साम्प्रदायिक और लक्षित हिंसा अधिनियम,2011
‘प्रिवेंशन आफ कम्युनल एण्ड टारगेटिड वायलेंस बिल 2011’
के जरिए हिन्दुस्थान के हिन्दुओं का दमन सेकुलर षड़यन्त्र
प्रो. राकेश सिन्हा
प्रस्तुति- डॉ0 संतोष राय
बाल गंगाधर तिलक, महर्षि अरविन्द, लाला लाजपत राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती जैसी राष्ट्रवादी विभूतियों की बात तो दूर सोनिया पार्टी की की मुस्लिम तुष्टीकरण राजनीति अगर इसी रफ्तार से जारी रही तो समाजवादी आचार्य कृपलानी, मार्क्सवादी बी.टी. रणदिवे, सर्वोदय नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण जैसे लोगो पर भी साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाने, कथित अल्पसंख्यकों को आहत करने एवं दुष्प्रचार करने के आरोप लग सकते है। फिर न सिर्फ उनके लेखों एवं प्रकाशित भाषणों पर प्रतिबंध लग सकता है बल्कि उन सब पर मरणोपरांत मुकदमा भी चल सकता है। यह बात अतिशयोक्ति नहीं, एक कटु सत्य है। जे.पी. पर 1946 में मुस्लिम लीग ने सूखा/बाढ़ राहत के दौरान हिन्दुओं को मुस्लिमों के खिलाफ भड़काने का आरोप लगाया था। केरल में मार्क्सवादी सरकार द्वारा पचास के दशक में नई शिक्षा नीति लागू की गई थी। तब ईसाईयों ने उसका जमकर विरोध किया था। उस समय रणदिवे ने कैथोलिक समुदाय को प्रतिक्रियावाद का एजेंट कहकर उन पर विदेशी धन का दुरूपयोग करने का आरोप लगाया था। आचार्य कृपलानी के भाई का ईस्लाम में मत परिवर्तन कराया गया था। उसने अपने एक और भाई का अपहरण कर उसे जबरन ईस्लाम में मतान्तरित करा लिया था। तब कृपलानी ने ईस्लाम पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि यह व्यक्ति को क्रूर बनाकर उसमें मजहब के प्रति अंधानुराग पैदा कर देता है। ये सभी बातें आपराधिक कानून के अंतर्गत आ जाएंगी यदि इप्रिवेंशन आफ कम्युनल एंड टारगेटिड वायलेंस बिल-2011 कानून बन जाता है तो।
जहर बुझा मसौदा
इस विधेयक के मसौदे पर गौर करें तो ऊपर कही गई बातों से कहीं अधिक घातक षडयंत्र से पर्दा उठता है। विधेयक में कुल नौ अध्याय है और 138 धाराएं है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह विधेयक आखिरकार क्यों लाया जा रहा है और इसका उद्धेश्य क्या है, इस पर एक शब्द भी नहीं है। अर्थात कोई प्रस्तावना नहीं है। विधेयक के पहले अध्याय में अवधारणाओं को परिभाषित किया गया है। यही परिभाषा संविधान, समाज और शासन तंत्र को तार तार कर देती है। यह देश के नागरिकों के आपस में शत्रुतापूर्ण भाव रखने वाले दो वर्ग बना देती है। एक वर्ग में पांथिक और भाषायी अल्पसंख्यकों तथा अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को रखा गया है। इसे ग्रुप के द्वारा सम्बोधित किया गया है। अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए अलग आयोग और कानून हैं। उन्हें हर जगह ‘अल्पसंख्यक मंसूबों’ पर पर्दा डालने के लिए ढाल के रूप में उपयोग किया जा रहा है। इसके पहले भी सच्चर कमेटी की अनुशंसा पर अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा प्रास्तावित ‘समान अवसर आयोग विधेयक’ में भी कथित अल्पसंख्यकों के साथ अनुसूचित जातियों को रखा गया था। भाषायी अल्पसंख्यकों का वजूद क्या है, यह रंगनाथ मिश्र आयोग (राष्ट्रीय