बी.एन. शर्मा
प्रस्तुति- डॉ0 संतोष राय
अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो आन्दोलन शुरू किया है ,उसका देश के हरेक कोने से समर्थन हो रहा है .और विश्व भर में अन्ना की तारीफ हो रही है .अन्ना ने यह भी कहा है कि यह आन्दोलन आगे भी चलता रहेगा .जब तक वह अपने उद्देश्य को प्राप्त नहीं पाते .
लेकिन सब जानते हैं कि यदि सही काम के लिए गलत लोगों का सहारा लिया जाता है तो .उसके उलटे ही परिणाम मिलते हैं .कुछ लोगों ने अज्ञानवश या श्रद्धावश अना को दूसरे महात्मा गाँधी की उपाधि दे डाली है .और अन्ना की टीम का भी कहना है कि वह मोहनदास करमचंद गाँधी की नीतियों का पालन करते हुए आन्दोलन आगे बढ़ाते रहेंगे .अगर ऐसा हुआ तो गाँधी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीतियों के चलते भ्रष्टाचार मिटेगा इस पर शंका हो सकती है ,लेकिन देश का दोबारा विभाजन हो जायेगा इसमे कोई शंका नहीं होना चाहिए .
इस बात को और स्पष्ट करने के लिए पहले हमें मो .क .गाँधी और अन्ना की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीतियों की कुछ तुलना करना होगी .जो संक्षित में दी जा रही है .
मो .क. गांधी ने क्या किया
1-जिन्ना को कायदे आजम की उपाधि दी
इस बात का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है कि किसने और कब मो क.गाँधी को "महात्मा "कि उपाधि दी थी .जबकि गुजरात के लोग उसे "बापू "कहते थे .जब मो .क गाँधी लन्दन गया था तो चर्चिल ने उसे (Bad Man ) कहा था और कहा था "I will eliminate this bad man "और उसे भ्रमित बुद्धि कहा था.
और बहुविकल्पी या सौदेबाज कहा था .लेकिन इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि जिस जनना को कोई नहीं जनता था .और जो शराब पिता था .नेहरू कि तरफ सिर्फ अंगरेजी बोलता था .जिसे मुसलमान फ़ासिक मानते थे ,उस मुहम्मद अली जिन्ना को मो .क गाँधी ने "कायदे आजम "की पदवी क्यों दी थी .जिसके कारण जिन्ना प्रसिद्ध हो गया .इसके बारे में मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपनी किताब "india wins freedom "में लिखा है कि जब जुलाई 1944 मुंबई में गाँधी जिन्ना से मिलने जा रहे थे तो एक मुस्लिम महिला "अमतुस्लामامة الاسلام "ने गाँधी को एक कागज दिया ,जिसमे लिखा था जब आप जिन्ना को संबोधित करें तो "Mister Jinna "की जगह "कायदे आजम जिन्ना "कहें .गाँधी ने यही किया .और यह बात सभी उर्दू अंगरेजी अखबारों में छप गयी .मुसलमानों को लगा जब गाँधी जैसा नेता जिन्ना को कायदे आजम कहता है ,तो जरुर जिन्ना बहुत बड़ा नेता होगा ( India wins freedom -पेज 111 .मौलाना अबुल कलाम आजाद )
2 -मुस्लिम प्रेम की झिक
गाँधी प्रणामी संप्रदाय को मानता था .इसके ग्रन्थ का नाम "कुलजम सागर "है .इसमे अधिकांश बातें इस्लाम से ली गयी हैं .इसी कारण गाँधी का झुकाव मुसलमानों की ओर अधिक था .गाँधी जिंदगी भर "इश्वर अल्लाह तेरो नाम " कहते कहते दुबिया से कूच कर गया ,लेकिन सिर्फ दो मुसलमान उसके साथ आये थे.खान अब्दुल गफ्फार खान (सरहदी गाँधी ) और मौलाना अबुल कलाम आजाद .जबकि लाखों मुसलमान गाँधी की जगह जिन्ना को पसंद करते थे .यह मो.क गाँधी की मुस्लिम परस्त नीति की सबसे बड़ी विफलता थी .सन 1926 को योगी अरविंद ने कहा था कि गाँधी को मुस्लिम नेताओ को जीतने की झक पागलपन की हद तक पहुँच गयी है .गाँधी को अपने पिछले एक हजार साल के इतिहास को देखना चाहिए ..सावरकर ने कहा था कि मुसलमान देश की नहीं इस्लाम के फायदे की बात सोचता है .
