अंदर ही
अंदर इस्लामिक खतरे से भयभीत है कांग्रेस
बाला
साहब ठाकरे को दिया वचन पूरा किया माननीय राष्ट्रपति ने
डॉ0
संतोष राय
कांग्रेस के कुछ
नेताओं को इस्लाम का खतरा अंदर ही अंदर बुरी तरह भयभीत किये हुये है। कसाब को
फांसी इसी का परिणाम है, वर्ना कांग्रेस के
लोग कभी भी कसाब को फांसी नही होने देते। राष्ट्रपति बनने से पूर्व माननीय प्रणव
मुखर्जी जी उस दौरान बाला साहब ठाकरे से मुलाकात कर अपने राष्ट्रपति उम्मीदवारी
के लिये समर्थन मांगा था।
अनुकूल समय व हवाओं के रूख को भांपकर बाला साहब ठाकरे ने भी उस समय श्री प्रणव
मुखर्जी के सामने अपनी शर्त रखी थी कि आपको किसी भी कीमत पर
अफजल और कसाब को फांसी पर लटकवाना होगा। बाला साहब के शर्त को पूरा करने का वायदा
करते हुये माननीय प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रपति बनने के बाद बाला साहब को दिया हुआ
अपना वचन पूरा कर दिया। ये एक तरह से बाल
ठाकरे व माननीय राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी में गुप्त समझौता था, जिसे एकदम सही समय पर लक्ष्य संधान किया गया।
बाला
साहब ने भाजपा को तब झिड़क दिया था
बाला
साहब नें राष्ट्रपति उम्मीदवार के समर्थन में एनडीए की बात को इसलिये दर-किनार
कर दिया था क्योंकि एनडीए में शामिल भाजपा एक ऐसे राष्ट्रपति प्रत्याशी का
समर्थन कर रही थी जो हिन्दू नही था। ठाकरे साहब भाजपा के नकली हिन्दुत्व के
ढोंग में नही आये। उस दौरान वे कांग्रेस प्रत्याशी प्रणव मुखर्जी का समर्थन करना
हिन्दू हित में अच्छा समझा।
माननीय
प्रण्व मुखर्जी एक ऐसे हिन्दू उम्मीदवार थे जो काली माता के अनन्य भक्त थे। यद्यपि
उस समय भाजपा को बाला साहब ठाकरे द्वारा माननीय प्रणव मुखर्जी का समर्थन बहुत बुरा
लगा था, लेकिन बाला साहब ने देश-हित में कांग्रेस की कार्बन कॉपी भाजपा के विरोध
को पूरी तरह अनसुना कर दिया था। जिसका परिणाम आज कसाब को फांसी की सजा के रूप में
मिला। एक प्रकार से माननीय प्रणव मुखर्जी ने बाला साहब ठाकरे को दिया हुआ अपना बचन
पूरी तरह से निभाया है।
कसाब
को फांसी देना अति दुष्कर कार्य था
कसाब को
फांसी देना इतना आसान नही था। अगर ये बात पहले मीडिया में लीक हो जाती तो कुछ
मीडियाई, मुस्लिम चरमपंथी संगठन, कांग्रेस के ही कुछ
मुस्लिम परस्त नेता इसका विरोध करते। तो
फिर कसाब को शूली पर लटकाना बहुत मुश्किल हो जाता। देखा जाये तो कसाब को फांसी की
सजा देने के लिये एक गुप्त अभियान चलाया गया, जिसकी जानकारी
सिर्फ माननीय राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, केन्द्रीय
गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे, महाराष्ट्र गृहमंत्री आर. आर. पाटिल को ही मात्र थी।
गुप्त
अभियान को बहुत ही गुप्त रखा गया
सोचिये ये गुप्त अभियान इतना गुप्त रखा गया था
कि देश के प्रधानमंत्री व यूपीए चेयर पर्सन सोनिया गांधी तक को नही पता था। ये
माननीय राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के करिश्माई व्यक्तित्व का कमाल था कि जिस सोनिया अम्मा के बिना कांग्रेस में एक पत्ता
भी नही खटकता था, उसे माननीय दिग्गज राष्ट्रपति श्री मुखर्जी ने सोनिया व
मनमोहन के जाने बिना कैसे अंजाम तक पहुंचा दिया! अन्तत: सोनिया
व मनमोहन छाती कूट-कूट कर रोते-विलखते ही रह गये।
पहले
भी मुस्लिम मुद्दे पर कांग्रेस फंसी है
ये कोई
पहली घटना नही है। कांग्रेस कई बार मुस्लिम मुद्दे को लेकर फंसी है। ठीक इसी तरह एक
बार तत्कालीन सरकार को चुनौती 1957 की लोकसभा में भारतीय मुस्लिम लीग के सदस्यों
द्वारा मिली थी। ये मुस्लिम लीगी वही थे जो भारत विभाजन से पूर्व जिन्ना के
मुस्लिम लीग में थे और भारत में लाखों हिन्दुओं के कत्ल के गुनहगार थे। ये
