सुरेश चिपलुनकर प्रस्तुति-डॉ० संतोष राय
मालेगाँव बम ब्लास्ट की प्रमुख आरोपी के रूप में महाराष्ट्र सरकार द्वारा “मकोका” कानून के तहत जेल में निरुद्ध, साध्वी प्रज्ञा को देवास (मप्र) की एक कोर्ट में पेशी के लिये कल मुम्बई पुलिस लेकर आई। साध्वी के चेहरे पर असह्य पीड़ा झलक रही थी, उन्हें रीढ़ की हड्डी में तकलीफ़ की वजह से बिस्तर पर लिटाकर ही ट्रेन से उतारना पड़ा। कल ही उन्हें देवास की स्थानीय अदालत में पेश किया गया, परन्तु खड़े होने अथवा बैठने में असमर्थ होने की वजह से जज को एम्बुलेंस के दरवाजे पर आकर साध्वी प्रज्ञा (Sadhvi Pargya) से बयान लेना पड़ा। यहीं पर डॉक्टरों की एक टीम द्वारा उनकी जाँच की गई और रीढ़ की हड्डी में असहनीय दर्द की वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की सलाह जारी की गई। मुम्बई में मकोका कोर्ट ने प्रज्ञा के स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें ट्रेन में AC से ले जाने की अनुमति दी थी, बावजूद इसके महाराष्ट्र पुलिस उन्हें स्लीपर में लेकर आई। (Harsh Treatment to Sadhvi Pragya)
इससे पहले भी कई बार विभिन्न अखबारी रिपोर्टों में साध्वी प्रज्ञा को पुलिस अभिरक्षा में प्रताड़ना, मारपीट एवं धर्म भ्रष्ट करने हेतु जबरन अण्डा खिलाने जैसे अमानवीय कृत्यों की खबरें आती रही हैं।
साध्वी प्रज्ञा से सिर्फ़ इतना ही कहना चाहूँगा कि एक “धर्मनिरपेक्ष”(?) देश में आप इसी सलूक के लायक हैं, क्योंकि हमारा देश एक “सेकुलर राष्ट्र” कहलाता है। साध्वी जी, आप पर मालेगाँव बम विस्फ़ोट (Malegaon Blast) का आरोप है…। ब्रेन मैपिंग, नार्को टेस्ट सहित कई तरीके आजमाने के बावजूद, बम विस्फ़ोट में उनकी मोटरसाइकिल का उपयोग होने के अलावा अभी तक पुलिस को कोई बड़ा सबूत हाथ नहीं लगा है, इसके बावजूद तुम पर “मकोका” लगाकर जेल में ठूंस रखा है और एक महिला होने पर भी आप जिस तरह खून के आँसू रो रही हैं… यह तो होना ही था। ऐसा क्यों? तो लीजिये पढ़ लीजिये –
1) साध्वी प्रज्ञा… तुम संसद पर हमला करने वाली अफ़ज़ल गुरु (Afzal Guru) नहीं हो कि तुम्हें VIP की तरह “ट्रीटमेण्ट” दिया जाए, तुम्हें सुबह के अखबार पढ़ने को दिये जाएं, नियमित डॉक्टरी जाँच करवाई जाए…
2) साध्वी प्रज्ञा… तुम “भारत की इज्जत लूटने वाले” अजमल कसाब की तरह भी नहीं हो कि तुम्हें इत्र-फ़ुलैल दिया जाए, स्पेशल सेल में रखा जाए, अण्डा-चिकन जैसे पकवान खिलाए जाएं… तुम पर करोड़ों रुपये खर्च किये जाएं…
3) साध्वी प्रज्ञा… तुम बिनायक सेन (Binayak Sen) भी तो नहीं हो, कि तुम्हारे लिये वामपंथी, सेकुलर और “दानवाधिकारवादी” सभी एक सुर में “रुदालियाँ” गाएं…। न ही अभी तुम्हारी इतनी औकात है कि तुम्हारी खातिर, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर “चर्च की साँठगाँठ से कोई मैगसेसे या नोबल पुरस्कार” की जुगाड़ लगाई जा सके…