3 -गांधी हिटलर का प्रसंशक था
जो लोग मो क गाँधी के अहिंसक नीतियों की तारीफों के पुल बांधते है .उन्हें यह पढ़कर दिल का दौरा पद जायेगा कि गाँधी ने हिटलर को तिन पत्र भेजे थे.एक में हिटलर और उसकी नीतियों की तारीफ़ करते हुए उसे सब से बड़ा मानववादी बताया था .दुसरे में हिटलर से मिलने की इच्छा प्रकट की थी .और तीसरे में हिटलर की जीत की कमाना करते हुए उस से सहायता की मांग की थी .
देखिये -Complete वर्क of Gandhi -vol .70 -Page 20 -21
4 - खिलाफत मूवमेंट का सहयोग किया
लोग कितनी भी धर्मं निरपेक्षता की बातें करते रहें ,लेकिन मुसलमानों पर उसका असर नहीं होगा .क्योंकि इसलाम और राजसत्ता कभी अलग नहीं हो सकते .इस्लाम धर्म नहीं बल्कि अरबी साम्राज्यवाद है .इकबाल ने कहा है ,
"जलाले बादशाही हो ,या जम्हूरी तमाशा हो .अगर मजहब से खाली तो रह जाती है खाकानी " جلال بادشاہی ہو یا جمہوری تماشہ ہو،اگر مذہب سے خالی ہو تو ره جاتی ہے خاکانی "
यानि चाहे राजाशाही हो चाहे प्रजातंत्र हो .अगर इस्लाम नहीं हो तो उस से चंगेज खान जैसी हुकूमत अच्छी है.
मुहम्मद की मौत के बाद उसके खलीफा इस्लाम का विस्तार करते रहे .धीमे धीमे इस्लामी राज्यों की सीमाएं तुर्की से यूरोप से मिलने लगी .जिहादी अक्सर यूरोप के देशों में लूटमार करते थे .उन्नीसवीं सदी में तुर्की में "अब्दुल हमीदعبدالحميد"खलीफा था .मुसलमान उसे "अमीरुल मोमनीन لمواميرالمومنين"और "इमामुल मोमनीन امام المومنين"भी कहते थे .और उसी को अपना धार्मिक और राजनीतक नेता मानते थे .जहाँ भी मुस्लिम राज्य थे सब खलीफा के आधीन समझे जाते थे .मस्जिद में उसी के नाम से खुतबे पढ़े जाते थे .हरेक मुस्लिम शासक अपने आगे यह लकब जोड़ लेता था .
"सिकंदारुस्सानी यमीनुल खिलाफत नासिरुल मोमनीन سكندر الثاني يمين الخلافات ناصر المومنين" यानि दूसरा सिकंदर खलीफा का दायाँ हाथ मुसलमानों का मददगार "
तुर्की का खलीफा दुनिया को इसलाम के अधीन करना चाहता था जिसे Pan islamic या "वाहिदतु अल इस्लामियाوحدة الاسلاميه "कहा जाता है .जब यूरोप के लोग मुसलमानों से तंग हो गए तो सब ने मिलकर 13 अप्रेल 1909 को तुर्की के खलीफा को गद्दी से उतर दिया .और तुर्की साम्राज्य को कई टुकड़ों में बाँट दिया .भारत में मुसलमानों ने इसका विरोध किया ,जिसे खिलाफत तहरी कहा जाता है .यह आन्दोलन 1924 तक चला .भारत्त में इसकी शुरुआत अवध से हुई थी .बाद में यह मूवमेंट "तहरीके पाकिस्तान "में बदल गया .चूँकि अंगरेजों ने 1918 में तुर्की की राजधानी इस्ताम्बुल पर हमला किया था ,मुसलमान अंगरेजों से बदला लेना चाहते थे .
