Monday, February 28, 2011

वीर सावरकर की सशस्त्र क्रांति ने देश को स्वतंत्र कराया-डा0 संतोष राय

अखिल भारत हिन्दू महासभा ने हिन्दू हृदय सम्राट वीर विनायक दामोदर सावरकर की 45वीं पुण्यतिथि ‘हिन्दू रक्षा दिवस’ के रूप में  लोदी काॅलोनी, नई दिल्ली में स्थित ‘सावरकर पार्क’ में मनाई। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में हिन्दू समाज की रक्षा और उत्थान में अपना अमूल्य योगदान देने वाले पूर्व सांसद बैकुण्ठ लाल शर्मा ‘प्रेम’, हिन्दू महासभा के नेता रविन्द्र कुमार द्विवेदी, प्रो0 ए0के0 मल्होत्रा, रवि रंजन सिंह सहित हिन्दू और सिख समाज की बीसों विभूतियों को ‘सावरकर स्मृति चिह्न’ देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन हिन्दू महासभा के वरिष्ठ नेता डाॅ0 गोविन्द बल्लभ जोशी ने की।
इस अवसर पर बी.एल. शर्मा प्रेम ने कहा कि आज देश की परिस्थिति 1947 से भी खतरनाक है। आज की छद्म धर्मनिरपेक्षता एवं तुष्टीकरण के कारण देश में कई पाकिस्तान बनने की तैयारी पर है। सरदार उजागर सिंह ने सावरकर जी के बारे में कहा कि जैसे सिख गुरूओं ने हिन्दुस्तान व हिन्दुओं  को बचाने के लिये अपना निरंतर बलिदान दिया, उसी प्रकार से सावरकर एवं सावरकर बंधुओं ने इस राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए घनघोर यातनाएं सही जिसका वर्णन शब्दों में नही किया जा सकता।
     अपने संबोधन में डाॅ0 संतोष राय ने वीर सावरकर को महात्मा गाँधी से भी ज्यादा विराट व्यक्तित्व और देशभक्त बताया। उन्होंने दोनों की तुलना करते हुये कहा कि मोहनदास करमचंद्र गाँधी की छद्म अहिंसा की अपेक्षा वीर सावरकर की सशस्त्र क्रांति ने देश को स्वतंत्र कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन तुष्टीकरणपरस्त इतिहासकारों ने इतिहास में उनके योगदान को कभी उचित सम्मान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि वीर सावरकर ने ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ ग्रंथ की रचना करके अंग्रेज इतिहासकारों के छद्मता की पहचान कराई थी, उसी तरह हिन्दू महासभा भारतीय स्वतंत्रता समर के दूसरे चरण का नया इतिहास लिखवाकर महात्मा गाँधी की ब्रिटिश साम्राज्य के प्र्रति सहिष्णुता और छद्म अहिंसा के सच को  देश के सामने प्रस्तुत करेगी।
प्रो0 ए0के0 मल्होत्रा ने कहा कि आज सावरकर के नाम पर कुछ लोग अपनी दुकानदारी चला रहे हैं व सावरकर के अमूल्य सिद्धांतों की अवहेलना करके राष्ट्र को दिग्भ्रमित कर रहे हैं ऐसे लोगों को आने वाली पीढ़ियां कभी नही क्षमा करेगी।
कर्नल डीके कपूर ने अपने संबोधन में कहा कि भारत सरकार ने 1962 के युद्ध के उपरांत सावरकर के सिद्धांतों को अपनाया जिससे भारत 1965 के भारत-पाक युद्ध में विजयी हुआ।
सरदार अमिर सिंह बिर्क ने कहा कि सावरकर के पुण्य तिथि मनाने का सही अर्थ तब होगा जब संपूर्ण हिन्दू समाज को एक सूत्र में पिरोकर माला का स्वरूप प्रदान करें।
वयोवृद्ध क्रांतिकारी संत स्वामी श्रीराम प्रपन्नाचार्य ने गंधासुर मर्दन काव्य (गांधी) के कुछ पंक्तियों को सावरकर जी के पुण्य स्मृति में समर्पण करते हुये कहा कि नाथूराम गोडसे ने यदि गांधी का वध नही किया होता तो हैदराबाद भी हिन्दुस्तान में नही होता।
   हिन्दू महासभा के वरिष्ठ नेता बाबा नन्द किशोर मिश्रा ने कहा कि हिन्दू स्वराज्य के बिना देश का बहुसंख्यक समाज सुरक्षित नहीं रह सकता। इसके लिये उन्होंने हिन्दू महासभा की नीतियों को अपनाकर वीर सावरकर के सपनों को साकार करने का संकल्प लेने का आह्वान किया।
मध्य प्रदेश हिन्दू महासभा के जुझारू युवा नेता शिवकांत शुक्ला ने कहा कि सावरकर के नीतियों के कारण ही नजफगढ़ एवं किशनगंज पाकिस्तान का सीमा नही बन पाया।
हिन्दू महासभा के नेता रविन्द्र कुमार द्विवेदी ने अपना सम्मान ग्रहण करने से पूर्व अपने संबोधन में कहा कि धर्मांतरण हिन्दू समाज के अस्तित्व के लिये सबसे बड़ा खतरा है। जब तक धर्मांतरण समाप्त नही होगा तब तक भारत में नये पाकिस्तान का निर्माण होता रहेगा। उन्होंने आगे कहा कि लोकतंत्र में धर्मांतरण की इजाजत नही दी जा सकती।
 इस कार्यक्रम में हिन्दू महासभा दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष दीपक चोपड़ा, महामंत्री सपन दत्ता, हिन्दू महासभा के प्रवक्ता जंगबहादुर क्षत्रिय व भारी संख्या में उपस्थित वीर सावरकर के अनुयायियों ने वीर सावरकर की आदमकद प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करके उनके बताये मार्ग पर चलने का का प्रण किया।
 

जजिया :मुहम्मदी जबरदस्ती !!

