अनिल श्रीवास्तव
राहुल गांधी को
बदनाम करने की साजिश में नरेंन्द्र मोदी के शामिल होने का जाल बुन रही है सीबीआई
समाजवादी पार्टी
के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव भयभीत हैं। उन्हें डर है कि अगर उन्होंने केंद्र
की संप्रग सरकार से समर्थन वापस लिया तो केन्द्र सरकार उन्हें जेल में डाल सकती
है। पिछले दिनों उन्होंने अपना यह डर सार्वजनिक रूप से व्यक्त भी किया था। उनका
कहना था कि केन्द्र से लड़ना आसान नही है। केन्द्र सरकार के हजार हाथ होते हैं।
वह सीबीआई लगा देती है। मुकदमा बना देती है। जेल में डाल सकती है। आय से अधिक
संपत्त्िा मामले में केन्द्र सरकार के रवैये से हरदम किसी अनहोनी को लेकर आशंकित
रहने वाले मुलायम सिंह का डर बेबुनियाद नही है। केन्द्रीय सत्ता के राजनीतिक
विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये बदनाम सीबीआई एक अन्य मामले में मुलायम
सिंह यादव, उनके मुख्यमंत्री पुत्र
अखिलेश यादव व भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी गुजरात के मुख्यमंत्री
नरेंद्र मोदी को फंसाने के लिये अतिरिक्त प्रयास कर रही है।
सीबीआई के एक
डीएसपी स्तर के अधिकारी जांच के नाम पर अखिल भारत हिन्दू महासभा के नेता डॉ0 संतोष राय पर मुलायम सिंह यादव, उनके पुत्र अखिलेश यादव तथा बाद में गुजरात के
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बयान देने के लिये दबाव डाल रहे हैं। डीएसपी
यह भी चाहते हैं कि डॉ0 राय अमेठी में
वर्ष 2006 में हुये एक कथित
सामूहिक बलात्कार काण्ड में राहुल गांधी को बदनाम करने की साजिश में इन तीनों के
शामिल होने का बयान दें। डॉ0 संतोष राय ने
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिश और विभिन्न राजनीतिक दलों के शीर्ष नेतृत्व को पत्र
लिखकर सीबीआई की इस गैर कानूनी कार्रवाई की जानकारी दी है तथा खुद व परिवार को
सीबीआई से बचाने की गुहार लगाई है।
जिस मामले में
सीबीआई दबाव डालकर डॉ0 संतोष राय से
मुलायम-मोदी के खिलाफ बयान दिलवाना चाहती है, वह वर्ष 2006 का है। तब अपुष्ट
रूप से खबरें आई थीं कि अमेठी में 3 दिसंबर,
2006 को एक युवती से तथाकथित
सामूहिक बलात्कार हुआ था। इन अपुष्ट खबरों के मुताबिक वह युवती कांग्रेस पार्टी
की कार्यकर्ता थी और अमेठी दौरे पर गये राहुल गांधी से मिलने आई थी। कहते हैं कि
उस कथित सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद उस युवती ने पुलिस थाने में रिपोर्ट
लिखाने का प्रयास किया, लेकिन उसकी
रिपोर्ट नहीं लिखी गई। बाद में वह युवती और उसकी मां ने दिल्ली आकर कांग्रेस अध्यक्ष
सोनिया गांधी से मिलने का प्रयास किया, लेकिन उनसे उनकी मुलाकात नहीं हो सकी। प्रिंट मीडिया से गायब, लेकिन सोशल मीडिया पर बेहद चचित रहे इस कथित
सामूहिक बलात्कार कांड में राहुल गांधी और उनके विदेशी मित्रों के नाम भी उछले
थे। साइबर मीडिया में इस घटना की चर्चा के बाद कथित पीडि़ता और उसका परिवार घर