तभी गाँधी ने सोचा कि खिलाफतियों को साथ में ले लिया जाये तो आजादी जल्दी मिल सकती है .गाँधी एक अच्चा संत और मुर्ख नेता था .जब "विनायक दामोदर सावरकर (1883 -1966 ) को पता चला कि गाँधी मुसलमानों से सहायता लेने वाले हैं ,तो उन्होंने कहा ,यह खिलाफत मूवमेंट नहीं यह "खुराफात मूवमेंट" है याद रखिये अगर मुसलमानों की मदद लोगे तो वह उसका मेहनताना जरुर लेंगे .भले देश को आजाद करने में और दस साल लग जाएँ और अगर आप में इतनी ताकत नहीं है तो आप इंतजार करिए .लेकिन गाँधी नहीं माना.उसने इकबाल ,लियाकत अली खान ,जफर्ल्लाह खान ,चौधरी खलीकुज्जमा जैसे लीगियों से बातचीत शरू कर दी ..गाँधी ने मुसलमानों से जो मित्रता की थी उसका फल सारा देश भोग रहा है .
सावरकर ने खिन्न होकर कहा था "you put Hindus in the mouth of wolves "सावरकर दर्शन -पेज 187
इस बात का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है कि किसने और कब मो क.गाँधी को "महात्मा "कि उपाधि दी थी .जबकि गुजरात के लोग उसे "बापू "कहते थे .जब मो .क गाँधी लन्दन गया था तो चर्चिल ने उसे (Bad Man ) कहा था और कहा था "I will eliminate this bad man "और उसे भ्रमित बुद्धि कहा था.
और बहुविकल्पी या सौदेबाज कहा था .लेकिन इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि जिस जनना को कोई नहीं जनता था .और जो शराब पिता था .नेहरू कि तरफ सिर्फ अंगरेजी बोलता था .जिसे मुसलमान फ़ासिक मानते थे ,उस मुहम्मद अली जिन्ना को मो .क गाँधी ने "कायदे आजम "की पदवी क्यों दी थी .जिसके कारण जिन्ना प्रसिद्ध हो गया .इसके बारे में मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपनी किताब "india wins freedom "में लिखा है कि जब जुलाई 1944 मुंबई में गाँधी जिन्ना से मिलने जा रहे थे तो एक मुस्लिम महिला "अमतुस्लामامة الاسلام "ने गाँधी को एक कागज दिया ,जिसमे लिखा था जब आप जिन्ना को संबोधित करें तो "Mister Jinna "की जगह "कायदे आजम जिन्ना "कहें .गाँधी ने यही किया .और यह बात सभी उर्दू अंगरेजी अखबारों में छप गयी .मुसलमानों को लगा जब गाँधी जैसा नेता जिन्ना को कायदे आजम कहता है ,तो जरुर जिन्ना बहुत बड़ा नेता होगा ( India wins freedom -पेज 111 .मौलाना अबुल कलाम आजाद )
2 -मुस्लिम प्रेम की झिक
गाँधी प्रणामी संप्रदाय को मानता था .इसके ग्रन्थ का नाम "कुलजम सागर "है .इसमे अधिकांश बातें इस्लाम से ली गयी हैं .इसी कारण गाँधी का झुकाव मुसलमानों की ओर अधिक था .गाँधी जिंदगी भर "इश्वर अल्लाह तेरो नाम " कहते कहते दुबिया से कूच कर गया ,लेकिन सिर्फ दो मुसलमान उसके साथ आये थे.खान अब्दुल गफ्फार खान (सरहदी गाँधी ) और मौलाना अबुल कलाम आजाद .जबकि लाखों मुसलमान गाँधी की जगह जिन्ना को पसंद करते थे .यह मो.क गाँधी की मुस्लिम परस्त नीति की सबसे बड़ी विफलता थी .सन 1926 को योगी अरविंद ने कहा था कि गाँधी को मुस्लिम नेताओ को जीतने की झक पागलपन की हद तक पहुँच गयी है .गाँधी को अपने पिछले एक हजार साल के इतिहास को देखना चाहिए ..सावरकर ने कहा था कि मुसलमान देश की नहीं इस्लाम के फायदे की बात सोचता है .
3 -गांधी हिटलर का प्रसंशक था
जो लोग मो क गाँधी के अहिंसक नीतियों की तारीफों के पुल बांधते है .उन्हें यह पढ़कर दिल का दौरा पद जायेगा कि गाँधी ने हिटलर को तिन पत्र भेजे थे.एक में हिटलर और उसकी नीतियों की तारीफ़ करते हुए उसे सब से बड़ा मानववादी बताया था .दुसरे में हिटलर से मिलने की इच्छा प्रकट की थी .और तीसरे में हिटलर की जीत की कमाना करते हुए उस से सहायता की मांग की थी .
