Thursday, September 22, 2011

मुसलमानों का महाझूठ :मुहम्मद अनपढ़ था !!


   बी.एन. शर्मा


प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय 


मुसलमान विश्व के सभी दूसरे धर्मग्रंथों को मानव रचित और निकृष्ट मानते हैं .और सिर्फ कुरान को अल्लाह की किताब बताकर उसे सर्वोपरि और सर्वश्रेष्ठ धर्म ग्रन्थ कहते है .इसके पीछे वह यह तर्क देते हैं कि मुहम्मद तो बिलकुल अनपढ़ थे .वह कुरान की रचना कैसे कर सकते थे .इसलिए कुरान अल्लाह की किताब है .जो अल्लाह ने फरिश्तों के द्वारा मुहम्मद के पास भेजी थी .
महाझूठ की शुरुआत सन 623 से हुई थी .जब मुहम्मद ने रोम के सम्राट "हरकल "Herclius "को एक पत्र भिजवा कर इस्लाम कबूल करने को कहा था .जब हरकल ने इस्लाम . और उसके नबी और इस्लाम की किताब के बारे में सवाल किया ,तो मुहम्मद के दूतों ने कुरान की सूर रूम की आयतें सुना दीं.जिसमे लिखा था रोम बर्बाद हो गया .यह सुनते ही हरकल बोला यह बेतुकी बात अल्लाह नहीं हो सकती .यह मुहम्मद ने लिखी है .तब मुसलमानों ने यह कहा कि मुहम्मद तो बिलकुल अनपढ़ है .तब से मुसलमान इसी झूठ के सहारे लोगों को धोखा दे रहे है .कि मुहम्मद अनपढ़ थे ,और कुरान अल्लाह की किताब है .
पिछले सैकड़ों साल से मुसलमान यही झूठ इस तरह से कहते आये हैं ,कि लोग इसे सच समझने लगे हैं . मुसलमान बड़े गर्व से मुहम्मद को अनपढ़ (unliterated ) और) अरबी में उम्मी ) भी कहते हैं .लेकिन कहावत है कि सभी लोगों को सदा के किये मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है ,
आज मुसलमानों के इस महा झूठ का भंडा फोड़ा जा रहा है .
1 -उम्मी कौन थे ?
मुसलमान बड़ी चालाकी से "उम्मी " शब्द का अर्थ अनपढ़ ,निरक्षर ,अशिक्षित करते है .और उम्मी शब्द का प्रयोग ऐसे व्यक्ति के लिए करते हैं ,जो न तो पढ़ सकता हो और न लिख सकता हो .जबकि सच्चाई यह है कि "उम्मी اُمّي" मक्का के रहने वालों को कहा जाता था .कुरान में  एक ही बार इसके बारे में इस तरह लिखा है .
"वही है ,जिसने "उम्मी "लोगों के बीच उन्हीं में से एक ऐसा रसूल उठाया ,जो उनको आयतें पढ़ कर सुनाता है .और उन्हें किताब के द्वारा हिकमत और ज्ञान कि शिक्षा देता है "
هُوَ الَّذِي بَعَثَ فِي الأُمِّيِّينَ رَسُولاً مِنْهُمْ يَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِهِ وَيُزَكِّيهِمْ وَيُعَلِّمُهُمْ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَإِنْ كَانُوا مِنْ قَبْلُ لَفِي ضَلاَلٍ مُبِينٍ -सूरा -अल जुमुआ 62 :2 
इसके सबूत में यह हदीस दी जा रही है ,जिन से साबित होता है कि उम्मी मक्का वासियों को कहा गया है .और मुहम्मद अनपढ़ नहीं था .
2 -उम्मी मक्का के लोगों का नाम था 
"जाफर इब्न मुहम्मद अल सूफी ने कहा कि मैंने अबू जाफर मुहम्मद इब्न अली अल रजा से पूछा कि लोग रसूल को उम्मी क्यों कहते है .रिजा ने कहा तुम बताओ .मैंने कहा लोग रसूल को उम्मी इसलिए कहते हैं कि वह अनपढ़ है .रिजा ने कहा लोग झूठ बोलते है .जो रसूल को अनपढ़ कहेगा उस पर अल्लाह का अजाब नाजिल होगा .फिर उन्होंने कुरान की आयत का हवाला देकर कहा कि अल्लाह ने रसूल को हर प्रकार का ज्ञान दिया था .यहाँ तक वह 72 -73 भाषाएँ लिख और पढ़ सकते थे .उन्हें उम्मी इस लिए कहा जाता है कि वह मक्का में पैदा हुए थे .और मक्का सारे शहरों की "उम्म" यानि माँ है .लोग रसूल को उम्मी कह कर मक्का का सम्मान बढ़ाना चाहते हैं "और जो लोग मक्का (उम्म) में और उसके आसपास रहते हैं उन्हें उम्मी कहा जाता है .(नोट -आज भी जैसे भोपाल वालों को भोपाली कहा जाता है वैसे ही उम्म वालों को उम्मी कहा जाता है )
Narrated Ja'far ibn Muhammad al-Sufi:
"وروى جعفر بن محمد الصوفي :