मुस्लिम लीगी विभाजन के बाद इनके कुछ सदस्य पाकिस्तान जाकर जिन्ना मुस्लिम लीग
में शामिल हो गये बाकी कुछ सदस्य भारत में रहकर भारतीय मुस्लिम लीग बना लिये। इन
मुस्लिम लीग के सदस्यों नें संसद में सरकार से भारत के मुसलमानों के पक्ष में प्रश्न
पूंछकर सरकार के सामने गंभीर संकट पैदा कर दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर
लाल नेहरू को उस समय कोई उत्तर नही सुझा तो उनहोंने उस दौरान संसद में कहा कि इस
प्रश्न का उत्तर मैं अगले दिन दूंगा।
नेहरू
को इस संकट से हिन्दू महासभा ने उबारा
नेहरू के
समक्ष एक प्रकार से भारी संकट आ गया था, खासकर वे मुस्लिम
वोटों को लेकर भी बहुत चिंतित थे क्योंकि नेहरू स्वयं जवाब देते तो उनके मुस्लिम
वोट बैंक में सेंध लग सकती थी। उस दौरान
नेहरू के संकटमोचक उनके प्रमुख सचिव हुये। उनके सचिव के एक उत्तर ने मानो उन्हें
सारे संकटों से उबार लिया। नेहरू के प्रमुख सचिव ने कहा कि आपको इस संकट की घड़ी
से अखिल भारत हिन्दू महासभा निकाल सकती है। तत्पश्चात नेहरू ने उसी रात अपने
प्रमुख सचिव को अखिल भारत हिन्दू महासभा के नेता व तत्कालीन सांसद सेठ
विशनचंद्र के निवास पर भेजा और इस संकट से
निकलने में मदद मांगी।
इसके बाद मुस्लिम लीगी सदस्यों द्वारा पूंछे
गये प्रश्नों का उत्तर हिन्दू महासभा के शाहजहांपुर से जीते सांसद सेठ
विशनचंद्र ने संसद में दिया और उन मुस्लिम लीगी सांसदों की संसद में बोलती बंद कर
दी। कांग्रेस सरकार उत्तर देने से बच गयी। ज्ञात हो कि उस समय कांग्रेस और हिन्दू
महासभा में दलगत मतभेद बहुत थे फिरभी हिन्दू महासभा ने कांग्रेस की पूरी सहायता
की व कांग्रेस को अपमानित होने से बचा लिया।
मुसलमानों
से वफादारी की आशा करना मूर्खता होगी
वैसे आप
यदि मुसलमानों के बारे में नेहरू के दृष्टिकोंण को पढ़ेंगे तो हतप्रभ हो जायेंगे।
मद्रास में नेहरू ने भाषण देते हुये कहा कि ‘भारतीय मुसलमानों
के मन और आत्मा पर बड़ा संकट आ पड़ा है। उनसे वफादारी की आशा करना मूर्खता है।
यदि भारतीय मुसलमान मुस्लिम लीग के पुराने सिद्धांतों पर विश्वास रखते हैं तो
उनकी मातृभूमि और पितृभूमि पाकिस्तान है भारत नही। क्या हम सांस्कृतिक संस्थाओं
को इसलिये धक्का दे देंगे कि मद्रास के कुछ मुस्लिम लीगी उन्हें नही चाहते। ऐसा
व्यक्ति जितने जल्दी निकल जाये, उतना अच्छा।’
पं0
गोविन्द बल्लभ पंत ने लीगियों को चुनौती दी
उत्तर
प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं0 गोविन्द बल्लभ पंत ने 3 नवंबर 1947 को उत्तर
प्रदेश की विधान सभा में लीगी सदस्यों को फटकारते हुये कहा कि द्विराष्ट्रवाद के
सिद्धांतों को मुस्लिम लीगियों ने कभी उठाया तो उनको निर्दयतापूर्वक कुचल दिया जायेगा।
मुस्लिम
तुष्टीकरण करके नेहरू भी रोये
नेहरू जी
को लगा कि यदि हम मुस्लिम तुष्टीकरण की राह पर न चले होते तो मुसलमानों को इस देश
की संस्कृति की धारा से जोड़ा गया होता, और फिर, देश एक विभाजन से बच जाता। लाखों लोगों का कत्ल न होता।
लेकिन
बड़े दुर्भाग्य की बात है कि आज कांग्रेस के साथ-साथ सभी राजनीतिक पार्टियां उसी
रास्ते पर चल रही हैं जिस रास्ते पर चलकर कांग्रेस ने देश का विभाजन कराया था।
आज सभी राजनीतिक पार्टियों का एजेण्डा मुस्लिम लीग के सिद्धांत हो गये हैं। भारत
मुगलिस्तान बनने की ओर द्रुतगति से अग्रसर है।
क्रमश:--------
क्रमश:--------
(लेखक एमबीबीएस डॉक्टर, फिल्म कलाकार,
फिल्म निर्माता व अखिल भारत हिन्दू महासभा
के केंद्रीय उच्चाधिकार समिति के अध्यक्ष हैं।)
फिल्म निर्माता व अखिल भारत हिन्दू महासभा
के केंद्रीय उच्चाधिकार समिति के अध्यक्ष हैं।)
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