देखिये -Complete वर्क of Gandhi -vol .70 -Page 20 -21
4 - खिलाफत मूवमेंट का सहयोग किया
लोग कितनी भी धर्मं निरपेक्षता की बातें करते रहें ,लेकिन मुसलमानों पर उसका असर नहीं होगा .क्योंकि इसलाम और राजसत्ता कभी अलग नहीं हो सकते .इस्लाम धर्म नहीं बल्कि अरबी साम्राज्यवाद है .इकबाल ने कहा है ,
"जलाले बादशाही हो ,या जम्हूरी तमाशा हो .अगर मजहब से खाली तो रह जाती है खाकानी " جلال بادشاہی ہو یا جمہوری تماشہ ہو،اگر مذہب سے خالی ہو تو ره جاتی ہے خاکانی "
यानि चाहे राजाशाही हो चाहे प्रजातंत्र हो .अगर इस्लाम नहीं हो तो उस से चंगेज खान जैसी हुकूमत अच्छी है.
मुहम्मद की मौत के बाद उसके खलीफा इस्लाम का विस्तार करते रहे .धीमे धीमे इस्लामी राज्यों की सीमाएं तुर्की से यूरोप से मिलने लगी .जिहादी अक्सर यूरोप के देशों में लूटमार करते थे .उन्नीसवीं सदी में तुर्की में "अब्दुल हमीदعبدالحميد"खलीफा था .मुसलमान उसे "अमीरुल मोमनीन لمواميرالمومنين"और "इमामुल मोमनीन امام المومنين"भी कहते थे .और उसी को अपना धार्मिक और राजनीतक नेता मानते थे .जहाँ भी मुस्लिम राज्य थे सब खलीफा के आधीन समझे जाते थे .मस्जिद में उसी के नाम से खुतबे पढ़े जाते थे .हरेक मुस्लिम शासक अपने आगे यह लकब जोड़ लेता था .
"सिकंदारुस्सानी यमीनुल खिलाफत नासिरुल मोमनीन سكندر الثاني يمين الخلافات ناصر المومنين" यानि दूसरा सिकंदर खलीफा का दायाँ हाथ मुसलमानों का मददगार "
तुर्की का खलीफा दुनिया को इसलाम के अधीन करना चाहता था जिसे Pan islamic या "वाहिदतु अल इस्लामियाوحدة الاسلاميه "कहा जाता है .जब यूरोप के लोग मुसलमानों से तंग हो गए तो सब ने मिलकर 13 अप्रेल 1909 को तुर्की के खलीफा को गद्दी से उतर दिया .और तुर्की साम्राज्य को कई टुकड़ों में बाँट दिया .भारत में मुसलमानों ने इसका विरोध किया ,जिसे खिलाफत तहरी कहा जाता है .यह आन्दोलन 1924 तक चला .भारत्त में इसकी शुरुआत अवध से हुई थी .बाद में यह मूवमेंट "तहरीके पाकिस्तान "में बदल गया .चूँकि अंगरेजों ने 1918 में तुर्की की राजधानी इस्ताम्बुल पर हमला किया था ,मुसलमान अंगरेजों से बदला लेना चाहते थे .
तभी गाँधी ने सोचा कि खिलाफतियों को साथ में ले लिया जाये तो आजादी जल्दी मिल सकती है .गाँधी एक अच्चा संत और मुर्ख नेता था .जब "विनायक दामोदर सावरकर (1883 -1966 ) को पता चला कि गाँधी मुसलमानों से सहायता लेने वाले हैं ,तो उन्होंने कहा ,यह खिलाफत मूवमेंट नहीं यह "खुराफात मूवमेंट" है याद रखिये अगर मुसलमानों की मदद लोगे तो वह उसका मेहनताना जरुर लेंगे .भले देश को आजाद करने में और दस साल लग जाएँ और अगर आप में इतनी ताकत नहीं है तो आप इंतजार करिए .लेकिन गाँधी नहीं माना.उसने इकबाल ,लियाकत अली खान ,जफर्ल्लाह खान ,चौधरी खलीकुज्जमा जैसे लीगियों से बातचीत शरू कर दी ..गाँधी ने मुसलमानों से जो मित्रता की थी उसका फल सारा देश भोग रहा है .
