क्रांतिकारी सेल के सदस्य थे जिन्होंने जहाज पर कब्जा कर लिया। आतंकवादियों ने पहले विमान को लीबिया में 7 घंटे के लिए रोका व एक अत्यन्त बीमार गर्भवती महिला को उतारकर युगांडा के शहर एनटीबी आ गये।
ईदी अमीन उस समय युगांडा के राष्ट्रपति थे। उन्होंने आतकंवादियों को संरक्षण दिया और दुनिया के सामने यह चेहरा बनायें रखा कि मैं यात्रियों की भलाई चाहता हूं। एनटीबी में कम से कम 4 और आतंकवादी उस टोली में शामिल हो गये। नये शस्त्रों व संसाधनों के साथ उन्होंने बंधकों पर नजर रखने के लिए अपने आपको समूहों एवं पालियों में बांट लिया। एनटीबी में उन्हांेने यहूदियों को बाकी बंधकों से अलग कर दिया। 106 यहूदी बंधको को छोड़कर उन्होंने बाकी को रिहा करना शुरू कर दिया। चालक दल ने जब तक सब यात्री रिहा नहीं हो जाते व फ्रांस एयरवेज के विमान को सकुशल ले जाने की अनुमति नहीं मिल जाती तब तक बंधकों के साथ ही रहना स्वीकार किया।
यही से शुरू हुआ ऑपरेशन थंडरबोल्ट। विमान अपहरण की सूचना के साथ ही इजराइल के विभिन्न सूचना तंत्रों ने कार्य प्रारंभ कर दिया। एक शाखा पूरे घटनातंत्र पर सूक्ष्म निगाह रखने लगी। खुफिया तंत्रों ने बारीक से बारीक हर वह जानकारी जो ‘आवश्यक’ होने की संभावना लिए थी उसे इकट्ठा करना शुरू कर दिया। उदाहरण के लिए एनटीबी एयरपोर्ट की बिल्डिंग जिस ठेकेदार व कंपनी ने बनाई थी उन्हें गुप्त केन्द्र पर बुलाकर पूरे भवन का मॉडल बनाया गया और गोपनीयता बनी रहे उस उद्देश्य से उन्हें मेहमान बनाकर ऑपरेशन पूरा होने तक अपने पास रख लिया। ईदी अमीन को भी जितनी जानकारी एनटीबी एयरपोर्ट व उसके आस पास के भौगोलिक क्षेत्र की जानकारी जितनी नहीं होगी, उससे ज्यादा करीब-करीब पूरी सूचना युगांडा से 4000 किलो मीटर दूर इजराइल के विभिन्न केन्द्रों में जमा होने लगी। भवन में कुल खिड़की दरवाजे तो छोड़ कुल अलग-अलग स्थानों पर कितनी सीढ़ियां है और उसमें शौचालयों की संख्या कितनी है, जैसी बारीक से बारीक जानकारी उन्होंने अभियान प्रारंभ करने से पहले इकट्ठा कर ली।
एक शाखा राजनीतिक प्रयास करती रही। आतंकवादियों से चर्चा के दौर चलते रहे। मांगे कम ज्यादा होती रही। दूसरी तरफ सैन्य तैयारी चलती रही। इजराइल की विभिन्न गुप्तचर व सैन्य इकाईयां जैसे दृ मोसाद, शीन बैक (आंतरिक सुरक्षा), अमन (मिलिट्री इंटेलिजेन्स), इजराइल स्पेशल सेल ‘‘ऑपरेशन ओपेरा’’ और ऐस्पन मूविंग मैप जैसी विभिन्न शाखाओं ने अपना काम मुश्तैदी से किया। इनमे गजब का समन्वय व सूचनाओं का आदान-प्रदान हो रहा था। कोई एक दूसरे से बड़ा नहीं दिखना चाहता था। सबका एक ही लक्ष्य था बंधकों को छुड़ाना और आतंकवादियों को परास्त करना।