भाषायी और पांथिक अल्पसंख्यक आयोग) के मसौदे से जाहिर होता है। भाषायी अल्पसंख्यकों के अस्तित्व पर ही आयोग ने सवाल खड़ा कर दिया है। अतः यहाँ ग्रुप का तात्पर्य मूलतः मुस्लिम और ईसाई समुदायों से है। ग्रुप से बाहर के लोगो को अन्य माना गया है। भारत के नागरिकों को दो अलग और शत्रुतापूर्ण भाव रखने वाले वर्गों में विभाजित करने के बाद ‘साम्प्रदायिक दंगा’, ‘लैंगिक अपराध’, ‘विद्वेष पूर्ण प्रचार’ इत्यादि को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार, दो सम्प्रदायों के बीच हिंसक वारदात को दंगा माना जाएगा। इस विधेयक के अनुसार, सिर्फ अल्पसंख्यक यानि ग्रुप के सदस्यों की जान-माल की किसी भी प्रकार की क्षति ‘ साम्प्रदायिक और उद्धेश्यपूर्ण हिंसा’ मानी जाएगी। अगर हिन्दुओं की जान-माल की क्षति अल्पसंख्यकों सदस्यों द्वारा पहुंचायी जाती है तो यह ‘साम्प्रदायिक या उद्धेश्यपूर्ण हिंसा नहीं मानी जाएगी। (देखें, धारा 3 (3) ) अल्पसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति के व्यापार में बाधा पहुंचाने या जीविकोपार्जन में अड़चन पैदा करने या सार्वजनिक रूप से अपमान करने को ‘शत्रुतापूर्ण वातावरण बनाने वाला अपराध’ माना गया है। कोई हिन्दू मारा जाता है, घायल होता है, उसकी सम्पत्ति नष्ट हो जाती है, वह अपमानित होता है, उसका बहिष्कार होता है तो यह कानून उसे ‘पीडि़त’ नहीं मानेगा। ‘पीडि़त’ व्यक्ति इस मसौदे के अनुसार सिर्फ वही है जो इस ग्रुप का सदस्य है। अगर हिन्दू महिला अल्पसंख्यक वर्ग के किसी दुराचारी द्वारा बलात्कार का शिकार बनाई जाती है तो यह कानून उसे बलात्कार नहीं मानेगा। इस विधेयक (धारा 7) के अनुसार, अगर अल्पसंख्यक समुदाय की महिला के साथ कोई इस प्रकार की घटना ग्रुप के बाहर के व्यक्ति के द्वारा घटती है तो उसे लैंगिक अपराध के लिए दोषी माना जाएगा। अर्थात इमराना के श्वसुर द्वारा इमराना के साथ ‘बलात्कार’ करना इस मसौदे के अनुसार बलात्कार नहीं था।
न बहस, न विमर्श
इसमें ‘गवाह’ की नई परिभाषा रखी गई है। अल्पसंख्यकों के साथ घटी घटना की जानकारी रखने वाला ही ‘गवाह- होगा। इसके अनुसार बहुसंख्यकों के सम्बन्ध में जानकारी रखने वाला गवाह नहीं माना जाएगा। ‘दुष्प्रचार को दूसरे अध्याय की धारा-8 में इस तरह परिभाषित किया गया है कि इतिहास में से लाल-बाल-पाल जैसे चिंतकों का लिखा तो प्रतिबंधित हो ही जाएगा, पंथ निरपेक्षता पर वैकल्पिक बहस भी समाप्त हो जाएगी। आप बाईबिल, कुरान, मुस्लिम पर्सनल ला, मुस्लिम रीतियों-कुरीतियों, अल्पसंख्यक मांगों-आन्दोलनों-संगठनों पर टीका -टिप्पणी, विमर्श नहीं कर सकते हैं। कोई भी ‘दूसरा’ व्यक्ति (यानि हिन्दू) अगर बोलकर या लिखकर या विज्ञापन, सूचना या किसी भी तरह से ऐसा ‘कुछ’ भी करता है जिसे अल्पसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति या समुदाय के विरूद्ध भड़काऊ स्थिति पैदा करने वाला मान लिया जाता है तो उसे दुष्प्रचार/घृणा फैलाने का अपराधी माना जाएगा। इतिहासकार मुशीरूल हसन ने तो लाल-बाल-पाल पर अल्पसंख्यकों को स्वतंत्रता आन्दोलन में अलग-थलग करने का दोषी माना था। यानि अब लाल-बाल-पाल को प्रकाशित करने, पढ़ने और उद्धृत करने वाले जेल जाने के लिए तैयार रहें।