B.N. Sharma                                                   Represent: Dr. Santosh Rai

 

विश्व में अरब एकमात्र देश है ,जहाँइस्लाम से पूर्व कोई राजा या शासक नहीं था .अरब ले लोग यातो अपने ऊंट किराये पर देकर सामान पंहुचाते थे ,या काफिलों को लूट कर गुजारा करते थे .मुहमद के पूर्वज भी यही करते थे .मुहम्मद अरबों की यह आदत जानता था .इसलिए जब उसने खुद को रसूल घोषित किया तो ,तो अरब के लुटेरों ने उसे अपना सरदार बना लिया .और जिहाद के नाम से लूट करने लगे .


मुहम्मद चाहता था कि कोई ऐसा उपाय किया जाये जिस से नियमित कमी होती रहे .इसलिए उसने अपने शातिर दिमाग से "जजिया "का अविष्कार कर लिया ,और कुरान में लिख दिया "जो इस्लाम को अपना धर्म नहीं मानते ,उन से इतना लड़ो ,के वह अपमानित होकर जजिया देने पर विवश हो जाएँ "


सूरा -तौबा 9 :29 .

जजियाجزية का अर्थ फिरौती Extortion Money .रंगदारी ,हफ्ता या poll tax है .जो गैर मुस्लिमों से लिया जाता है .और जिन लोगों पर जजिया का नियम लागू होता है उनको "ذِمّي जिम्मी "कहा जाता है .अर्थात सभी गैर मुस्लिम जिम्मी है .मुहम्मद इतना धूर्त था क़ि उसने जजिया की कोई दर निश्चित नहीं की थी .ताकि मुसलमान मनमाना जजिया वसूल कर सकें .मुहम्मद जजिया से अपना घर भरना ,और लोगों को मुसलमान बननेपर मजबूर करना चाहता था .फिर मुहम्मद की मौत के बाद भी मुस्लिम बादशाहों ने यही नीति अपनाई थी मुहम्मद गैर मुस्लिमों से झूठ कहता था कि हम जजिया के धन से तुम्हें सुरक्षा प्रदान करेंगे ,लेकिन मुहम्मद उस धन को अपने निजी कामों ,जैसे अपनी शादियों ,हथियार खरीदने ,और दावतें करने में खर्च कर देता था .उसके लोग बीमार ,गरीब ,और स्त्रियों को भी नहीं छोड़ते थे .और जो जजिया नहीं दे सकता था उसकी औरतें उठा लेते थे .यहांतक क़त्ल भी कर देते थे .जजिया तो एक बहाना था .मुहम्मद लोगों को इस्लाम कबूल करने पर मजबूर करना चाहता था .जैसा मुसलमानों ने भारत में किया था .


जजिया के बारे में हदीसों और इतिहास में यह लिखा है -

1 -जजिया क्यों

"उम्मर खत्ताब ने कहा कि,जिम्मियों से जोभी जजिया लिया जाता है ,वह उनकी भलाई में खर्च किया जाता है "

बुखारी -जिल्द 2 किताब 23 हदीस 475

"उमरने कहा कि जजिया गैर मुस्लिमों की हिफाजत के लिए लिया जाता है "अबू दाऊद-किताब 19 हदीस 2955

"अबू आफाक ने कहा की ,रसूल ने कहा कि,जजिया मूर्ख जिम्मियों को सबक सिखाने के लिए वसूला जाता है ,ताकि वस् समझ जाएँ कि अब उनकी जान हमारे हाथों में है "बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 256

2 -फिरौती के लिए

"रसूल ने दूबह के शाहजादे उकैगिर को पकड़वा लिया और कैद कर लिया .रसूल ने उसे तभी छोड़ा ,जब उसके लोगों ने जजिया की पूरी रकम चूका दी थी "अबू दाउद-किताब 11 हदीस 1301

"रसूल ने उमर इब्न अब्दुल अजीज को को तभी छोड़ा था ,जब उसने जजिया की रकम चूका दी थी ,और इस्लाम कबूल किया था "

मुवत्ता-जिल्द 17 किताब 24 हदीस 46

"एक सीरियन किसान हिशाम बिन हाकिम रस्ते से जा रहा था ,तभी रसूल ने उसे पड़ाव लिया .और उस से जजिया की मांग की .जब उसने इंकार किया तो रसूल ने उसे तपती हुई गर्म रेत पर खड़ा कर दिया .शाम को जब एक ईसाई ने उसके बदले जजिया चूका दिया तो रसूल ने हिश्शाम को छोड़ दिया ."