سألتاُمّي أبو جعفر محمد بن علي الرضا، صلى الله عليه ولهم على حد سواء، قائلا : "يا ابن الرسول الله ، لماذا كان النبي يسمى " اجاب : "ماذا يقول الناس؟". قلت : "إنهم يدعون أن تم استدعاؤه لل لأنه كاناُمّي أميا". اجاب : "هم يكذبون عليه لعنة الله عليهم لهذا الله قد قال بوضوح في كتابه :" هو الذي بعث في  رسولا من أنفسهم، واتل عليهم آياته (أي القرآن الكريم) ، ليخلصهم، ليعلمهم الكتاب (أي ااُمّيلقراءة والكتابة) ، ويعلمهم الحكمة (أي المعرفة والأخلاق). [القرآن 62:2]. "وكيف له أن يعلم ما هو نفسه لا يستطيع أن يفعل؟ والله ، الله والرسول تستخدم لقراءة والكتابة في 72 ، أو قال، 73 لغة. ودعا  لأنه كان من . مكة المكرمة مكة المكرمة هي واحدة من الأم (أم) البلدات، وهذا هو السبب في الله قال السامية وتعالى : "حتى يتسنى لك (محمد) قد حذر الأم (أم) المدينة (أي مكة المكرمة) ، ولمنجولاُمّية حول هذا الموضوع" 
I asked Abu Ja'far Muhammad ibn Ali al-Rida, peace be upon them both, saying: "O son of the Allah's Apostle, why was the Prophet called the Ummi?" He answered: "What do the people say?". I said: "They claim that he was called the Ummi because he was illiterate." He replied: "They lie! May the curse of Allah be upon them for this. Allah has clearly said in His Book: "He it is Who sent among the Ummi a Messenger from among themselves, to recite to them His Verses (i.e. the Qur'an), to purify them, to teach them the book (i.e. literacy) and to teach them wisdom (i.e. knowledge and ethics). [Qur'an 62:2]." How would he teach what he himself could not do? By Allah, Allah's Apostle used to read and write in 72, or he said 73, languages. He was called the Ummi because he was from Makkah. Makkah is one of the mother (umm) towns, and this is why Allah the High and Exalted said: 'So that you (Muhammad) may warn the mother (umm) town (i.e. Makkah) and whoever is round about it'."
Muhammad ibn Ali ibn al-Husayn ibn Babuyah al-Saduq, Ilal al-Sharai (Beirut, Lebanon: Muasassat al-A'lami lil Matbu'aat; first edition, 1988) vol. 1, p. 151, Chapter 105, Hadith Number 1.
3 -मुहम्मद बचपन में अनपढ़ था 
कुरान से ऐसे कई प्रमाण मिलते हैं कि मुहम्मद के कबीले पढाई लिखाई को बेकार समझते थे .इसीलिए मुहम्मद बचपन में नहीं पढ़ सका तथा लेकिन बाद में लिखना पढ़ना सीख गया था .
'हे नबी पहले तुम न तो कोई किताब पढ़ सकते थे ,और न अपने हाथ से लिख सकते थे "सूरा -अन कबूत 29 :48 
Let us analyze this particular verse of quran,
وَمَا كُنتَ تَتْلُو مِن قَبْلِهِ مِن كِتَابٍ وَلَا تَخُطُّهُ بِيَمِينِكَ إِذًا لَّارْتَابَ الْمُبْطِلُونَ {48  " al ankabut 29:48
And you did not recite before it any book, nor did you transcribe one with your right hand, for then could those who say untrue things have doubted
"तुम में से कुछ ऐसे लोग हैं ,जो किताब को सिर्फ मनोरंजन और बेकार की बातों का संग्रह मानते है "सूरा -बकरा 2 78 
4 -मुहम्मद ने लिखना पढ़ना सीख लिया 
हो सकता है कि लोगों के तानों से बचने के लिए .और अपमान के डर से मुहम्मद ने अच्छी तरह से लिखना पढ़ना सीख लिया हो .जैसा कि कुरान की इन आयातों से प्रकट होता है -
"अल्लाह ने बहुत बड़ा एहसान किया कि उन्हीं अनपढ़ लोगों से एक ऐसे रसूल को उठाया ,जो उन्हीं कि भाषा में आयतें पढ़ पढ़ कर सुनाता है .और कताब से हिकमत की बातें और ज्ञान की शिक्षा देता है .इस से पहले तो यह लोग गुमराह थे "सूरा -आले इमरान 3 :164 
"हे लोगो हमने तुम्हीं लोगों से एक रसूल भेजा है ,जो हमारी आयतें तम्हें पढ़ पढ़ कर सुनाता है .और तम्हें किताब से ज्ञान देता है "
सूरा -बकरा 2 :151 
"अल्लाह ने तम्हें वह ज्ञान दिया है ,जो पहले नहीं जानते थे .अल्लाह का तुम पर बड़ा अनुग्रह है "सूरा -अन निसा 4 :113 
"हमने किताब में कोई विषय नहीं छोड़ा " सूरा -अन आम 6 :38 