एनटीबी पर हमला कर यात्रियों को छुड़ाने के लिए लगभग 100 सैनिकों का दल बनाया गया। एनटीबी में किये जाने वाले सारे मैदानी ऑपरेशन का नेतृत्व ब्रिगेडियर जनरल शामरोन को सौंपा गया। 29 कमांडों जिनका कार्य आतंकवादियों को मारकर बंधकों को बिल्डिंग से निकाल विमान तक उसे लाने की जवाबदारी सौंपी गई इसका नेतृत्व लेफ्टिनेंट कर्नल योनातन नेतनयाहू को सौंपा गया। चिकित्सा, ईंधन, युगांडा सुरक्षा दल, एटीसी व वहां खड़े रशियन लडाकू विमान मिग-17 को बम से उड़ाने की जवाबदारी विभिन्न समूहों को सौंपी गई। एक दल ने तो वहां पर लगे रशियर राडॉर व मिग विमानों से विभिन्न पुर्जें निकालने का कार्य किया। जब चारों तरफ गोलियां चल रही थी तब यह एक दल पाने, पेंचिस व स्क्रू ड्रायवर जैसे साधनों से काम कर रहा था।
4 जुलाई 1976 को भारी भरकम हरक्यूलिस सी-130 विमानों से समुद्र से केवल 100 फिट ऊपर उड़ते हुए इजराइल से एनटीबी की यात्रा शुरू की। मिस्र, सूडान व सऊदी अरब की हवाई निगरानी तंत्र से बचने के लिए न तो उन्होंने इजराइल एटीसी से बात की ना ही किसी प्रकार का संवाद विमानों ने आपस में किया। सब आपस में लक्ष्य तक संवाद विहीन अवस्था में उड़ते रहे। पहला हरक्यूलिस विमान रात्री 11.00 बजे एनटीबी एयरपोर्ट पर उतरा। विमानों में शस्त्रों के अतिरिक्त इदी अमीन जैसा व्यक्ति और उसके द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली मर्सिडीज जैसी कार भी थी। कभी अचानक इदी दादा के एयरपोर्ट पर आ जाने या युगांडा सैनिकों को भ्रम में डालने के लिए उसका प्रयोग किया गया।
कुल 90 मिनिट यह ऑपरेशन चला। सारे आतंकवादी मारे गये। 4 बंधक क्रास फायरिंग में आ जाने से मरे। पूरे ऑपरेशन के लिए आये हुए दल में केवल एक ही सैनिक वीर गति को प्राप्त हुआ और वह था लेफ्टिनेंट कर्नल नेतनयाहू, साथ में 4 कमांड़ों भी घायल हुए।
सभी बंधकों (75 वर्षीय डोरा ब्लोच जो चिकित्सा हेतु एनटीबी हास्पिटल में भर्ती थी जिसे बाद में युगांडा सैनिकों ने मार दिया), चालक दल व सभी सैनिकों के साथ सफलता पूर्वक इजराइल वापिस आ गये। संक्षेप्त में लिखे इस घटनाक्रम का जितना विस्तृत अध्ययन करो तो आतंकवाद से निपटने के एक से एक सूत्र ध्यान में आते है।
संपूर्ण ऑपरेशन में राजनीतिक इच्छाशक्ति, गुप्तचर तंत्र का अभूतपूर्व काम हैं। संपूर्ण अभियान में काम करने वाले हर आदमी को अपने काम की स्पष्ट कल्पना थी और हर एक ने योग्यता के चरम पर जाकर उसे क्रियान्वित किया। आगे चलकर इस अभियान को योनातन की याद में ऑपरेशन योनाथन कहा गया। इस योजना में तकनीक व तंत्र का अद्भुत मिलाप था। कार्य पूरा होने पर कई सूचनायें सुरक्षा की दृष्टि से रोक ली गई।
आज आतंकवाद से निपटने के लिए उतने ही उच्च स्तर पर जाकर कार्य करने की आवश्यकता है। फिर न तो मुंबई-दिल्ली में धमाके होंगे ना ही सामान्यजन व सैनिक मारे जायेंगे।
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर गिरने के दिन आज 11 सितम्बर को मैं योनातन नेतनयाहू की समाधि पर हाथों में फूल लिए खड़ा हूं, इस विश्वास के साथ कि मेरे भारत में भी हम आतंकवाद से सफलतापूर्वक निपटेंगे और आमजन सुख व शांति का जीवन बीता सकेगा।
हे वीर तुम्हे कोटि-कोटि प्रणाम।
(लेखक प्रसिद्ध स्तंभकार है)
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