सही मुस्लिम -किताब 30 हदीस 6328 और 6330

3 -निजी लाभ के लिए जजिया

"उमर खत्ताब जजिया के तौर पर एक जवान ऊंट लेकर आये ,और उसे काट कर गोश्त पकाया .फिर रसूल और उनकी औरतों ने फलों के साथ गोश्त को प्लेट में रखकर खाया .इसके बाद रसूल के साथियों ने खाया "मुवत्ता-जिल्द 17 किताब 24 हदीस 45

"अबू हुरैरा ने कहा कि जब रसूल ने आयशा के साथ शादी की थी ,तो शादी खर्चा निकालने के लिए ,मदीना और आसपास के यहूदियों और ईसाइयों से जबरन जजिया वसूल किया था "बुखारी -जिल्द 5 किताब 58 हदीस 234

4 -लोगों को दबाने के लिए

"अबू हुरैरा ने कहा कि रसूल का आदेश था कि ,तुम जिम्मियों से इतना अधिक जजिया वसूल करो ,जिस से वह जैसे तैसे जिन्दा रह सकें ,और उनकी संख्या न बढ़ सके "बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 288

"अबू हुरैरा ने कहा कि ,रसूल ने खा ,तुम जिम्मियों से इतना अधिक जजिया वसूल करो कि,वह हमेशा कर्ज से दबे रहें ,कहीं ऐसा न हो कि वह इतने सरकश हो जाये कि ,जजिया देना ही बंद कर दें "बुखारी -जिल्द ४ किताब 53 हदीस 404

5 -इस्लाम फ़ैलाने के लिए

"अबू मूसा ने कहा कि रसूल ने कहा कि, अल्लाह ने मुझे विजय प्राप्त की है ,और सारे जिम्मियों को मेरे अधीन कर दिया है .इस लिए मुझे अधिकार है कि मैं जिम्मियों से जजिया वसूल कर सकूँ .और इस्लाम को मजबूती प्रदान करूँ "बुखारी -जिल्द 4 किताब 85 हदीस 220

"अबू हुरैरा ने कहा कि ,रसूल नेअपने सैनिकों से कहा कि अगर गैर मुस्लिम इस्लाम कबूल करते ,या जजिया नहीं देते तो ,उनसे युद्ध करके उनको इसके लिए विवश कर दो "सही मुस्लिम -किताब 19 हदीस 4294

6 -हथियार खरीदने के लिए

"अबू हुरैरा ने कहा कि ,रसूल को हथियारों के लिए धन कि जरुरत थी .इसलिए वह बहरैन पर हमला करके हमें जजिया वसूल करने के लिए ले गए .और हमने वहां के जिम्मियों से जबरन जजिया वसूला ,और हथियार ख़रीदे "सही मुस्लिम -किताब 42 हदीस 7065

7 -वसूली का तरीका

"रसूल ने मुहमद अल मुगीरा से कहा ,जाओ जहाँ भी गैर मुसिम मिलें उससे जजिया मांगो ,यदि वह जजिया नहीं दें तो उनसे युद्ध करो .और यहाँ तक लड़ो के वह जजिया देने और अलह कि इबादत करने पर मजबूर हो जाएँ "बुखारी -जिल्द 4 किताब 53 हदीस 386

"अबू हुरैरा ने कहा कि ,रसूल ने अबू उबैदा बिन अब्दुल्लाह को जजिया वसूल करने को भेजा ,उसने लोगों से कहा कि ,सब अपने घरों से बहार आ जाएँ ,और जिस के पास जो कुछ हो वह रसूल के लिए दे दें .डर के मारे लोगों ने बर्तन भी दे दिए "बुखारी जिल्द 7 किताब 76 हदीस 437

8 -मृतकों से भी जजिया

"अबू हुरैरा ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,अगर की जिम्मी बिना जजिया चुकाए ही मर जाये ,तो उसके घर के लोगों से दोगुना जजिया वसूल करो ."बुखारी -जिल्द 9 किताब 83 हदीस 17 .और बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 268

9 -बलात्कार से जजिया वसूलो

"एक गरीब औरत ने रसूल से निवेदन किया कि ,उसका पति बीमार है ,इसलिए असूल करने वाले से जजिया कुछ कम करने को कहें .लें उस अधकारी ने उस औरत से बलात्कार कर दिया .रसूल ने कहा तुमने उचित ढंग से जजिया वसूल किया है "बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 46

"उमरने कहा कि रसूल ने कहा है ,कि जिम्मी चाहे मौत के बिस्तर पर पड़ा हो ,उससे इतना जजिया वसूल करो कि वह बिस्तर से कभी उठ नहीं सके "बुखारी -जिल्द 2 किताब 23 हदीस 475

10 -जिम्मी कि हत्या गुनाह नहीं

"अबू मूसा ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,यदि जजिया वसूल करते समय किसी जिमी कि हत्या भी कर दी जाये तो ,वसूल करने वाला अपराधी नहीं माना जायेगा .कुसूर सिर्फ जिमी का माना जायेगा "बुखारी -जिल्द 1 किताब 3 हदीस 111

11 -जजिया कब हटेगा

"अबू हुरैरा ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,जजिया की बदौलत एक ऐसा समय आयेगा की ,सरे धर्म नष्ट हो जायेंगे ,और सिर्फ इस्लाम ही बाक़ी रहेगा .इसके बाद जजिया की कोई जरुरत नहीं रहेगी "अबू दाऊद-किताब 37 हदीस 4310