छोड़ कर गायब हो गया था।
सपा नेता व पूर्व
विधायक किशोर समरिते ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर पुलिस को उस
युवती और उसके परिवार को प्रस्तुत करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था।
समरिते ने अपनी याचिका में कहा था कि युवती और उसके परिवार को बंधक बनाकर रखा गया
है। इसी तरह की याचिका खुद को पीडि़ता का रिश्तेदार बताने वाले गजेन्द्र पाल
सिंह की तरफ से भी दाखिल की गयी थी। कोर्ट के आदेश पर पुलिसे ने उस युवती और उसके
परिवार को कोर्ट के सम्मुख प्रस्तुत किया तो उस युवती ने बताया कि उसका नाम
कीर्ति सिंह और उसके माता-पिता का नाम सुशीला और बलराम सिंह है तथा न तो उसे और न
ही उसके परिवार को किसी ने बंधक बना कर रखा था। उसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर
पचास लाख का जुर्माना लगा दिया था और एक हाई प्रोफाईल व्यक्ति को बदनाम करने के
प्रयास का स्वतंत्र संज्ञान लेते हुये मामले की सीबीआई जांच का निर्देश दिया था।
सीबीआई ने समरीते के खिलाफ धारा 120 बी (आपराधिक
साजिश), 181 (शपथ पूर्वक असत्य
बयान देना), 211 ( असत्य आरोप
लगाना) और 499-500 (बदनाम करना) के
अंतर्गत मामला दर्ज किया था। समरीते ने हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट
में अपील दायर की थी। बकौल डॉ0 संतोष राय इस
मामले की जांच के सिलसिले में ही सीबीआई ने मुलायम-मोदी का झूठा नाम लेने का दबाव
बनाया था।
डॉ0 संतोष राय के मुताबिक वह इस मामले में न तो
अभियुक्त हैं न ही पक्षकार। उन्हें इस मामले का सीबीआई से ही पता चला था। एक दिन
अचानक सीबीआई ने उन्हें बुला लिया और तबसे वह उन पर लगातार दबाव बनाये हुये हैं।
सीबीआई के डीएसपी अनिल कुमार यादव उन्हें अवैधानिक व गैर आधिकारिक रूप से फोन कर
सीबीआई के दफ्तर बुलाते रहते हैं। डॉ0 राय के अनुसार कई बार सीबीआई दफ्तर का चक्कर लगाने के बाद उन्होंने डीएसपी
से उन्हें गैर कानूनी ढंग से परेशान न करने को कहा तो डीएसपी ने धमकी दी कि अब व
उन्हें कानूनी रूप से फंसा देगा, क्योंकि उनके
पास ताकत है और वह कुछ भी झूठा केस बना सकता है। इसके बाद डीएसपी ने पूछताछ को
कानूनी रूप देते हुये डॉ0 संतोष राय को
भारतीय दण्ड संहिता प्रक्रिया की धारा 160 के अंतर्गत नोटिस भेजा, साथ ही यह
परामर्श दिया कि प्रैक्टिकल बनो और सत्ता से मत टकराओ। सीबीआई के डीएसपी का कहना
था कि उसके ऊपर इस बात का बहुत दबाव है कि वह (मुझसे डॉ0 राय से) यह बयान दिलवा दे कि मैंने मुलायम सिंह यादव,
अखिलेश यादव व कुछ अन्य नेताओं के कहने पर
राहुल गांधी को फंसाने का प्रयास किया था। डीएसपी ने यह भी कहा था कि उस पर मुझसे
अदालत में यह बयान दिलवाने की भी जिम्मेदारी थी। डॉ0 संतोष राय का कहना है कि 21 मार्च को जब वह सीबीआई के कार्यालय गये तो डीएसपी ने कहा कि
यादवों को भूल जाओ, अब नरेंद्र मोदी
का नाम लो और इकबालिया बयान दो कि मोदी के कहने पर राहुल जी को बदनाम करने की
