Saturday, April 2, 2011

इस्लाम और कट्टरता व हिसंक व्यवहार

                                Represent: Dr. Santosh Rai


कुछ समय पहले मेरी एक ‘सेकुलर’ पत्रकार मित्र ने मुझे कहा कि गुजरात दंगों के बाद उनकी एक मुसलमान मित्र ने एक सामान्य व हिन्दूबहुल इलाके में मकान लेने का विचार त्याग दिया। मेरी मित्र ने कहा कि वह अपनी उस मित्र की इस बात से अंदर तक हिल गई कि उसे अब हिन्दूबहुल इलाके में घर लेने से डर लगने लगा है। मैंने अपनी मित्र को पूछा कि उनका मन इस बात पर क्यों नहीं हिलता है कि देश के किसी भी मुस्लिमबहुल इलाके में ही नहीं, बल्कि उसके आस-पास भी एक भी हिन्दू घर लेने से डरता है और यदि किसी ने ले लिया है तो उसका जीवन नरक से भी बदतर है। उसके पास इसका कोई उत्तर नहीं था। वास्तव में यह समस्या किन्हीं दो छोटे व स्थानीय समूहों की नहीं है। यह समस्या इस्लाम के मूल सिध्दांतों, उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और घोर पांथिक असहिष्णुता से जुड़ा हुआ है।
कोई माने या नहीं, परंतु आज भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में इस्लाम एक बहस का मुद्दा है। बहस का कारण भी एक ही है और वह कारण है, मुसलमानों की कट्टरता व हिसंक व्यवहार। सामान्यत: यह दलील दी जाती है कि कट्टरता इस्लाम का हिस्सा नहीं है और कोई भी ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’ लेकिन यह भी एक सचाई है कि इस्लाम के इतिहास के साथ काफी खून-खराबा जुडा हुआ है। इसका सबसे प्रमुख कारण यह है कि इस्लाम केवल एक उपासना से जुड़ा हुआ मत नहीं है। इस्लाम की अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं, और वे काफी प्रारंभ से ही रही हैं। प्रारंभ से ही उसने शासन सत्ता का उपयोग अपने मत के प्रचार प्रसार करने में किया है। अधिकांश स्थानों में इस्लाम के फैलने में सिध्दांत से कहीं अधिक बड़ा कारण तलवार का जोर रहा है। हालांकि आज के कुछेक सेकुलर इतिहासकार और नवबौध्दिक लोग इसे सही नहीं मानते हैं, परंतु इस्लाम और तलवार के संबंध इतने पुख्ता हैं कि आंख बंद करने के बाद भी दिखते हैं।
यह कहना बड़ा सरल व आसान है कि इस्लाम का कट्टरता से कोई लेना देना नहीं है लेकिन अभी तक इस्लाम की उदारता के तर्क केवल गैर इस्लामी लोगों द्वारा ही दिए जाते हैं, या फिर एकाध कोई मुसलमान उदारता की बात करता है तो वह मुस्लिम जगत द्वारा पूर्णत: उपेक्षित होता है। ऐसे लोगों के तर्कों का कोई विशेष महत्व नहीं है। हम देख सकते हैं कि आज भी इस्लामी देशों में शासन द्वारा दूसरे मतावलम्बियों के साथ भेदभाव बरता जाता है। उन देशों में इस्लामेतर मतों के प्रचार व उनके सार्वजनिक प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध है। इसे वे अपने ढंग से उचित भी ठहराते हैं। नीचे दिए गए लिंक द्वारा आप एक विडीयो डाउनलोड करें और देखें कि इस्लाम के झंडाबरदारों के अपने तर्क क्या हैं? यह भी बताएं कि क्या उनका तर्क सही है? तमाम सेकुलर नवबौध्दिकों से मेरा विशेष आग्रह है कि वे इस विडीयो को देख कर बताएं कि इसके बाद इस्लाम के प्रति अब उनकी धारणा क्या है? क्या इसे देखने के बाद यह कहना उचित प्रतीत नहीं होता है कि भारत यदि ‘सेकुलर’ राज्य है तो उसका कारण इसका हिन्दूबहुल होना है। यदि यहां भी मुसलमानों का बोलबाला हो जाए तो यहां भी वैसी ही स्थिति बन जाएगी।

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