12 -जजिया की दरें

"उमर खत्ताब उन जगहों से प्रति व्यक्ति चार दीनार जजिया लेते थे जहाँ सोने के सिक्के चलते थे .और जहाँ चंडी के सिक्के चलते थे वहां से 40 दिरहम वसूल करते थे "मुवत्ता-जिल्द 17 किताब 24 हदीस 44

"रसूल ने कहा कि,जिम्मी के पास सिक्के नहीं हों ,औए वस् सलाम करके कुछ और देना चाहे तो उसके बर्तन और खाने का अनाज लेलो ,चाहे उसके पास खाने को कुछ नहीं बचे "बुखारी -जिल्द 4 किताब 53 हदीस 388

13 -धमकी भरे पत्र भेजो

"अबू हुरैरा ने कहा कि रसूल ने लोगों को पत्र भेजे थे ,जिनमे जजिया कि मांग की गयी थी .रसूल ने एक अमीर एला( aila )पत्रको भेजकर धमकाया था कि ,अगर वह नियमित जजिया नहीं देगा तो उसके लोग सुरक्षित नहीं रहेंगे "बुखारी -जिल्द 2 किताब 24 हदीस 559

14 -जजिया किन से लिया जाये

"उमर खत्ताब पाहिले तो पारसियों से जजिया नहीं लेता था .लेकिन जब रसूल को पता चला तो वह बोले कि ,जो भी अल्लाह के आलावा और किसी कि इबादत करते हैं , और रसूल पर ईमान नहीं रखते उन सब से जजिया जरुर लिया करो "बुखारी -जिल्द 4 किताब 53 हदीस 384

भारत में जितने भी मुस्लिम शासक हुए हैं सभी ने हिन्दुओं का खून चूसा है .और मनमाने टेक्स वसूल किये है .जब दिल्ली की गद्दी पर खिलजियों की हुकूमत हुई तो अला उद्दीन खिलजीعلاوؤالدّين خلجي (1296 -1316 ) ने अपने काजी अता उल मुल्क से पूछा कि मैं हिन्दुओं से कैसा व्यवहार करूँ .काजी बोला तुम हिन्दुओं को सिर्फ नजराना और शुकराना देने वाला समझो .यानि जब कोई हिन्दू किसी मुस्लिम पदाधिकारी के सामने जाये तो उसे नजराना के रूप में कुछ धन दे .और जब और जब अधिकारी जाने लगे तब भी शुकराना के तौर पर कुछ धन फिर से दे .अगर मुस्लिम अधिकारी हिन्दू से चांदी का सिक्का मांगे तो हिन्दू उसे सोने का सिक्का देकर उसे खुश करे .यदि अधिकारी थूकना चाहे ,तो हिन्दू अपना मुंह खोल दे ,और उसे मुंह में थूकने दे खिलजी बोला काजी तुझे इस्लाम का पूरा ज्ञान है

(तारीखे फिरोजशाही -जिया उद्दीन बरनी )

इसी तरह शेख हमदानी ने अपनी किताब "जखिरतुल मुल्क "में लिखा है औरंगजेब ने जब 1679 में जजिया लागु किया तो ,आदेश दिया कि हिन्दू कोई नया बुतखाना नहीं बना सकते और न उसकी मरम्मत कर सकतेहैं .अगर हिन्दू किसी सम्बन्धी कि मौत पर जोर जोर से रोयेंगे तो जुरमाना लगेगा .शंख बजने ,घंटा बजने पर भी टेक्स लगेगा .अगर हिन्दू जजिया नहीं दे सकें तो उनके मंदिरों को तोड़कर जजिया वसूला जायेगा ,या उनकी लड़कियों को कनीज बना लिया जायेगा .मुसलमान इसी लिए औरंगजेब की तारीफ करते हैं .वह मुसल्लामानों का आदर्श है.

मुसलमानों ने इसी जजिया की ताकत से कई देश मुसलमान बना दिए है .इरान में सन 1884 और ट्युनिसिया और अल्जीरिया में सन 1855 तक जजिया लिया जाता था .इसके कारण वहां के गर मुस्लिम यातो पलायन कर गए या विवश होकर मुसलमान बन गए .यही मुहम्मद चाहता .जिहाद की तरह जजिया भी मुसलमानों का एक आतंक ही है .तालिबानों ने सिक्खों से सन 16 अप्रेल 2009 को 2 करोड़ और 28 जून 2010 सीखो और हिन्दुओं से 6 करोड़ रूपया जजिया वसूल किया था .और सिखों ने चूका दिया था

अगर पंजाब के हिन्दू सिख मिलकर केवल पांच सौ प्रमुख मुले मौलवियों को पकड़ लेते और तालिबानों से कहते या तो अफागानितन के सिखों का जजिया माफ़ करो ,या फिर हम दूसरी तरह से जजिया चूका देंगे .अफसोस कि सिखों कि तलवार म्यान से बाहर नहीं निकली .


सिक्खों को पता होना चाहियेथा कि अगर तालिबानों के पास हजारों सिक्ख हैं ,तो पंजाब में लाखों मुसलमान मौजूद है


इसी तरह हमें कश्मीरियों से झंडा चढाने की इजाजत मांगने क्या जरूरत है .अगर हम कश्मीर के सामान को पजाब के आगे नहीं जाने दें तो ,कश्मीरी अलगाववादी भूखे मर जायेंगे .