بَلْ هُوَ آيَاتٌ بَيِّنَاتٌ فِي صُدُورِ الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ وَمَا يَجْحَدُ بِآيَاتِنَا إِلَّا الظَّالِمُونَ"Al ankabut 29:49
"अल्लाह ने रसूल को हर प्रकार का ज्ञान दिया था "सूरा -अनकबूत 29 :49 
महम्मद खुद को ज्ञान का नगर कहता था इसके बारे में यह हदीस सर्वविदित है -
"انا مدينةُ العلم و عليٌ بابُهاَ"  
The Holy Prophet said: "I am the city of knowledge and Ali is its gate."(Sahih Muslim, Volume 5, Book 58, Number 244)
"मैं ज्ञान का एक शहर हूँ और अली उस शहर का द्वार है "
जो मुसलमान मुहम्मद को अनपढ़ बता कर सबको मूर्ख बनाने की कोशिश करते रहते हैं ,इन हदीसों से उनकी पोल खुल गयी है .इनमे जो कुछ हदीसें हैं वह मुहम्मद के वंशज इमाम रजा ने कही हैं .एक मुस्लिम ब्लोगर ने यह आरोप लगाया था ,कि मैं जिन हदीसों के हवाले देता हूँ वह मेरी बनायीं हुई हैं ,या यहूदियों ने बनायी है .ऐसे मुस्लिम ब्लोगर आँखें खोलकर इन हदीसों को पढ़ें ,तब कमेन्ट करें . 
यह उस समय कि बात है जब मुहम्मद काफी बीमार था और बचने की कोई उम्मीद नहीं थी .वह अपनी अंतिम वसीयत लिखना चाहता था .लेकिन खुद उसके ससुर ने मुहम्मद को लिखने के लिए कलम कागज नहीं दिया था .
5 -मुहम्मद ने लिखने का सामान माँगा ,उमर ने विरोध किया 
" इब्ने अब्बास ने कहा कि जब रसूल का अंतिम समय आगया था ,तो उस समय घर में कई लोग मौजूद थे .उसमे "उमर इब्न खत्ताब "भी थे .रसूल ने उनको पास बुला कर कहा मैं तुम्हें कुछ लिख कर देना चाहता हूँ ,ताकि बाद में तुम गुमराह न हो जाओ .लेकिन उमरने लोगों से कहा कहा कि अभी रसूल की हालत बहुत ख़राब है .तम्हारे पास कुरान ही काफी है .लेकिन लोग उमर की बात से सहमत नहीं थे उन में से एक बोला रसूल कुछ लिख कर देना चाहते हैं ताकि गुमराह न हो जाएँ .जब लोग अलग अलग बातें करने लगे तो शोर गुल बढ़ गया .उमर ने कहा तुम इसी तरह रसूल के सामने शोर करते रहोगे .फिर रसूल ने कहा मुझे अकेला छोड़ दो .अब्बास ने कहा यह बड़े दुर्भाग्य की बात थी कि शोर शराबे के कारण रसूल अपनी इच्छा नहीं लिख पाए ."
The Holy Prophet  asked that writing materials be brought to him and Umar opposed 
"عندما اقترب وقت وفاة النبي، بينما كانت هناك بعض الرجال في المنزل ، وكان من بينهم عمر بن الخطاب، قال النبي : "تعالوا بالقرب مني الكتابة عن الكتابة لك وبعدها سوف تذهب أبدا ضلال ". فقال عمر : "ان النبي هو مرض خطير، وكان لديك القرآن الكريم، لذلك كتاب الله ويكفي بالنسبة لنا". اختلف الناس في البيت والمتنازع عليها. وقال بعضهم : "تعال قرب بحيث رسول الله قد يكتب لك الكتابة وبعد ذلك أنك لن تضلوا" ، بينما قال آخرون ما قال عمر. عندما قدمت الكثير من الضوضاء ويتشاجر كثيرا أمام النبي، وقال لهم : "اذهبوا وترك لي". عباس بن المستخدمة ليقول "لقد كانت الطامة الكبرى أن مشاجرة ومنع الضجيج رسول الله من كتابة بيان لهما."
When the time of the death of the Prophet approached while there were some men in the house, and among them was 'Umar Ibn al-Khattab, the Prophet said: "Come near let me write for you a writing after which you will never go astray." 'Umar said: "The Prophet is seriously ill, and you have the Qur'an, so Allah's Book is sufficient for us." The people in the house differed and disputed. Some of them said, "Come near so that Allah's Apostle may write for you a writing after which you will not go astray," while the others said what 'Umar said. When they made much noise and quarreled greatly in front of the Prophet, he said to them, "Go away and leave me." Ibn 'Abbas used to say, "It was a great disaster that their quarrel and noise prevented Allah's Apostle from writing a statement for them. 