4) साध्वी प्रज्ञा… तुम्हें तो शायद हमारे “सेकुलर” देश में महिला भी नहीं माना जाता, क्योंकि यदि ऐसा होता तो जो “महिला आयोग”(?) राखी सावन्त/मीका चुम्बन जैसे निहायत घटिया और निजी मामले में दखल दे सकता है… वह तुम्हारी हालत देखकर पसीजता…
5) साध्वी प्रज्ञा… तुम तो “सो कॉल्ड” हिन्दू वीरांगना भी नहीं हो, क्योंकि भले ही तुम्हारा बचाव करते न सही, लेकिन कम से कम मानवीय, उचित एवं सदव्यवहार की माँग करते भी, किसी “ड्राइंगरूमी” भाजपाई या हिन्दू नेता को न ही सुना, न ही देखा…
6) और हाँ, साध्वी प्रज्ञा… तुम तो कनिमोझी (Kanimojhi) जैसी “समझदार” भी नहीं हो, वरना देश के करोड़ों रुपये लूटकर भी तुम कैमरों पर बेशर्मों की तरह मुस्करा सकती थीं, सेकुलर महिला शक्ति तुम पर नाज़ करती… करोड़ों रुपयों में तुम्हारा बुढ़ापा भी आसानी से कट जाता… लेकिन अफ़सोस तुम्हें यह भी करना नहीं आया…
7) साध्वी प्रज्ञा… तुम्हारे साथ दिक्कत ये भी है कि तुम अरुंधती रॉय (Arundhati Roy’s Anti-National Remarks) जैसी महिला भी नहीं हो, जो सरेआम भारत देश, भारतवासियों, भारत की सेना सहित सभी को गरियाने के बावजूद “फ़ाइव स्टार होटलों” में प्रेस कांफ़्रेंस लेती रहे…
8) साध्वी प्रज्ञा… तुम तो पूनम पाण्डे जैसी छिछोरी भी नहीं हो, कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र के “परिपक्व मीडिया”(?) की निगाह तुम पर पड़े, और वह तुम्हें कवरेज दे…
कहने का मतलब ये है साध्वी प्रज्ञा… कि तुम में बहुत सारे दोष हैं, जैसे कि तुम “हिन्दू” हो, तुम “भगवा” पहनती हो, तुम कांग्रेसियों-वामपंथियों-सेकुलरों के मुँह पर उन्हें सरेआम लताड़ती हो, तुम फ़र्जी मानवाधिकारवादी भी नहीं हो, तुम विदेशी चन्दे से चलने वाले NGO की मालकिन भी नहीं हो… बताओ ऐसा कैसे चलेगा?
सोचो साध्वी प्रज्ञा, जरा सोचो… यदि तुम कांग्रेस का साथ देतीं तो तुम्हें भी ईनाम में अंबिका सोनी या जयन्ती नटराजन की तरह मंत्रीपद मिल जाता…, यदि तुम वामपंथियों की तरफ़ “सॉफ़्ट कॉर्नर” रखतीं, तो तुम भी सूफ़िया मदनी (अब्दुल नासेर मदनी की बीबी) की तरह आराम से घूम-फ़िर सकती थीं, NIA द्वारा बंगलोर बस बम विस्फ़ोट की जाँच किये जाने के बावजूद पुलिस को धमका सकती थीं… यानी तुम्हें एक “विशेषाधिकार” मिल जाता। बस तुम्हें इतना ही करना था कि जैसे भी हो "सेकुलरिज़्म की चैम्पियन" बन जातीं, बस… फ़िर तुम्हारे आगे महिला आयोग, मानवाधिकार आयोग, सब कदमों में होते। महिलाओं के दुखों और पीड़ा को महसूस करने वाली तीस्ता जावेद सीतलवाड, शबाना आज़मी, मल्लिका साराभाई सभी तुमसे मिलने आतीं… तुम्हें जेल में खीर-मलाई आदि सब कुछ मिलता…।
लेकिन अब कुछ नहीं किया जा सकता… जन्म ने तुम्हें “हिन्दू” बना दिया और महान सेकुलरिज़्म ने उसी शब्द के आगे “आतंकवादी” और जोड़ दिया…। साध्वी प्रज्ञा, इस “सेकुलर, लोकतांत्रिक, मानवीय और सभ्य” देश में तुम इसी बर्ताव के लायक हो…
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