विधेयक में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। हिन्दू संगठनों को निशाना किस चतुराई से बनाया गया है, इसे देखिए। अगर कोई बहुसंख्यक समाज का व्यक्ति अल्पसंख्यक समाज के लिए उपरोक्त किन्हीं अपराधों का दोषी है तो उस संगठन के मुखिया पर भी आपराधिक कानून लगाया जाएगा जिससे उसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सम्बन्ध है। संगठन भले ही पंजीकृत हो या न हो। मान लीजिए, किसी गांव या शहर में कोई क्लब या रामलीला कमेटी है। उसका कोई सदस्य अल्पसंख्यक व्यक्ति पर छींटाकशी या उसका बहिष्कार करता है या व्यापार में परस्पर झगड़ा हो जाता है तो उस क्लब या रामलीला कमेटी के पदाधिकारियों पर आपराधिक मुकदमा चलेगा। व्यापार एवं रोजगार में यह विधेयक समुदायों के बीच अंतर निर्भरता को पूरी तरह समाप्त कर देगा, राष्ट्र के बीच एक अघोषित साम्प्रदायिक राष्ट्र को जन्म देगा।
हिन्दू ही होगा अपराधी
बचाव का बस यही रास्ता रह जाएगा कि बहुसंख्यक अल्पसंख्यकों के मन, मानसिकता, मस्तिष्क के अनुकूल व्यवहार करें एवं दासत्व के भाव से रहें। किसी अल्पसंख्यक ने बहुसंख्यक से रोजगार या किराए पर घर मांग लिया तो बिना योग्यता या अनुकूलता का विचार किए आप यदि हां नहीं कहेंगे तो आप आपराधिक कानून के शिकार होंगे। शिया-सुन्नी, ईसाई-मुस्लिम झगड़े पर यह कानून लागू नहीं होगा। उन्हें दंगा करने का कथित विशेषाधिकार दिया गया है। अनुसूचित जाति या जनजातियों को इस मसौदे में इसलिए रखा गया है कि अगर आप उन पर ईसाई मिशनरियों द्वारा सुनियोजित मतान्तरण या इस्लामिक पेट्रो डालर का उपयोग करने का आरोप लगाएंगें, सत्य उजागर करेंगे तो आप पर आपराधिक कानून लागू होगा। एक और बात गौरतलब है कि इस मसौदे में कोई आरोपित नहीं बल्कि हर आरोपित स्वतः अपराधी मान लिया गया है। उसे ही साबित करना पडेगा कि वह अपराधी नहीं है।
पुलिस एवं नौकरशाही को अल्पसंख्यकों का जैसे अन्तःवस्त्र बनाकर रख छोड़ा गया है। कहीं भी कोई कथित अल्पसंख्यकों के विरूद्ध दुष्प्रचार, घृणा फैलाने वाला माहौल बना, कोई पोस्टर या लेख प्रकाशित हुआ या अल्पसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति के जान-माल की कथित रूप से क्षति हुई तो पुलिस और प्रशासन को समान रूप से जिम्मेदार माना जाएगा। उन पर आपराधिक मुकदमा चलेगा। उनके लिए अपनी खाल बचाने का एक मात्र यही रास्ता होगा कि कही भी कोई अंदेशा हो या न हो, हिन्दुओं को गिरफ्तार करते रहें। हिन्दुओं के खिलाफ दुष्प्रचार, हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान या जान-माल की जितनी क्षति हो जाए पुलिस प्रशासन को परेशान होने की आवश्यकता नहीं होगी।
इस विधेयक ने दो प्रकार के आपराधिक कानून बनाए हैं। अब तक मुसलमानों के पास वैयक्तिक कानून था। अब अलग आपराधिक कानून भी उन्हें परोसा जा रहा है। इस विधेयक के मसौदे का लक्ष्य एक देश-दो विधान ही नहीं, बल्कि इसने तो देश के संघीय ढ़ांचे को भी नष्ट करने का इंतजाम किया है। किसी भी राज्य में साम्प्रदायिक स्थिति को ‘आंतरिक गड़बड़ी’ की संज्ञा देकर संविधान की धारा 355 के अन्तर्गत केन्द्र से हस्तक्षेप करने की अनिवार्य अपेक्षा की गई है। सामान्य विधि के आधार पर यह पूरे संविधान में फेरबदल की साजिश नहीं तो और क्या है ?
