Wednesday, November 7, 2012

नेता जी सुभाष पार्क को हड़पने का महाषडयंत्र

डॉ0 संतोष राय


आज दिनांक 7/11/2012 को अखिल भारत हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री पं0 नंद किशोर मिश्र, सरदार रवि रंजन सिंह, रविन्द्र कुमार द्विवेदी ने अपने एक संयुक्त बयान में मीडिया को बताया कि 1857 में जिसका अस्तित्व ही नही था, 2012 तक उसके अस्तित्व के संदर्भ में किसी को किसी प्रकार की जानकारी नही थी। जो भ्रूण तैयार भी नही हुआ, न पैदा हुआ उस अस्तित्व विहीन भ्रूण को अकबरावादी नाम से मीडिया, इस्लामिक जेहादी साम्राज्यवादी मानसिकता वाले लोग षडयंत्र पूर्वक राष्ट्रीय मूर्ति नेता सुभाष चंद्र बोस के मूर्ति को हटाना चाहते हैं और नेता जी के अस्तित्व को ठेस पहुंचाकर सुभाषपार्क को हथियाना चाहते हैं। जिसमें कांग्रेस पार्टी का परोक्ष हाथ है।

        कांग्रेस शासित राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली क्षेत्र में हिन्दुस्थान के बलिदानी क्रांतिकारियों को जो सम्मान और महत्व मिलना चाहिये वह नही मिला। यदि आजादी  के क्रांतिकारियों की संघर्ष के ऐतिहासिक गौरवगाथा का अन्वेषण किया जाये तो उसमें बंगाल के क्रांतिकारियों की अग्रगण्य भूमिका है, जो सीने पर गोली खाने, काले पानी की सजा पाने या सजा भुगतने में सबसे आगे थे।
          नेता जी सुभाषचंद्र बोस ने नारा दिया था कि लाल किला चलो। इसलिये उस पार्क का नाम-संस्करण सुभाष पार्क हुआ और नेता जी की मूर्ति स्थापित की गयी।  नेता जी के नारों को ध्यान पर रखकर आजादी के बाद देश के प्रधानमंत्रियों ने राष्ट्र के नाम लाल किला से राष्ट्र को संबोधित करने की परंपरा पड़ी। लाल किला से प्रधानमंत्री प्रत्येक 15 अगस्त को राष्ट्रीय सौहाद्र, राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय विकास, राष्ट्रीय समन्वय, राष्ट्रीय गौरव की परंपराओं को उल्लेखित करते हैं। वहां से तथाकथित अकबरावादी के पूर्व में सुभाष पार्क को हथियाने का प्रयास शाही ईमाम एवं इनके गुर्गों ने किया जिसका दिल्ली उच्च न्यायालय ने जस्टिस राजीव शकधर के न्यायालय में यह विवाद लंबित है।


          पुण्यभूमि बंगाल के सपूतों को कांग्रेस ने कभी भी सम्मानित करने की प्रक्रिया को नकारा है। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण एक भूत और एक वर्तमान का दे रहे हैं। नेता जी सुभाष चंद्र बोस त्रिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में अध्यक्ष चुन लिये गये, जिसके विषय में मोहन दास करमचंद्र गांधी ने कहा था कि सीता रमैय्या की हार हमारी है, सुभाष चंद्र बोस की जीत हमारी हार है।


          माननीय प्रणव मुखर्जी का बंगाल का होना एक अभिशाप बन गया, जिसके कारण वे योग्य होते हुये भी प्रधानमंत्री नही बन पाये। बंगभूमि चिरकाल से ही जेहादियों के निशाने पर रहा। बंगाल की संस्कृति, भाषा, वहां के वीर स्वतंत्रता सेनानी, वहां के नेता हमेंशा निशाने पर रहे। स्वतंत्र राष्ट्र बनने के बाद भी बांग्ल भाषा को भी पाकिस्तान ने राहत की सांस नही लेने दी। जिसके कारण इस्लामिक देश पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र होने के बावजूद भी बांग्लादेश के रूप में अलग होना पड़ा।

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