सत्यवादी
प्रस्तुति: डॉ0 संतोष राय
मनोविज्ञान में सवाल करना . और प्रश्नों के द्वारा अपनी जिज्ञासा शांत करना मनुष्य का स्वाभाविक गुण बताया गया है . एक बालक जैसे ही बोलना सीख लेता है वह अपने आसपास की चीजों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए अपने माता पिता और बड़े लोगों से सवाल करने लगता है . क्योंकि सवाल करने से उसके ज्ञान में वृद्धि होती रहती है .प्रश्न करना मनुष्य का अधिकार है . इसीलिए अदालतों में भी पख विपक्ष से सवाल करने के बाद ही सही निर्णय हो पाता है .भारतीय परंपरा में शाश्त्रर्थ में प्रश्न प्रतिप्रश्न के द्वारा ही सत्य और असत्य का निर्णय किया जाता है . सवालों और आलोचना से वही भड़क जाते हैं अपना भंडा फूटने से घबराते है,
लेकिन इस्लाम विश्व का एकमात्र असहिष्णु ,उग्र ,तर्कहीन विचार है , जो किसी प्रकार का सवाल करने और आलोचना को बिलकुल बर्दाश्त नहीं करता .इसीलिए . देखा गया है कि जब भी मुसलमानों से कुरान , इस्लाम , मुहम्मद जैसे विषय पर पूछा जाता है तो वह एकदम भड़क जाते हैं . और उत्तर देने कि जगह अश्लील गालियाँ बकने लगते है .वास्तव में उनको मुहम्मद ने यही सिखाया है .जो इस हदीस से पाता चलती है
1-पूछने वालों को फटकारो
अबू हुरैरा ने कहा कि रसूल ने हमें सिखाया है कि जब कुछ लोग तुम्हारे पास इस्लाम के बारे में तरह के सवाल पूछें जैसे अल्लाह ने खुद को सबका मालिक कैसे बना लिया . और हम कैसे मानें की अल्लाह सब कुछ जानता है . तो तुम चुपचाप खिसक जाना . लेकिन जब कोई पूछे कि बताओ अल्लाह को किसने बनाया तो तुम उनको फटकार कर झिड़क देना "
बुखारी - जिल्द 4 किताब 54 हदीस 496
2-इस्लाम आधार भय है
इस्लाम समझाने की जगह डराने में विश्वास रखता है . इतिहास गवाह है कि इस्लाम तलवार के जोर से फैला है .क्योंकि बुद्धिमान व्यक्ति दर के बिन कभी इस्लाम स्वीकार नहीं करेगा .क्योंकि केवल डर ही इस्लाम का आधार है ,और इस्लाम का यही उद्देश्य है कि लोग अंधे होकर बिना जाने समझे मुसलमान बन जाएँ .जैसा इस आयत में कहा है ,
जो लोग गैब की बातों को जाने बिना ही अल्लाह से डरते हैं ,उनके लिए बड़ा बदला दिया जायेगा "
सूरा -मुल्क 67 :12
नोट- गैब की परिभाषा इस्लाम में इस प्रकार दी गयी है ".गैब الغيب "का अर्थ परोक्ष , छुपा हुआ , जो चीज हमसे गायब हो . जिसके बारे में हमें नहीं बताया गया हो ,जिसके बारे में निश्चित ज्ञान नहीं हो ,जो रहस्य पूर्ण हो , और किसके बारे में जानने और समझने की आवश्यकता नहीं हो "कुरान मजीद. हिंदी अनुवाद मकतबा अल हसनात रामपुर यू .पी . पेज 1229
3-कुरान के बारे में शंका
क्योंकि लोगों का कहना है कि इस ( मुहम्मद ) ने कुरान खुद ही गढ़ डाली है " सूरा यूनुस 10 :38
कुरान को सुन कर लोगों ने कहा कि यह अल्लाह की किताब नहीं हो सकती है . यह मुहम्मद ने खुद ही बना डाली है " सूरा - हूद 11 : 13
4-वह कुरान कौनसी है ?