राष्ट्रीय स्तर पर एवं राज्यों में इसके लिए एक प्राधिकार बनाया गया है। इसमें सात सदस्यों में से चार का अल्पसंख्यक होना अनिवार्य है। उनके अन्तर्गत पुलिस, प्रशासन और न्यायपालिका का अधिकार होगा। आरोपित व्यक्ति चाहे पुलिस या प्रशासनिक अधिकारी या हिन्दू नागरिक हो, अपराधी मान लिया जाएगा। इसकी धारा 58, 73 एवं 74 में ‘पोटा’ जैसे प्रावधान हैं। हिन्दुओं की स्थिति नाजी जर्मनी के यहूदियों की तरह बना दी गई है। वे कथित अल्पसंख्यकों पर जुल्म के जिम्मेदार होंगे। यह विधेयक मानता है कि घृणा, दुष्प्रचार, दंगा करना, असंवेदनशीलता आदि हिन्दुओं का ‘चरित्र’ है। इसे ऐतिहासिक सच और समकालीन वास्तविकता मान लिया गया है। और इसी ‘चरित्र’ पर नियंत्रण करने के लिए ‘सोनिया सलाहकार परिषद’ ने यह विधेयक तैयार किया है। ‘भारत की पुलिस, प्रशासन एवं न्यायपालिका पूर्वाग्रहयुक्त एवं अल्पसंख्यक विरोधी’ है। इसे स्थापित किया गया है।
वही सेकुलर जमावड़ा
आखिर यह खुराफाती साजिश किसके दिमाग की उपज है ? सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने यह विधेयक तैयार किया है। इस संविधानेतर संस्था में तीस्ता सीतलवाड़, हर्ष मंदर, जान दयाल जैसे वे नाम हैं जो विदेशी पैसे, प्रेरणा एवं प्रभाव के आरोपों में गले-गले डूबे हैं। यह विधेयक मुस्लिम-ईसाई प्रवक्ताओं द्वारा मुस्लिम-ईसाईयों का हिन्दुओं को प्रताडि़त करने के लिए तैयार किया गया विष का पिटारा है जो खुलते ही समाज को साम्प्रदायिक तनाव एवं अराजक स्थिति में ला खड़ा करेगा। यह हिन्दुओं को खलनायक बनाकर इस देश में साम्प्रदायिक राज स्थापित करने की साजिश है जो भारत की एकता-अखंडता को चुनौती दे रही है। 1930 एवं 40 के दशक में मुस्लिम लीग ने तो विधान मंडलों में अल्पसंख्यक वीटो हासिल किया था। ‘सोनिया सलाहकार परिषद’ ने तो सड़क से लेकर संसद तक ‘अल्पसंख्यक वीटो’ को कानूनी जामा पहनाने का काम किया है। यह विधेयक अपने गर्भ में गृह युद्ध के भ्रूण पाल रहा है। यदि इसकी भ्रूण-हत्या नहीं की गई तो हिन्दू समाज नाजी जर्मनी का यहूदी समुदाय बनकर रह जाएगा। कुछ मसौदें ऐसे होते हैं जिन पर विमर्श होता है, कुछ पर विवाद, कुछ का उपहास होता है तो कुछ को कूड़ेदान में डाल दिया जाता है। स्वतंत्र भारत के इतिहास का यह पहला मसौदा है जिस पर ये सभी प्रतिक्रियाएं कम पड़ जाती हैं, इसे तो बस जला देने की आवश्यकता है।
Courtsey: http://www.kranti4people.com/
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