Monday, April 4, 2011

धर्मप्रदूषण:विधर्मी षडयंत्र

B.N. Sharma     Represent: Dr. Santosh Rai


भारत में जितने भी विदेशी विधर्मी हमलावर आये ,वह सब भारत की सम्पदा को लूटने ,और भारत पर हुकूमत करने के लिए आये थे .वह जानते थे कि यदि भारत पर निर्विघ्न रूप से हुकूमत करना है तो ,भारत में ही अपने समर्थकों की जरूरत पड़ेगी .वह यह भी जानते थे कि यदि भारतीय समाज और संसकृति को मिटाकर अपने समर्थको की संख्या बढ़ाना हो ,तो भारत के प्राण उसके इतिहास ,साहित्य और धर्मग्रंथों को नष्ट और भ्रष्ट करना भी जरूरी है .जोकि भारतीय समाज के मुख्य आधार हैं.धर्म के विना भारतीय ,कला ,संगीत ,काव्य ,साहित्य ,चित्रकला ,मूर्तिकला आदि सब निष्प्राण हो जायेंगे .इसीलिए मुसलमान हमलावरों ने पाहिले तो चुन चुन कर प्रसिद्ध विद्यालयों ,पाठशालाओं ,ग्रंथागारों को जलवा दिया .फिर जो बच गए उन ग्रन्थों के उलटे सुलटे अर्थ करवाकर हिन्दुओं को गुमराह करने की चाल चली .और हिन्दू ग्रंथो में इस्लामी तालीम घुसाने का षडयंत्र किया .जैसे अकबर ने अल्लोपनिषद नामकी उपनिषद् बनवाई थी .इसी तरह ईसाई मिशनरी ने एजोर्वेदम नामक नकली वेद बना दिया था जिसके बारे में लिखा जा चूका है . 
मुसलमान और ईसाइयों के वेदों ,और अन्य धर्म ग्रंथों के जो अनर्थ किये ,उसकी पोल महर्षि दयानंद ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "ऋग्वेदभाष्य भूमिका"में खोल दी है . लेकिन हिन्दू धर्म ग्रंथों को प्रदूषित करने का षडयंत्र अंगरेजों के समय में भी चलता रहा .आज यह दायित्व सेकुलर सरकार और सेकुलर नेता निबाह रहे हैं . 
यहाँ पर थोडेसे उदहारण दिए जा रहे हैं -