Sahih al Bukhari Arabic-English Volume 9 hadith number 468 and Volume 7 hadith 573
6 -मुहम्मद कौनसी तीन बातें लिखवाना चाहता था 
इब्न अब्बास ने कहा कि वह गुरुवार की बात मुझे याद रहेगी .रो रो कर मेरे आंसुओं से पत्थर और जमीन भीग गए थे .उस गुरुवार को रसूल ने कहा मुझे किसी हड्डी का टुकड़ा देदो ताकि मैं उस पर कुछ ऐसी बातें लिख दूँ ,जिस से तुम भूल न सको .वहां कुछ लोगों को शक था कि रसूल बेहोशी की हालत में बोल रहे है .लेकिन रसूल बोले मेरी हालत पहले से बेहतर है तुम्हे जो कहना है कहो .तब रसूल ने आदेश दिया कि यह तीन काम करना ,पूरे अरब से काफिरों को निकाल देना ,विदेशी दूतों का सम्मान करके उन्हें उपहार देना जैसे मैं करता आया हूँ .अब्बास ने कहा लेकिन सबसे जरुरी तीसरी बात मैं भूल गया हूँ "
يوم الخميس! وأنتم لا تعلمون ما هو الخميس؟ "بعد أن ابن عباس بكى حتى غمرت الحجارة على أرض الواقع مع دموعه. وفي ذلك سألت ابن عباس :" ما هو (تقريبا) الخميس؟ "، وقال" عندما تدهورت حالة (أي الصحية) من رسول الله ، قال : "أحضر لي عظم الكتف، لدرجة أنني قد أكتب شيئا لك بعد ذلك انك لن تضلوا". اختلف الناس في آرائهم على الرغم من أنه لم تكن لائقة لاختلاف أمام نبي. فقالوا : "ما هو الخطأ معه؟ هل تعتقدون انه لا معنى الحديث (الهذيان)؟ أسأله (لمعرفة ما اذا كان يتحدث لا معنى له). أجاب النبي ، "دع لي ، لأنني في حالة أفضل مما كنت تسألني". ثم أمر النبي منهم ان يفعلوا ثلاثة اشياء قائلا : "تتحول جميع الوثنيين من شبه الجزيرة العربية ، وإظهار الاحترام لجميع المندوبين الأجانب من خلال منحهم الهدايا كما اعتدت أن أفعل" كان شيئا مفيدا اجل الثالثة التي إما ابن عباس لم يذكر أو ذكرها ولكن لقد نسيت!"
Thursday! And you know not what Thursday is?" After that Ibn 'Abbas wept till the stones on the ground were soaked with his tears. On that I asked Ibn 'Abbas, "What is (about) Thursday?" He said, "When the condition (i.e. health) of Allah's Apostle deteriorated, he said, 'Bring me a bone of scapula, so that I may write something for you after which you will never go astray.' The people differed in their opinions although it was improper to differ in front of a prophet. They said, 'What is wrong with him? Do you think he is talking no sense (delirious)? Ask him (to see if he is talking no sense). The Prophet replied, 'Leave me, for I am in a better state than what you are asking me.' Then the Prophet ordered them to do three things saying: 'Turn out all the pagans from the Arabian Peninsula, show respect to all foreign delegates by giving them gifts as I used to do.' The third order was something beneficial which either Ibn 'Abbas did not mention or he mentioned but I forgot!. 