साजिश रची थी।
डीएसपी ने डींग
मारते हुये कहा कि उसे पुलिस अधिकारियों, विशेषकर गुजरात के आईपीएस अधिकारियों को फंसाने में मजा आता है और गुजरात में
उसके नाम का आतंक है। डीएसपी ने जोर देकर कहा था कि वह तो (पपेट) है, उसे तो ऊपर वालों के आदेश मानने हैं और ऊपर
वालों के कहे अनुसार ही कर रहा है। होली से एक दिन पहले 26 मार्च को डीएसपी ने सीआरपीसी की धारा 160 के अंतर्गत 11 बजे नोटिस सर्व करवाकर डॉ0 संतोष राय को 12 बजे सीबीआई कार्यालय में उपस्थित होने का आदेश दिया, इसके साथ ही सीबीआई की एक टीम डॉ0 राय के घर पहुंच गई। डॉ0 राय ने पैंथर पार्टी के चेयरमैन और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ
वकील प्रोफेसर भीम सिंह से संपर्क किया। उनके हस्तक्षेप के बाद सीबीआई ने डॉ0 राय को एक दिन की मोहलत दी और होली के बाद 28 मार्च को सीबीआई कार्यालय में उपस्थित होने को
कहा। सीबीआई ने डॉ0 राय की कुछ
जांचे भी करवाई हैं और उनकी आवाज के नमूने भी लिये हैं जिनसे उन्हें कुछ लाभ नही
हुआ है। सीबीआई के नोटिस के मुताबिक उसे लगता है कि डॉ0 राय इस मामले से अवगत थे जबकि डॉ0 राय का कहना है कि किशोर समरीते ने उनसे फोन पर बात कर
उनसे अदालती लड़ाई में मदद मांगी थी।
उन्होंने समरीते
की अपने संगठन के अन्य अधिकारियों से मुलाकात करा दी थी जिन्होंने यह कहते हुये
किसी मदद से इंकार कर दिया था कि समरीते का उनकी विचारधारा में विश्वास नही है।
डॉ0 राय के अनुसार इसी आधार
पर सीबीआई उन्हें एक बिलकुल ही झूठे मामले में फंसाने और उनके माध्यम से प्रखर
हिन्दूवादी संगठनों को बदनाम करने की साजिश रच रही है। स्पष्ट है मुलायम सिंह,
उनके पुत्र उ0 प्र0 के मुख्यमंत्री
अखिलेश यादव और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सीबीआर्इ के रडार पर हैं। वह
इन तीनों के खिलाफ विशेष रूचि दिखा रही है, अन्यथा सीबीआर्इ का एक अदना सा डीएसपी देश के तमाम दूसरे
नेताओं को छोड़कर सिर्फ इन तीनों के ही नाम नही लेता। यह स्पष्ट भी है कि सीबीआर्इ
का डीएसपी अपने स्तर पर इतने बड़े नेताओं के नाम झूठे मामले में शामिल करवाने का
निर्णय नही ले सकता, जैसा कि वह खुद
स्वीकार करता है कि वह ''पपेट'' है और उपर वालों के आदेशों का पालन कर रहा है।
सीबीआर्इ के उच्च अधिकारी और उनके राजनीतिक आकाओं की पूरे मामले में संलिप्तता साफ
नजर आती है। डा0 संतोष राय ने
अपनी बातों की सत्यता जांचने के लिये अपना और डीएसपी का नार्को टेस्ट कराने का
आग्रह सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से किया है।
देश के तमाम
नेताओं को छोड़कर सिर्फ तीन नेताओं को सीबीआर्इ द्वारा अपने ही हिट लिस्ट में लेने
की वजह भी साफ है। संप्रग सरकार के संकट के समय 'स्टेंड बार्इ सपोर्ट’ के रूप में हरदम तत्पर रहने वाले मुलायम सिंह अगले आम चुनाव
के बाद केन्द्र में तीसरे मोर्चे की सरकार की संभावना को देखकर कांग्रेस से अलग और
कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकने वाले रास्ते पर चल रहे हैं। वह संप्रग सरकार को
समर्थन देते हुये भी कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर कांग्रेस का विरोध करने लगे हैं।
उन्होंने अपने लिये उ0 प्र0 की कुल 80 लोकसभा सीटों में से 60 जीतने का लक्ष्य बना रखा है। इतनी सीटें यदि वह जीत गये तो
केन्द्र की गद्दी पर उनके बैठने की संभावना काफी बढ़ सकती है। इसके परिणामस्वरूप
कांग्रेस की सीटें कम होंगी। वह मुलायम को पीएम पद पर नही देखना चाहेगी। इसलिये
कांग्रेस से कुछ अलग राह पर चलने की मुलायम की कसमकस के साथ ही वह और उनके पुत्र
अखिलेश यादव सीबीआर्इ के हिट लिस्ट में आ गये हैं। मुलायम की वजह से ही राहुल के
यूपी का मिशन-2012 फेल हुआ था और
मुलायम का मौजूदा रवैया कायम रहा तो उनका मिशन-2014 भी फेल हो सकता है। कांग्रेस की बेचैनी बढ़ रही है और इसी
के साथ मुलायम सिंह का डर भी। डीएमके के समर्थन वापस लेने क लगभग तुरंत बाद
स्टालिन के घर पर सीबीआर्इ के छापे ने उनके डर को और बढ़ा दिया है।
जहां तक मोदी का
सवाल है, वह हमेंशा से ही सीबीआर्इ
के निशाने पर रहे हैं। फर्जी इनकाउण्टर के जांच के नाम पर मोदी को फंसाने की खूब
कोशिशें हुयीं। उनके गृहराज्य मंत्री अमित शाह और कर्इ पुलिस अधिकारियों को जेल
जाना पड़ा। लेकिन मोदी की संलिप्तता साबित नही की जा सकी। अब, जब मोदी भाजपा की तरफ प्रधानमंत्री पद के
प्रत्याशी के रूप में हैं और कांग्रेस नेतृत्व के लिये एक बड़े चुनौती बनते जा रहे
हैं, तो सीबीआर्इ की उनमें नये
सिरे से दिलचस्पी जगी है। उल्लेखनीय है कि डा0 संतोष राय पर अमेठी के कथित सामूहिक बलात्कार काण्ड में
राहुल गांधी को बदनाम करने की साजिश में मोदी के शामिल होने का बयान दिलवाने का
दबाव डालने वाला डीएसपी भी डींग मार रहा है कि गुजरात में उसके नाम का आतंक है और
उसने वहां के कर्इ आर्इपीएस अधिकारियों को जेल की हवा खिला दी है। इस अधिकारी का
यह भी दावा था कि वह अपने उच्च अधिकारियों को खुश करने के कारण 14 साल से सीबीआर्इ में डंटा हुआ है। स्पष्ट है
कि ''कांग्रेस इन्वेस्टीगेशन
एजेंसी’’ के रूप में बदनाम हो चुकी
यह केन्द्रीय एजेंसी अब भी मोदी के खिलाफ कुछ न कुछ मामला बनाने की उधेड़-बुन में
लगी है।
दिलचस्प यह है कि
जिस समय सीबीआर्इ डा0 राय पर झूठा
दबाव बयान देने का दबाव बना रही थी, लगभग उसी समय मोदी भाजपा की अंदरूनी बाधाओं को पार कर फिर से राष्ट्रीय
क्षितिज पर अवतरित हो रहे थे। राजनाथ सिंह ने उन्हें भाजपा की सर्वोच्च डिसीजन
मेंकिंग बाडी संसदीय बोर्ड में शामिल किया था। भाजपा संसदीय बोर्ड में मोदी को
शामिल करने का सीधा अर्थ यह था कि वह पार्टी के शीर्ष स्तर पर होने वाले
विचार-विमर्श और निर्णय लेने की प्रक्रिया में सीधे तौर पर भाग लेंगे। संसदीय
बोर्ड में उनके समर्थकों की भरमार है, इसलिये यह निष्कर्ष भी निकाला जा सकता है कि पार्टी की राष्ट्रीय नीतियों पर