1 -वेदों में मदीना का उल्लेख है 
कहावत है कि बिल्ली को सपने में छीछड़े ही दिखते हैं .इसीतरह किसी मौलवी ने वेदों में दिए गए "अदीना "शब्द को "मदीना "पढ़ लिया .और कहा कि वेद में कहा गया है कि ,हम सौ साल तक मदीना में रहें -
"प्रब्रवाम शरदः शतमदीना स्याम शरदः शतम" यजुर्वेद -अध्याय 36 मन्त्र 24
जबकि इसका सही अर्थ है कि हे ईश्वर हम सौ साल तक कभी दीन नहीं रहें ,और किसी के आगे लाचार नहीं रहें
2 -मनुस्मृति में मौलाना 
इसी तरह मनुस्मृति के "मौलान "शब्द को "मौलाना "बताकर यह साबित करने की कोशिश की गयी कि मनुस्मृति में लिखा है कि ,हर बात मौलाना से पूछ कर करना चाहिए .मनुस्मृति का श्लोक है -
"मौलान शाश्त्रविद शूरान लब्ध लक्षान कुलोद्गतान "मनुस्मृति -गृहाश्रम प्रकरण श्लोक 29
इसका वास्तविक अर्थ है कि .किसी क्षेत्र के रीतिरिवाज के बारे में जानकारी के लिए वहां के किसी मूल निवासी ,शाश्त्रविद ,कुलीन और अपना लक्ष्य जानने वाले व्यक्ति से प्रश्न करें .न कि किसी मौलाना से पूँछें .
3 -वेद कहता है मुर्गा खाओ मद्य पियो 
वेद का एक मन्त्र इस प्रकार है -
"तेनो रासन्ता मुरुगायमद्य यूयं पात सवस्तिभिः सदा "ऋग्वेद -मंडल 7 सूक्त 35 मन्त्र 15
मुसलमानों ने इसका अर्थ किया कि वेद कहता है हे लोगो तुम मुर्गा खाओ और मद्य (शराब )पीकर ख़ुशी मनाओ .जबकि इसका अर्थ है हे ईश्वर आज आप हमारे लिए कीर्ति प्रदान करने वाली विद्या का उपदेश करें ,और हमारी रक्षा करें
4 -वेद में ईसामसीह का उल्लेख 
अकसर ईसाई हिन्दुओं को ईसाई बनाने के लिए यह चालाकी करते है ,और कहते हैं कि वेदों में ईसा मसीह के बारे में भविष्यवाणी कि गयी है .और ईसा एक अवतार थे .इसाई इस वेदमंत्र का हवाला देते है -
"ईशावास्यमिदं यत्किंचित जगत्यां जगत "यजुर्वेद -अध्याय 40 मन्त्र 1 
ईसाई इसका अर्थ करते है ,कि इस दुनिया में जो कुछ भी है ,वह सब ईसा मसीह कि कृपा से है .और वाही दुनिया का स्वामी है .जबकि सही अर्थ है कि इस जगत में जोभी है उसमे ईश्वर व्याप्त है .
5 -सीताजी गिरजाघर जाती थीं 
जब भारत में ईसाई धर्म प्रचारक आये ,तो उन्होंने ईसाई धर्म के प्रचार के लिए कपट का सहारा लिया .और हिन्दुओं जैसे वस्त्र धारण कर लिए .यही नहीं जब यह लोग दक्षिण भारत में गए तो खुद को Priest की जगह आचार्य ( )कहने लगे .और Church को कोयिल यानी मंदिर का नाम रख दिया ,ताकि हिन्दू धोखे में आकार ईसाई बन जाएँ .Church को ग्रीक भाषा में Ekklesia और अरबी में कलीसिया ( )भी कहा जाता है .लेकिन जब यह ईसाई प्रचारक हिंदी भाषी क्षेत्र में गए तो उन्हें चर्च के लिए किसी शब्द की जरूरत पड़ी .इन चालाक लोगों ने "रामचरित मानस की इस चौपाई से "गिरजा घर "शब्द बना लिया .और चर्च के लिए प्रयुक्त करने लगे -
"सर समीप गिरिजागृह सोहा ,बरनि न जाये देखु मनु मोहा "बालकाण्ड -दोहा 228 चौ 4 
फिर यह मक्कार पादरी भोले भाले हिन्दुओं से यह कहने लगे की देखो सीताजी भी गिरजाघर जाती थीं ,यानि वह भी ईसाई थीं .इसलिए तुम भी गिरजाघर आकर ईसाई बन जाओ .
6 -पुराणों में अंगरेजी
अधिकाँश पुराण ग्रन्थ प्रमाणिक नहीं हैं क्योंकि महाभारत के समय से लेकर अंगरेजों के समय तक कुछ न कुछ जोड़ा जाता रहा .और उनके श्लोकों की संख्या भी बढ़ती गयी .हालाँकि इन पुराणों के रचयिता व्यास मुनि तो बताया जाता है .लेकिन यह सिद्ध हो चूका है कि व्यास के देहांत के बाद भी उनके शिष्य व्यास के नाम से पुराणों में श्लोक जोड़ते रहे थे .और यह परंपरा अंगरेजों के समय तक चलती रही .इसका एक उदहारण दिया जा रहा है -
"रविवारे च सन्डे ,फाल्गुने चैत्र फरवरी षष्टश्च सिक्सटी ज्ञेया तदुदाहरण मीदृषम "भविष्य पुराण -सर्ग 1 अध्याय 5 श्लोक 37 
इस श्लोक से साबित होता है कि ,अंगरेजी शब्द पुराण में बाद में जोड़े गए हैं ,क्योंकि व्यास के समय न तो अंगरेज थे और न अंगरेजी थी और यह पुराण भी किसी ने बाद में बनाया है .अतः हमें पुराणों की जगह वेदों ,उपनिषदों को प्रमाणिक मानना चाहिए .वर्ना हम इन धूर्तों के जल में फस सकते हैं .
7 -पद्मपुराण में धूम्रपान की निंदा 
एक समय था जब गावों में हुक्का पीना और रखना इज्जत की बात समझी जाती थी .और यदि कोई अपराध करता था तो उसका हुक्का पानी बंद कर दिया जाता था .इसे सबसे बड़ी सजा माना जाता था .मुग़ल दरबार में और नवाबों की महफिलों में हुक्का रखना शान मणि जाती थी .मुसलमानों के दौर में पान तमाखू का रिवाज शुरू हुआ था .हरेक मुसलमान के घर में पानदान ,पीकदान जरुर होते हैं .जब पोर्चुगीज लोग भारत में आये तो वह अपने साथ टोमेटो ,पोटेटो ,टोबेको लेकर आये .सन 1605 के बाद से धुम्रपान का रिवाज सरे देश में फ़ैल गया .यह देखकर किसी ने धूम्रपान करने वाले ब्राहमण को दान देने वाले को नरक जाने ,गाँव के सूअर बनने की बात लिख दी होगी -
"धूम्रपान रतं विप्रं ददाति यो नरः ,दातारो नरकं यान्ति ब्राह्मणं ग्राम शूकरम "पद्म पुराण 1 :36 
यद्यपि इस श्लोक में धुम्रपान की निंदा की गयी है ,परन्तु यह साबित होता है कि यह श्लोक सन 1605 के बाद यानि पोचुगीज के आने के बाद लिखा होगा .यानि पद्म पुराण में काफी बाद में जोड़ा गया है
इस से यह भी साबित होता है कि विधर्मियों ने हिन्दू धर्म ग्रंथों को प्रदूषित किया था .चाहे अर्थ का अनर्थ किया हो ,चाहे ग्रंथों में नए नए श्लोक जोड़ दिए हों
आज भी मुस्लिम मुल्ले और ,ब्लोगर हिन्दू ग्रंथों में मुहम्मद को अवतार साबित करने की कोशिश करते रहते हैं .जैसे जकारिया नायक .इस समय हिन्दी में करीब 200 ब्लॉग है ,जो हिन्दू ग्रथो को प्रदूषित कर रहे हैं .हमें इन से सावधान रहने की जरुरत है.और सभी हिन्दुओं को चाहिए किवह प्रमाणिक हिन्दू ग्रथो का अर्थ सहित गहन अध्यन करते रहें .और विधर्मियों के जाल में नहीं आयें .और न कभी मुहम्मद को अवतार ही मानें
भगवान परशुराम ने कहा है -
"अग्रश्च चतुर्वेदः पृष्ठशचः सशरा धनु .इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शास्त्रादपी शरादपि ."
मेरे सामने चारों वेद हैं ,और पीठ पर परशु और धनुष वाण है .मैं शत्रु का सामना ब्राह्मण बन कर शास्त्र से ,और क्षत्रिय बनकर अस्त्र शस्त्रसे करूँगा

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