Sahih al Bukhari Arabic-English Volume 9 hadith number 468 and Volume 4 hadith 393
7- आपसी विवाद के कारण वसीयत नहीं लिख सकी गयी 
इब्न अब्बास ने कहा कि जब रसूल इस दुनिया को छोड़ कर जाने के करीब थे ,तो उनके घर में कई लोग मौजूद थे ,जिनमे उमर इब्न खाताब भी थे .रसूल ने कहा आओ मैं तुम्हें एक ऐसा दस्तावेज लिख कर देदूं जिस से बाद में तुम लोगों को गुमराह न होना पड़े .लेकिन उमर ने लोगों से कहा इस समय रसूल को काफी दर्द हो रहा है .उन्हें परेशान नहीं करो .मार्गदर्शन के लिए तुम्हारे पास कुरान ही काफी है .लेकिन लोग उमर की इस बात से सहमत नहीं थे .उन में से एक बोला आप रसूल को लिखने का सामान दीजिये ताकि वह कुछ ऐसा दस्तावेज लिख सकें जिस से हमें भटकना नहीं पड़े .लेकिन उमर अपनी कही हुई बात पर अड़े रहे .इसपर लोग हंगामा करने लगे .और रसूल के सामने ही शोर करने लगे .जब विवाद अधिक बढ़ गया तो रसूल ने कहा ,उठो ,सब लोग यहाँ से निकलो.इब्ने अब्बास ने कहा यह बाकई बहुत बड़ा नुकसान हो गया कि आपसी विवाद और हंगाने के कारण रसूल न तो लिख सके और न किसी से बोलकर लिखवा सके "
"وذكرت بن عباس : عند رسول الله (صلي الله عليه وسلم) كان على وشك مغادرة هذا العالم، كان هناك شخص (حوله) في منزله ، عمر ب. آل  كونه واحدا منهم. قال رسول الله (صلي الله علخطابي وسلم) : تعال، وأنا قد يكتب لك وثيقة، أنت لن يضل بعد ذلك. عندئذ قال عمر : من ابتلي عميق رسول الله إنا ل(صلي الله عليه وسلم) مع الألم. لديك القرآن معك. كتاب الله يكفينا. اختلف الذين كانوا موجودين في المنزل. وقال بعضهم : أحضر له (المادة الكتابة) بحيث رسول الله (صلي الله عليه وسلم) قد كتابة وثيقة لك وأنك لن تضلوا بعده. وقال بعض منهم ما بين عمر كان (بالفعل) وقال. وقال انه عندما منغمس في هراء ، وبدأ الخلاف في وجود رسول الله (صلي الله عليه وسلم) : انهض (وتذهب بعيدا) 'عبيد الله قال : قال ابن عباس كان يقول : كان هناك خسائر فادحة، في الواقع خسارة ثقيلة ، أنه نظرا لنزاعهما والضوضاء. يمكن أن رسول الله (صلي الله عليه وسلم) لا تكتب (أو إملاء) وثيقة بالنسبة لهم."
Ibn Abbas reported: When Allah's Messenger (may peace be upon him) was about to leave this world, there were persons (around him) in his house, 'Umar b. al-Kbattab being one of them. Allah's Apostle (may peace be upon him) said: Come, I may write for you a document; you would not go astray after that. Thereupon Umar said: Verily Allah's Messenger (may peace be upon him) is deeply afflicted with pain. You have the Qur'an with you. The Book of Allah is sufficient for us. Those who were present in the house differed. Some of them said: Bring him (the writing material) so that Allah's Messenger (may peace be upon him) may write a document for you and you would never go astray after him. And some among them said what 'Umar had (already) said. When they indulged in nonsense and began to dispute in the presence of Allah's Messenger (may peace be upon him), he said: Get up (and go away) 'Ubaidullah said: Ibn Abbas used to say: There was a heavy loss, indeed a heavy loss, that, due to their dispute and noise. Allah's Messenger (may peace be upon him) could not write (or dictate) the document for them. 