सावरकर ने खिन्न होकर कहा था "you put Hindus in the mouth of wolves "सावरकर दर्शन -पेज 187
अन्ना हजारे ने क्या किया
इस बात में कोई शंका नहीं है कि अन्ना हजारे का चरित्र और जीवन पूरी तरह निष्कलंक है .लेकिन उन्होंने कट्टर मुसलमानों को खुश करने के लिए .और मो.क गाँधी की अंधी नक़ल करने के लिए जिस तरह से इमाम बुखारी से समझौता किया .और अपनी कमजोरी का प्रदर्शन किया है .,उस से कट्टर मुसलमानों के हौसले बढ़ गए है बुखारी के दवाब में आकर अन्ना की टीम ने भ्रष्टाचार की जगह इस्लाम की अस्मिता को मुख्य मुद्दा बना दिया है .यह तो अच्छा हुआ कि अग्निवेश जैसे भगवाधारी मुस्लिम परस्त ( crypto muslim ) की पोल जल्दी खुल गयी .वर्ना सारा किया धरा चौपट हो जाता
.अगर अन्ना और उनकी टीम सूरदास के इस पद को पढ़े तो शायद कुछ समझ में आएगा .
"छोड़ मन हरि विमुखन को संग ,
जिनके संग कुबुद्धि उपजै परत ध्यान में भंग ,
कागा कहा कपूर खवायें ,मरकट भूषण अंग ,
खर को कहा अरगजा लेपन ,स्वान नहाये गंग ,
पाहन पतित बाण नहीं छेदे ,रीतो करत निखंग .
तात्पर्य यह है कि दुष्ट और मुसलमान कभी नहीं सुधर सकते .उनसे दूर रहना ही उचित है .
अन्ना ने जो भूलें की हैं वह इस प्रकार हैं -
यदि अन्ना और उसकी टीम यह सोचती है कि मुसलमानों की सहायता लेकर भ्रष्टाचार को समाप्त किया जा सकता है ,तो उनकी बहुत बड़ी भूल है . जबकि मुसलमान और भ्रष्टाचार एक ही सीके के दो पहलू है .सांसदों को खरीदने वाला सुहैल हिन्दुस्तानी कौन है ? अजमल कसाब करोड़ों का खर्च .इमामों का मुफ्त का वेतन .हाजियों को यात्रा में सबसीडी ,सरकारी खर्चे से इफ्तार पार्टियाँ देना क्या यह सब भ्रष्टाचार नहीं है ? जो लोग मुसलमानों को देशभक्त समझते हैं वह इसे जरुर पढ़ें -
1 -मुसलमानों के बारे में अम्बेडकर के विचार
डॉ. भीमराव अंबेडकर 1946 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ में दो उदाहरण देते हैं। पहला उदाहरण-ख्वाजा हसन निज़ामी ने 1928 में हिन्दू-मुस्लिम संबंधों पर जारी एक घोषणापत्र में ऐलान किया कि मुसलमान हिन्दुओं से अलग हैं। वे हिन्दुओं से नहीं मिल सकते। मुसलमानों ने कई जंगों में खून बहाने के बाद हिन्दुस्तान पर फतह हासिल की थी और अंगरेजों को हिन्दुस्तान की हुकूमत मुसलमानों से मिली थी। मुसलमान एक अलहदा कौम हैं और वे अकेले ही हिन्दुस्तान के मालिक हैं। वे अपनी अलग पहचान कभी भी खत्म नहीं करेंगे। उन्होंने हिन्दुस्तान पर सैकड़ों साल राज किया है। इस लिए मुल्क पर उनका निॢववाद और नैसॢगक हक है। दुनिया में हिन्दू एक छोटा समुदाय हैं। वे गान्धी में आस्था रखते हैं और गाय को पूजते हैं। हिन्दू स्व-शासन में यकीन नहीं रखते। वे आपस में ही लड़ते झगड़ते रहे हैं। वे किस क्षमता के बूते हुकूमत कर सकते हैं? मुसलमानों ने हुकूमत की थी, और मुसलमान ही हुकूमत करेंगे?...(टाइम्स ऑफ इंडिया 14 मार्च, 1928)
He said in 1940: "According to Muslim Cannon Law, the world is divided into Dar-ul-Islam (Abode of Islam) and Dar-ul-Harb (Abode of War). A country is Dar-ul-Islam when it is ruled by Muslims. A country is Dar-ul-Harb when Muslims only reside in it but are not rulers of it.According to Ambedkar, Islam effects a neat and ruthless division of the world into Dar-ul-Islam (Abode of Islam) and Dar-ul-Harb (Abode of War). Any nation or society, which is not ruled and controlled by Muslims is Dar-ul-Harb and it is incumbent on a good Muslim to wage war against it.