Writer's Blog is : http://www.bhandafodu.blogspot.com/

Saturday, February 19, 2011

वीर सावरकर की पुण्यतिथि की तैयारी जोरों पर


डॉ. संतोष राय

नई दिल्ली। अखिल भारत हिन्दू महासभा आगामी 26 फरवरी, 2011 को वीर सावरकर की पुण्यतिथि मनायेगी। जिसके लिये हिन्दू महासभा में जोर-शोर से तैयारी चल रही है। यह पुण्यतिथि दिल्ली स्थित  लोदी गार्डेन, वीर सावरकर पार्क में मनाया जायेगा। कार्यक्रम की शुरूआत 1 बजे से होगा जो 3 बजे तक चलेगा। इस कार्यक्रम में पूरे देश से हिन्दू महासभा के नेता आकर भाग लेंगे। ज्ञात हो कि सावरकर स्वयं हिन्दू महासभा के ख्यातिप्राप्त नेता था।

 उनका हिन्दू महासभा को आगे बढ़ाने में  भारी योगदान था। उनका प्रसिद्ध वाक्य था-‘‘ राजनीति का हिन्दूकरण और सैनिकों का हिन्दूकरण’’। हिन्दू महासभा का कहना है कि ये वीर दामोदर सावरकर ही थे कि वे हमेशा सैनिकों का मनोबल बढ़ाते रहते थे जिससे देश  के   सैनिकों ने  कई बार पाकिस्तानी 
 सैनिकों को मैदान में हराया।


आंध्रा प्रदेश हिन्दू महासभा का प्रांतीय अधिवेशन 


नई दिल्ली। हिन्दू महासभा का आंध्र प्रदेश का प्रांतीय अधिवेशन 27-28 फरवरी, 2011 को आंध्रा प्रदेश के हैदराबाद शहर में होगा। इस कार्यक्रम में केन्द्रीय स्तर व प्रांतीय स्तर के नेता भाग लेंगे। इस कार्यक्रम में केन्द्रीय कार्यालय से हिन्दू महासभा के वरिष्ठ नेता डा0 संतोष राय प्रतिनिधित्व करेंगे।

कर्नाटक हिन्दू महासभा का प्रांतीय अधिवेशन

नई दिल्ली। 10 मार्च, 2011 को कर्नाटक हिन्दू महासभा का प्रांतीय अधिवेशन बेंग्लोर में आयोजित होगा। इस कार्यक्रम में देश की राजधानी दिल्ली व अन्य प्रांतों के हिन्दू महासभाई नेता उपस्थित होंगे। दिल्ली से कार्यक्रम का प्रतिनिधित्व डा0 संतोष राय जी करेंगे।


Friday, February 18, 2011

Sikhs seek compensation for terror losses in Pakistan, But No Hindus ?



By Mohammad S.Solanki (Executive Editor)

Repreesent: Dr. Santosh Rai

(Photo : Deserted Sikh Gurdawara in Abbottabad, NWFP or Khyber Pakhtunkhwa State of Pakistan)

Islamabad : Sikhs in Pakistan's Orakzai Agency bordering Afghanistan have asked the government to compensate the community for the huge losses inflicted on them by terrorists. 

A group of Sikh leaders said that terrorists had burnt 26 houses, 18 shops and some factories of their community, Dawn reported Monday. The leaders included Parjeet Singh, Mahan Singh, Siren Singh and Dilbar Singh.

Sikhs were forced to pay Jazia - tax levied on non-Muslims - totalling Rs.6 million to the guerrillas. But they were still forced to leave their homes following a steep increase in militant activities.

Orakzai Agency is in the Federally Administered Tribal Areas (FATA) in the northwest of Pakistan that bore the brunt of terror attacks.

The Pakistan Army battled the Taliban in the mountainous region, and the rebels were evicted from many areas after fierce fighting.

The majority of the displaced Sikhs have returned to their original areas but are leading a miserable life as they have lost their properties.

They have asked the government to compensate them.

Local official Riaz Mahsud said the administration had assessed the losses of Sikhs and forwarded the report to higher authorities.

India had in 2009 taken up the issue of treatment of minorities with Islamabad after the Taliban persecuted Sikhs in parts of Pakistan.

Militants had then demolished the homes of Sikhs in Orakzai region after they failed to pay Jazia. Over 35 Sikh families have lived in Ferozkhel in Orakzai Agency for decades.

The Taliban had also occupied two shops and three homes of Sikhs.

 (Photo : Hindu women's celebrating Lord Ramnavami or Bhagvan Ramchandra birthday in Peshawar City of NWFP, Pakistan)

Note from Editorial : Peshawar the capital of NWFP derives its name from a Sanskrit word Pushpapura, meaning the city of flowers. Peshawar is old, so old that its origins are lost in antiquity. Founded over 2,000 years ago by the Kushan Kings of Gandhara, it has had almost as many names as rulers.

In the 9th century the provincial capital was shifted by the Hindu Shahi kings to Hund on the Indus. After the invasion of Mahmood of Ghazni, all traces of gentle, artistic Gandhara were lost.