मोदी की छाप देखने को मिलेगी, लेकिन राष्ट्रीय
स्तर पर उभरने के कारण उनकी और पार्टी की दुश्वारियां भी बढ़ने की आशंका है।
सीबीआर्इ के अलावा कांग्रेस नेताओं की मोदी के खिलाफ घृणित भाषा में बयानबाजियां
और उनकी उपलबिधयों को झुठलाने के अजीब-अजीब तर्क तो बस शुरूआत है। जैसे-जैसे
राष्ट्रीय स्तर पर मोदी की सक्रियता बढ़ेगी, वैसे-वैसे उनका विरोध भी तीखा और तीव्रतर होता जायेगा।
इसलिये केन्द्रीय स्तर पर उनकी सक्रियता का भाजपा और उनके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय
जनतांत्रिक गठबंधन के बृहत्तर हितों पर पड़ने वाले प्रभावों-दुष्प्रभावों का
फूंक-फूंक कर आकलन किया जा रहा है।
भाजपा के एक
वरिष्ठ नेता के मुताबिक यदि पार्टी के सामने यह विकल्प उपस्थित हुआ कि मोदी के साथ
सबसे बड़ी पार्टी के रूप में एक बार फिर विपक्ष में बैठे या मोदी के बिना राजग के
साथ सरकार बनाएं तो वह दूसरा विकल्प चुनेगी। मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी
घोषित करने से सबसे बड़ा खतरा राजग के घटक दलों के विखरने का था, पार्टी का एक बड़ा तबका कह रहा था कि यदि राजग
विखरता है, तो भी मोदी को
प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया जाना चाहिये और यह हुआ भी।
मोदी को
प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित कर चुनाव में उतारने वाले नेताओं का कहना है
कि पूरे देश में इस समय स्पष्ट सत्ता विरोधी रूझान है। आम आदमी कांग्रेस से त्रस्त
है। ऐसे में यदि एक स्पष्ट, सशक्त और सक्षम
विकल्प प्रस्तुत नही किया गया तो सत्ता विरोधी वोट बंट जायेगा, जिससे न तो भाजपा को लाभ होगा न ही उसके सहयोगी
दलों को। इन नेताओं के अनुसार मोदी तेजी से आम आदमी की पसंद बनते जा रहे हैं।
संप्रग सरकार के कुशासन और ढेरों घपलों-घोटालों की तुलना में मोदी का सुशासन और
भ्रष्टाचार से मुक्त छवि उन्हें मजबूत विकल्प बनाते हैं। इन नेताओं के मुताबिक
मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने पर भाजपा अपने चुनावी इतिहास के सर्वश्रेष्ट
प्रदर्शन 182 सीटों का आंकड़ा
भी पार कर सकती है। उनके नेतृत्व के कारण यदि जदयू जैसे कुछ दल भाजपा का साथ
छोड़ते भी हैं तो उनके जाने से जितनी सीटों का नुकसान होगा उससे कहीं ज्यादा सीटें
भाजपा जीत लेगी। यदि समर्थक नेताओं के अनुसार 1998 और 1999 में सीटों को
सबसे ज्यादा 182 सीटों पर जीत
मिली थी। 1998 में इनको मिले
वोटों का प्रतिशत सबसे ज्यादा 25.6 प्रतिशत था,
जो क्रमश: घटते-घटते 2009 में 18.8 प्रतिशत रह गया।
अनुकूल परिसिथतियों में भी पिछले चुनावों में भी भाजपा का प्रदर्शन चिंताजनक था।
भाजपा के खराब
प्रदर्शन के कर्इ कारणों में से एक कारण लाल कृष्ण आडवाणी का नेतृत्व भी था जो
मतदाताओं में मजबूत विकल्प के रूप में उत्साह का संचार नही कर सका था। आडवाणी की
अपनी छवि निर्माण की कोशिशों और जिन्ना की मजार पर मत्था टेकने को भाजपा के कोर