वह अल्लाह की किताब है .जिसमे शक नहीं करो " सूरा- बकरा 2 :2
( -इस आयत में कुरान के लिए " जालिकल किताबذلك الكتاب " कहा है . जिसका अर्थ " वह किताब That Book " होता है . अर्थात असली कुरान कोई और है . यदि वर्तमान कुरान असली होती तो अरबी में " हाजल किताबهذا الكتاب" यानि यह किताब This Book लिखा गया होता .इसी कारन से लोग कुरान को मुहम्मद की रचना मानते थे .)
वह कुरान महान है . जो पट्टियों में सुरक्षित रखा है " सूरा -बुरुज 85 :21 और 22
( "वल ' हुव ' कुरानुं मजीद "इस आयत में कुरान के लिए अरबी में ' हुव ' शब्द आया है ,जिसका अर्थ He होता है .इस से संकेत मिलाता है कि कुरान किसी आदमी ने बनायी थी .और कहीं छुपा रखी थी )
5-बिना समझे ईमान लाओ
और जो लोग बिना समझे ईमान लाते हैं , और नमाज पढ़ने लगते हैं .वही सफलता प्राप्त करने वाले होंगे " सूरा - बकरा 2 :2 और 5
6-मुहम्मद का सवालों से भय
यदि कुरान को ध्यानसे पढ़ जाये तो पाता चलता है की उसमे हर प्रकार की हजारों गलतियाँ है . क्योंकि मुहम्मद अधिकाँश बातें यहूदी और ईसाई धर्म की किताबों से चुरायी थी .जिनका कुरान से कोई तालमेल नहीं था .और जब कोई उनके बारे में सवाल करता था तो मुहम्मद अपनी पोल खुल जाने से डर जाता था .
हे ईमान वालो तुम दीन के बारे में ऐसे ऐसे सवाल नहीं करो , की यदि उनका रहस्य खुल जाये तो तुम्हे बुरा लगेगा " सूरा -अल मायदा 5 :10
अल्लाह जो कुछ भी करता है , कैसा है , इसके बारे में कोई पूछताछ नहीं होना चाहिए "
सूरा अल अम्बिया 21 :23
7-आयतों में गलतियाँ नहीं निकालो
और जो लोग इन आयतों में गलतियाँ निकालकर नीचा दिखाने का प्रयास करेंगे . तो उनके लिए बहुत ही बड़ी यातना है . जो दुखदायी होगी "
सूरा -सबा 34 :5
8-पूछने से पोल खुल जाएगी
क्योंकि इसके पहले भी कुछ लोगों ने ऐसे ही सवाल किये थे ,और जब उनको असलियत पता चली ,तो वह इस्लाम से इंकार करने वाले बन गए थे " सूरा -मायदा 5 :102
यही कारण है जब भी कुरान या इस्लाम के दूसरे विषयों पर कोई सवाल किया जाता है .या उनकी किताबों में गलती बताई जाती है .तो वह निरुत्तर हो जाते हैं . फिर झुंझला कर अश्लील गालियाँ देने लगते हैं.क्योंकि उनके पास जवाब देने के लिए कुछ नहीं होता .और कुछ तो ऐसे भी हैं जो फर्जी नामों से धमकियां भी देते रहते हैं .इसीलिए मुहम्मद शाश्त्रार्थ की जगह आतंक का प्रयोग करता था .यदि इस्लाम में सच्चाई होती तो आतंक की जरुरत नहीं होती .बौद्ध धर्म बिना किसी हिंसा के सम्पूर्ण एशिया में फ़ैल गया था .
इस्लाम एक मुहम्मदी आतंकवाद है .इसका भंडा फोड़ना जरुरी है .
http://mostintolerantreligion.com/2011/12/10/can-we-question-allah-islam/
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