Historically in Khyber Pakhtunkhwa State (NWFP) or FATA Hindus have being living for centuries alone with various ethnics like Pashtuns and Hazara Muslims community with peace and harmony.Many of the old Hindu Peshawaris still wear their traditional Pathani kurta pyjamas and Pathani kulla turban. But since 9/11 in America things have changed here, Recently alone with many other communities Hindu community have also gone throw lot of persecution by extremist Taliban and also during war against terrorism led by Pakistani Army backed by western powers. Many poor Hindu families have either taken shelter/refugee in Peshawar Gurdwara (Sikh temples) or rich Hindus have opted for India.

Atrocities on Minority Hindus in Peshawar, Northwest Frontier Province, Pakistan
http://www.petitiononline.com/taxila01/ 

Rajesh Kumar (PHP Islamabad) : Among minorities, Sikhs and Christians groups have backup with government establishment and even International Sikhs charity groups from Canada,USA and UK are helping local Sikhs groups in Pakistan. But unfortunately no International Hindu charity organization has ever cared for Hindus in NWFP or mostly rest of Pakistan.

A.Randhawa (PHP NWFP) : These discrimination against Hindus and with no active functional Hindu Charity organization has encouraged many poor persecuted Hindus to either convert to Islam, Christianity or Sikhism or run toward secular India for survival.

Dayal Kakkar (PHP Peshawar) : During Talibanzation period many Hindus have migrated to India from FATA and NWFP areas and some have taken refugee in historical Sikh Gurdwaras or Temples inPeshawar City alone, where they have or are in process of converting day-by-day into Sikhism. Lack of unity among various fractional Hindus group like Balmiki samaj, Schedule Caste or Upper Caste has also led us in Delusion.

Ramesh Kumar (PHP Director) : Hindus need to be united and should equally demand for rights or compensation from Pakistan government in similar to Sikhs community or any other persecuted community in Pakistan. We will raise the issue in upcoming workshop in Islamabad soon held by HRF/SCRM of Pakistan.

Gopinath K.Rajput (Executive Editor) : In Pakistan mostly Christian and Sikhs missionary are active from beside of Muslims charity organizations, So Hindus are left with no option either migrate to India or some other safe places or just denounce there faith for charity help. International Hindu groups should come forward to show solidarity with small but very crucial Hindu community in north western Pakistan.

NOTE : PHP is presently connected to various Hindu groups in Peshawar and rest of NWFP. If any one has any question, comment or wants to contribute in any way is welcome to contact as 

Thursday, February 17, 2011

Real Face of Islam






Represetnt:Dr. Santosh Rai

B.N. SHARMA



rEPRESENT: dR. SANTOSH RAI




विश्व के लगभग सभी धर्मों में स्वर्ग और नर्कके बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है.इन में सभी धर्मों की बातों में काफी समानता पायी जाती है.

लेकिन स्वर्ग या जन्नत के बारे में जो बातें लिखी गयी हैं वह सिर्फ पुरुषों को रिझाने वाली बातें लिखी गयी हैं.जैसे मरने के बाद जन्नत में खूबसूरत जवान हूरें मिलेंगी ,जो कभी बूढ़ी नहीं होंगी .उनकी उम्र हमेशा १४-१५ साल की रहेगी.जन्नत वाले किसी भी हूर से शारीरिक सम्बन्ध बना सकेंगे.कुरआन में एक और ख़ास बात बतायी गयी है कि जन्नत में हूरों के अलावा सुन्दर लडके भी होंगे ,जिन्हें गिलमा कहा गया है .


शायद ऐसा इसलिए कहा गया होगा कि अरब और ईरान में समलैंगिक सेक्स आम बात है. आज भी पाकिस्तान में पुरुष वेश्यावृत्ति होती है .


इसलिए अक्सर जन्नत के मजे लूटने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं.लोगों ने जन्नत के लालच में दुनिया को जहन्नुम बना रखा है .इस जन्नत के लालच और जहन्नुम का दर दिखा कर सभी धर्म गुरुओं की दुकानें चल रही हैं .भोले भाले लोग जन्नत के लालच में मरान्ने मारने को तैयार हो जाते हैं ,यहाँ तक खुद आत्मघाती बम भी बन जाते हैं.


पाहिले शुरुआती दौर में तो मुसलमान हमलावर लोगों को तलवार के जोर पर मुसलमान बनाते थे.लेकिन जब खुद मुसलाम्मानों में आपस में युद्ध होने लगे तो मुआसलामानों के एक गिरोह इस्माइली लोगों ने नया रास्ता अख्तियार किया .जिस से बिना खून खराबा के आसानी से आसपास के लोगोंको मुसलमान बनाता जा सके.
नाजिरी इस्मायीलिओं के मुजाहिद और धर्म गुरु "हसन बिन सब्बाह "सन-१०९०--११२४ ने जब मिस्र में अपनी धार्मिक शिक्षा पुरीकर चकी तो वह सन १०८१ में इरान के इस्फ़हान शहर चला गया .और इरान के कजवीन प्रान्त में प्रचार करने लगा.वहां एक किला था जिसे अलामुंत कहा जाता है.यह किला तेहरान से १०० कि मी दूर,केस्पियन सागर के पास है .उस समय किले का मालिक सुलतान मालिक शाह था.उनदिनों चारों तरफ युद्ध होते रहते थे.कभी सल्जूकी कभी फातमी आपस में लड़ते थे.इसलिए सुलतान ने किले की रक्षा के लिए अलवीखानदान के एक व्यक्ती कमरुद्दीन खुराशाह को नियुक्त कर दिया था.उनदिन किला खाली पडा था..हसन बिन सब्बाह ने किला तीन हजार दीनार में खरीद लिया.
हसन को वह किला उपयोगी लगा ,क्यों कि किला सीरिया और तेहरान के मार्ग पर था .जिसपर काफिलों से व्यापार होता था.