Sahih Muslim Book 013, Number 4016


जब मुसलमान जबरदस्ती करके लोगों यह बात मनवाने में असफल होने लगे कि कुरान मनुष्य द्वारा रची गयी किताब नहीं है ,बल्कि अल्लाह कि दी गयी किताब है .क्योंकि मुहम्मद तो निरक्षर ,अनपढ़ (unliterated ) थे वह कुरान खुद कैसे बना सकते थे .ऐसी विलक्षण और अद्वितीय किताब सिर्फ अल्लाह ही बना सकता है .यह लेख उन झूठे मुस्लिम ब्लोगरों लिए एक झटका है ,जो इस महाझूठ के सहारे लोगों को धोखा दे रहे हैं .
असल बात मुहम्मद के अनपढ़ होने या शिक्षित होने की नहीं है .बात कुरान में लिखी गयी बातों और उसकी मानव विरोधी जिहादी तालीम की है .यदि मुर्ख से मुर्ख अनपढ़ भी मानवता की बात करे तो हमें स्वीकार्य होना चाहिए .
हमें अल्लाह की ऐसी किताब नहीं चाहिए जो निर्दोषों की हत्या करने की तालीम देती है 
http://wilayat.net/index.php?option=com_content&view=article&id=542:was-the-prophet-muhammad-really-illiterate&catid=41:ahlebait-general&Itemid=64
http://www.mostmerciful.com/ummi.htm
 
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www.bhandafodu.blogspot.com 
 
 

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