2 -अन्ना टीम की बड़ी गलती
इसी विषय पर दिनांक 2 सितम्बर 2011 वरिष्ठ स्तंभकार श्री अजय .एस .शंकर ने एक लेख दैनिक जागरण में प्रकाशित किया था .जिसे उनका आभार प्रकट करते हुए दिया जा रहा है .
"दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम बुखारी ने अन्ना के आंदोलन को इस्लाम विरोधी बताया, क्योंकि इसमें 'वंदे मातरम' और 'भारत माता की जय' जैसे नारे लग रहे थे। उन्होंने मुसलमानों को अन्ना के आंदोलन से दूर रहने को कहा। ऐसी बात वह पहले दौर में भी कह चुके हैं, जिसके बाद अन्ना ने अपने मंच से भारत माता वाला चित्र हटा दिया था। दूसरी बार इस बयान के बाद अन्ना के सहयोगी अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी बुखारी से मिल कर उन्हें स्पष्टीकरण देने गए। इन प्रयत्नों में ठीक वही गलती है जो गांधीजी ने बार-बार करते हुए देश को विभाजन तक पहुंचा दिया। जब मुस्लिम जनता समेत पूरा देश स्वत: अन्ना को समर्थन दे रहा है तब एक कट्टर इस्लामी नेता को संतुष्ट करने के लिए उससे मिलने जाना नि:संदेह एक गलत कदम था। अन्ना का आंदोलन अभी लंबा चलने वाला है। यदि इस्लामी आपत्तियों पर यही रुख रहा तो आगे क्या होगा, इसका अनुमान कठिन नहीं। बुखारी कई मांगें रखेंगे, जिन्हें कमोबेश मानने का प्रयत्न किया जाएगा। इससे बुखारी साहब का महत्व बढ़ेगा, फिर वह कुछ और चाहेंगे।
बाबासाहब अंबेडकर ने बिलकुल सटीक कहा था कि मुस्लिम नेताओं की मांगें हनुमान जी की पूंछ की तरह बढ़ती जाती हैं। अन्ना, बेदी और केजरीवाल या तो उस त्रासद इतिहास से अनभिज्ञ हैं या अपनी लोकप्रियता और भलमनसाहत पर उन्हें अतिवादी विश्वास है, किंतु यह एक घातक मृग-मरीचिका है। बुखारी का पूरा बयान ध्यान से देखें। वह अन्ना के आंदोलन को समर्थन देने के लिए और शतरें के साथ-साथ आंदोलन में सांप्रदायिकता के सवाल को भी जोड़ने की मांग कर रहे हैं। इसी से स्पष्ट है कि उन्हें भ्रष्टाचार के विरोध में चल रहे आंदोलन को समर्थन देने की नहीं, बल्कि आंदोलन को इस्लामी बनाने, मोड़ने की फिक्र है। यदि इतने खुले संकेत के बाद भी अन्ना और केजरीवाल गांधीजी वाली दुराशा में चले जाएं तो खुदा खैर करे! जहां एक जिद्दी, कठोर, विजातीय किस्म की राजनीति की बिसात बिछी है वहां ऐसे नेता ज्ञान-चर्चा करने जाते हैं। मानो मौलाना को कोई गलतफहमी हो गई है, जो शुद्ध हृदय के समझाने से दूर हो जाएगी। जहां गांधीजी जैसे सत्य-सेवा-निष्ठ सज्जन विफल हुए वहां फिर वही रास्ता अपनाना दोहरी भयंकर भूल है। कहने का अर्थ यह नहीं कि मुस्लिम जनता की परवाह नहीं करनी चाहिए, बल्कि यह कि मुस्लिम जनता और उनके राजनीतिक नेताओं में भेद करना जरूरी है। मुस्लिम जनता तो अपने आप में हिंदू जनता की तरह ही है। अपने अनुभव और अवलोकन से आश्वस्त होकर वह भी अच्छे और सच्चाई भरे लोगों और प्रयासों को समर्थन देती है। बशर्ते उसके नेता इसमें बाधा न डालें। रामलीला मैदान और देश भर में मुस्लिम भी अन्ना के पक्ष में बोलते रहे, किंतु मुस्लिम नेता दूसरी चीज होते हैं। वे हर प्रसंग को इस्लामी तान पर खींचने की जिद करते हैं और इसके लिए कोई दांव लगाने से नहीं चूकते। हालांकि