किला एक सपाट फिसलन वाली पहाडी पर है .किले की ऊंचाई ८४० मीटर है .लेकिन वहां पानी के सोते हैं.किले की लम्बाई ४०० मीटर और चौडाई ३० मीटर है..इसके बाब हसन ने अपने लोगों और कुछ गाँव के लोगों के साथ मिलकर काफिले वालों से टेक्स लेना शुरू करदिया. इससे हसन को काफी दौलत मिली.उसके बाद हसन ने किले में तहखाने और सुरंगें भी बनवा लीं.जब किला हराभरा हो गया तो ,हसन ने किले में एक नकली जन्नत भी बनाली.जैसा कुरआन में कहा गया है,हसन आसपास के गाँव से अपने आदमियों द्वारा सुन्दर ,और कुंवारी जवान लडकियां उठावा लेताथा. और लड़किओं को अपनी जन्नत के तहखानों में कैद कर लेता था.हसन ने इस नकली जन्नत में एक नहर भी बनवाई थी ,जिसमे हमेशा शराब बहती रहती थी.किले वह सब सामान थे जो कुरआनमें जन्नत के बारे में लिखे हैं.


फिरजब हसन के लोग आसपास के गाँव में धर्म प्रचार करने जाते तो लोगों को विश्वास में लेकर उन्हें हशीस पिलाकर बेहोश कर देते थे.और जब लोग बेहोश हो जाते तो उनको उठाकर किले में ले जाते थे .उनसे कहते कि अल्लाह तुम से खुश है ,अब तुम जन्नत में रहो.लोग कुछ दिनों तक यह नादान लोग खूब अय्याशी करते और समझते थे कि वे जन्नत में हैं.फिर कुछ दिनों मौजा मस्ती करवाने के बाद लोगों दोबारा हशीश पिलाकर वापिस गाँव छोड़ दिया जाता .एक बार जन्नत का चस्का लग जाने के बाद लोग फिर से जन्नत की इच्छा करने लगते तो ,उनसे कहा जाता कि अगर फिर से जन्नत में जाना चाहते हो तो हमारा हुक्म मानो .लोग कुछ भी करने को तैयार हो जाते थे.ऐसे लोगों को हसिसीन कहा जाता है .मार्को पोलो ने इसका अपने विवरणों में उल्लेख किया है आज भी लोग जन्नत के लालच में निर्दोषों की हत्याएं कर रहे हैं.


यह जन्नत बहुत समय तक बनी रही.जब हलाकू खान ने १५ दिसंबर १२५६ को इस किले पर हमला किया तो किले के सूबे दार ने बिना युद्ध के किला हलाकू के हवाले कर दिया.जब हलाकू किले के अन्दर गया तो देखा वहां सिर्फ अधनंगी औरतें ही थी.हलाकू ने उन लडाकिन से पूछा तुम कौन हो ,तो वह वह बोलीं "अना मलाकुन"यानी हम हूरें हैं.

यह किला आज भी सीरिया और ईरान की सीमा के पास है .सन २००४ के भूकंप में किले को थोडासा नुकसान हो गया .लेकिन आज बी लोग इस किले को देखने जाते हैं .और जन्नत की हकीकत समाज जाते हैं कि जैसे यह जन्नत झूठी है वैसे ही कुरआन में बतायी गयी जन्नत भी झूठ होगी
यह लेख पाकिस्तान से प्रकाशित पुस्तक "इस्माईली मुशाहीर "के आधार पर लिखा गया है.प्रकाशक अब्बासी लीथो आर्ट .लयाकत रोड -कराची
बी एन शर्मा -भोपाल १९ मई २०१०


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सावधान काफिरों के लिये फतवा जारी है



DR. SANTOSH RAI


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क्या गैर-मुस्लिम पर इस्लाम स्वीकार करना अनिवार्य है ?


Dr. Santosh Rai
सऊदी अरब.रियाज़
इस्लामी आमन्त्रण एंव निर्देश कार्यालय
रब्वा
1430.2009

क्या गैर-मुस्लिम पर इस्लाम
स्वीकार करना अनिवार्य है ?
, हिन्दी ख्

शैख़ मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह
अनुवादः अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
।सस पेसंउीवनेमण्बवउ तपहीजे ंतम वचमद

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
मैं अति मेहरबान और दयालु अल्लाह के नाम से आरम्भ करता हूँ।
हर प्रकार की प्र्रशंसा सर्व जगत के पालनहार अल्लाह तआला के लिए योग्य है, तथा अल्लाह की कृपा एंव शांति अवतरित हो अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद पर, तथा आप के साथियों, आप की संतान और आप के मानने वालों पर।

क्या काफिर ((गैर-मुस्लिम) पर इस्लाम स्वीकार करना अनिवार्य है ?