मतदाताओं ने पसंद नही किया था। मोदी को भाजपा के कोर मतदाताओं वृहत्तर भगवा परिवार
का समर्थन तो मिल ही रहा है, मंहगार्इ और
भ्रष्टाचार से त्रस्त आम जनता भी उन्हें पसंद कर रही है। मोदी समर्थकों का कहना है
कि इतिहास के नाजुक मोड़ पर यदि भाजपा नेतृत्व ने दृढ़ता से ही सही निर्णय नहीं
लिया होता तो वह फिर ''रिवर्स गियर’’
में चल सकती थी।
भाजपा के अंदर और
पूरे भगवा परिवार में मोदी समर्थकों की संख्या दिन-पर-दिन बढ़ती जा रही है लेकिन
उनका विरोध करने वालों की संख्या भी कम नही है। मोदी विरोधी विभिन्न राजनीतिक दलों
व राजग के घटक दलों के बीच उनकी स्वीकार्यता को लेकर सबसे ज्यादा सशंकित हैं। इसी
आधार पर वे मोदी का सबसे ज्यादा मोदी का विरोध भी करते हैं। इस खेमें के नेताओं का
कहना है यदि मोदी के बगैर राजग की सरकार बनती है तो भाजपा को यह विकल्प चुनना
चाहिये। इन नेताओं का यह भी कहना है कि आज गठबंधन का युग है, इसमें सबको साथ लेकर चलने की जरूरत है। दूसरे
दलों से सामंजस्य बनाये बिना चुनाव जीतना या सरकार चलाना मुशिकल है इसलिये भाजपा
को हर हाल में राजग की एकता को बनाये रखने का प्रयास करना चाहिये। यदि राजग की
एकता कायम रही तो कांग्रेस से नाराज होकर संप्रग से बाहर निकालने वाले दल तथा अभी
किसी भी गठबंधन में शामिल नही छोटे-छोटे दल राजग के साथ आ सकते हैं। अभी जहां
भाजपा मजबूत नही है या जहां उनका व्यापक आधार नही है, वहां ये दल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। बोर्ड में
शामिल किये जाने से मोदी का कद बढ़ा है। संसदीय बोर्ड में अब जब भी कोयी चर्चा
होगी तो उसमें खुद मोदी शरीक होते हैं और चर्चा खुद उनके बारे में हो तो स्वाभिक
रूप से अन्य नेता खुलकर अपने विचार रखने में हिचक महसूस करेंगे। संसदीय बोर्ड की
जिन बैठकों में यह मौजूद नही रहेंगे, उनमें भी उनका विरोध करने का साहस शायद ही किसी अन्य नेता में हो। लेकिन अब भी
उनके लिये दिल्ली का रास्ता पूरी तरह निष्कंटक नही हुआ है।
चिकित्सक से बने
हिन्दूवादी नेता
डा0 संतोष राय कटटर हिन्दूवादी नेता हैं। वैसे वह 'एपिडेमिक डिजीजेज एण्ड पबिलक हेल्थ के डाक्टर
हैं, एमबीबीएस करने के बाद
एम्स से एमडी किया है। लेकिन हिन्दूवादी विचारों से प्रभावित होकर वह नाथूराम
गोडसे के छोटे भार्इ गोपाल गोडसे के कहने पर 1996 में हिन्दू महासभा में शामिल हो गये थे। एक कटटर
हिन्दूवादी होने के नाते वह भार्इ परमानंद, डा0 बीएस मुंजे,
वीर सावरकर के सिद्धांतों में विश्वास करते हैं
और संवैधानिक माध्यम से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना को अपना उददेश्य बताते हैं। डा0 राय की लेखन, गायन, अभिनय आदि में
रूचि है। गोडसे पर एक फिल्म भी शीघ्र ही प्रदर्शित करने की उनकी एक योजना है। वह
हिन्दूमहासभा के वरिष्ठ नेता हैं तथा सुप्रीमकोर्ट में राम जन्मभूमि मामले में
वादी हैं।
साभार- लोकस्वामी,
हिन्दी मैगजीन, पाक्षिक