बहुतेरे जानकार इसे समझ कर भी कहते नहीं। उलटे दुराशा में खुशामद और तुष्टीकरण के उसी मार्ग पर जा गिरते हैं जिस मार्ग पर सैकड़ों भले-सच्चे नेता, समाजसेवी और रचनाकार राह भटक चुके हैं। इस्लामी नेता उन्हें समर्थन के सपने दिखाते और राह से भटकाते हुए अंत में कहीं का नहीं छोड़ते। बुखारी ने वही चारा डाला था और अन्ना की टीम ने कांटा पकड़ भी लिया। आखिर अन्ना टीम ने देश भर के मुस्लिम प्रतिनिधियों में ठीक बुखारी जैसे इस्लामवादी राजनीतिक को महत्व देकर और क्या किया? वह भी तब जबकि मुस्लिम स्वत: उनके आंदोलन को समर्थन दे ही रहे थे। एक बार बुखारी को महत्व देकर अब वे उनकी क्रमिक मांगें सुनने, मानने से बच नहीं सकते, क्योंकि ऐसा करते ही मुस्लिमों की 'उपेक्षा' का आरोप उन पर लगाया जाएगा। बुखारी जैसे नेताओं की मांगे दुनिया पर इस्लामी राज के पहले कभी खत्म नहीं हो सकतीं यही उनका मूलभूत मतवाद है। दुनिया भर के इस्लामी नेताओं, बुद्धिजीवियों की सारी बातें, शिकायतें, मांगें, दलीलें आदि इकट्ठी कर के कभी भी देख लें। मूल मतवाद बिलकुल स्पष्ट हो जाएगा। रामलीला मैदान में वंदे मातरम के नारे लगने के कारण बुखारी साहब भ्रष्टाचार विरोधी राष्ट्रीय आंदोलन से नहीं जुड़ना चाहते, यह कपटी दलील है। सच तो यह है कि सामान्य मुस्लिम भारत माता की जय और वंदे मातरम सुनते हुए ही इसमें आ रहे थे। वे इसे सहजता से लेते हैं कि हिंदुओं से भरे देश में किसी भी व्यापक आंदोलन की भाषा, प्रतीक और भाव-भूमि हिंदू होगी ही जैसे किसी मुस्लिम देश में मुस्लिम प्रतीकों और ईसाई देश में ईसाई प्रतीकों के सहारे व्यक्त होगी। लेकिन इसी से वह किसी अन्य धर्मावलंबी के विरुद्ध नहीं हो जाती। यह स्वत: स्पष्ट बात रामलीला मैदान जाने वाली मुस्लिम जनता समझ रही थी। तब क्या बुखारी नहीं समझ रहे थे? वह बिलकुल समझ रहे थे, किंतु यदि न समझने की भंगिमा बनाने से उनकी राजनीति खरी होती है, तो दांव लगाने में हर्ज क्या। तब उनकी इस राजनीति का उपाय क्या है? उपाय वही है जो स्वत: हो रहा था। राष्ट्रहित के काम में लगे रहना, बिना किसी नेता की चिंता किए लगे रहना। यदि काम सही होगा तो हर वर्ग के लोग स्वयं आएंगे। अलग से किसी को संतुष्ट करने के प्रयास का मतलब है, अनावश्यक भटकाव।
1926 में श्रीअरविंद ने कहा था कि गांधीजी ने मुस्लिम नेताओं को जीतने की अपनी चाह को एक 'झख' बना कर बहुत बुरा किया। पिछले सौ साल के कटु अनुभव को देख कर भी अन्ना की टीम को फिर वही भूल करने से बचना चाहिए। उन्हें सामान्य मुस्लिम जनता के विवेक पर भरोसा करना चाहिए और उनकी ठेकेदारी करने वालों को महत्व नहीं देना चाहिए। यदि वे देश-हित का काम अडिग होकर करते रहेंगे तो इस्लामवादियों, मिशनरियों की आपत्तियां समय के साथ अपने आप बेपर्दा हो जाएंगी। "
मेरा केवल यही कहना है कि अभी चेतने का समय है .अन्ना को चाहिए अपने दम से आन्दोलन को चलाते रहें . मो. क गाँधी की नीतियों को न अपनाएं .सफलता अवश्य मिलेगी . सब जानते है कि-
"पय पानं भुजंगानाम केवलं विष वर्धनम "
http://www.bhandafodu.blogspot.com/
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