इसके विषय में सऊदी अरब के एक महा विद्वान मुहम्मद बिन सालेह बिन उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया यह एक प्रश्न हैं जो पाठकों की सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है, आशा है कि यह फत्वा उपर्युक्त मस्अले की पर्याप्त जानकारी प्राप्त करने में लाभदायक सिद्ध होगा।((अ.र.)
प्रश्न:
क्या काफिर (गैर-मुस्लिम) पर इस्लाम स्वीकार करना अनिवार्य है ?


उत्तर:
हर काफिर पर, चाहे वह ईसाई या यहूदी ही क्यों न हो, इस्लाम धर्म को स्वीकारना अनिवार्य है, क्योंकि अल्लाह तआला अपनी किताब में फरमाता है:
قُلْ يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنِّي رَسُولُ اللَّهِ إِلَيْكُمْ جَمِيعًا الَّذِي لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ يُحْيِي وَيُمِيتُ فَآَمِنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ النَّبِيِّ الْأُمِّيِّ الَّذِي يُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَكَلِمَاتِهِ وَاتَّبِعُوهُ لَعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ ;سورة الأعرافरू158द्ध
‘‘(ऐ मुहम्मद ! ) आप कह दीजिए कि ऐ लोगो! मैं तुम सभी की ओर उस अल्लाह का भेजा हुआ (पैग़म्बर) हूँ, जो आसमानों और ज़मीन का बादशाह है, उसके अतिरिक्त कोई (सच्च) पूज्य नहीं, वही मारता और जिलाता है। इसलिए तुम अल्लाह पर और उसके रसूल, उम्मी (अनपढ़) पैग़म्बर पर ईमान लाओ, जो स्वयं भी अल्लाह पर और उसके कलाम पर ईमान रखते हैं, और उनकी पैरवी करो ताकि तुम्हें (सच्चे और सफलता के रास्ते का) मार्गदर्शन प्राप्त हो।’’ (सूरतुल आराफ: 158)


अतः तमाम लोगों पर अनिवार्य है कि वे अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर ईमान लायें, किन्तु इस्लाम धर्म ने अल्लाह तआला की दया और हिकमत से गैर-मुस्लिमों के लिए इस बात को भी जाईज़ ठहराया है कि वो अपने धर्म पर बाक़ी रहें, इस शर्त के साथ कि वो मुसलमानों के आदेशों (नियमों) के अधीन रहें, अल्लाह तआला का फरमान है:
قَاتِلُوا الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَلَا بِالْيَوْمِ الْآَخِرِ وَلَا يُحَرِّمُونَ مَا حَرَّمَ اللَّهُ وَرَسُولُهُ وَلَا يَدِينُونَ دِينَ الْحَقِّ مِنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ حَتَّى يُعْطُوا الْجِزْيَةَ عَنْ يَدٍ وَهُمْ صَاغِرُونَ ;سورة التوبةरू29द्ध
‘‘जो लोग अहले किताब (अर्थात यहूदा और ईसाई) में से अल्लाह पर ईमान नहीं लाते और न आखिरत के दिन पर (विश्वास रखते हैं ) और न उन चीज़ों को हराम समझते हैं जो अल्लाह और उसके पैग़म्बर ने हराम घोषित किए हैं, और न दीने-हक़ (सत्य-धर्म ) को स्वीकारते हैं, उन से जंग करो यहाँ तक कि वह अपमानित हो कर अपने हाथ से जिज़्या (टैक्स) दें।’’ (सूरतुत्तौबा:29)

सहीह मुस्लिम में बुरैदा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित हदीस में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब किसी लश्कर (फौज) या सरिय्या (फौजी दस्ता जिस में आप स्वयं शरीक न रहे हों ) का अमीर नियुक्त करते तो आप उसे अल्लाह तआला से डरने और अपने सहयात्री मुसलमानों के साथ भलाई और शुभचिंता का आदेश देते और फरमाते:
‘‘उन्हें तीन बातों की ओर बुलाओ (विकल्प दो), वह उन में से जिसको भी स्वीकार कर लें, तुम उनकी ओर से उसको क़बूल कर लो और उन से (जंग करने से ) रूक जाओ।’’ (सहीह मुस्लिम हदीस नं.ः1731)

इन तीन बातों में से एक यह है कि वह जिज़्या दें।

इसलिए उलमा (बुद्धिजीवियों ) के कथनों में से उचित कथन के अनुसार यहूदियों एंव ईसाईयों के अतिरिक्त अन्य काफिरों (गैर-मुस्लिमों) से भी जिज़्या स्वीकार किया जायेगा।
सारांश यह कि ग़ैर-मुस्लिमों के लिए अनिवार्य है कि वो या तो इस्लाम में प्रवेश करें या इस्लामी अहकाम (शासन) के अधीन हो जायें। और अल्लाह ही तौफीक़ देने वाला है ।
المملكة العربية السعودية दृ الرياض
المكتب التعاوني للدعوة والإرشاد وتوعية الجاليات بالربوة
2009م दृ 1430ه‍

﴿ هل يجب على الكافر أن يعتنق الإسلام؟ ﴾
त्र् باللغة الهندية »

فضيلة الشيخ محمد بن صالح العثيمين رحمه الله

ترجمةरू عطاء الرحمن ضياء الله
حقوق الطبع والنشر لعموم المسلمين
http://www.hindusthangaurav.com/books/hi_Is_it_Oblibatory_for_Non-M...