डॉ0 संतोष राय
सामान्यतः
जो व्यक्ति ईश्वर , परलोक ,और कर्म फल के नियम पर विश्वास नहीं करता उसे नास्तिक कहा जाता .चूँकि
बौद्ध और जैन ईश्वर को नहीं मानते इसलिए अज्ञानवश हिन्दू उनको नास्तिक कह देते हैं
.यद्यपि बौद्ध और जैन कर्म के सिद्धांत को मानते हैं .और पाप पुण्य पर विश्वास
करते हैं .लेकिन जो लोग निरंकुश होकर सिर्फ भौतिकतावाद और अपना सुख और स्वार्थ
साधने में लगे रहते हैं ,
वास्तव में वही नास्तिक होते हैं .ऐसे
लोगों मान्यता एक प्रसिद्द कहावत से समझी जा सकती है ,
" लूटो खाओ मस्ती में , आग लगे बस्ती में "
ऐसे
लोग सभी मर्यादाएं , परंपरा ,नियम और लोक लज्जा की परवाह नहीं करते .भले देश और समाज बर्बाद हो
जाये .भगवान बुद्ध और महावीर के समय ऐसे ही विचार रखने वाला एक व्यक्ति चार्वाक था
, जिसके लाखों अनुयायी हो गए थे , उसके विचारों को ही चार्वाक दर्शन कहा
जाता है .
1-चार्वाक दर्शन
चार्वाक
दर्शन एक भौतिकवादी नास्तिक दर्शन है। यह मात्र प्रत्यक्ष प्रमाण को मानता है तथा
पारलौकिक सत्ताओं को यह सिद्धांत स्वीकार नहीं करता है। यह दर्शन वेदबाह्य भी कहा
जाता है।
वेदवाह्य
दर्शन छ: हैं- चार्वाक, माध्यमिक, योगाचार, सौत्रान्तिक,
वैभाषिक, और आर्हत। इन सभी में वेद से असम्मत सिद्धान्तों का प्रतिपादन है।
चार्वाक
प्राचीन भारत के एक अनीश्वरवादी और नास्तिक तार्किक थे। ये नास्तिक मत के प्रवर्तक
वृहस्पति के शिष्य माने जाते हैं। बृहस्पति और चार्वाक कब हुए इसका कुछ भी पता
नहीं है। बृहस्पति को चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र ग्रन्थ में अर्थशास्त्र में भी
उल्लेख किया है ."सर्वदर्शनसंग्रह "में चार्वाक का मत दिया हुआ मिलता
है पद्मपुराण में लिखा है कि असुरों को
बहकाने के लिये बृहस्पति ने वेदविरुद्ध मत प्रकट किया था
2-भोगवाद ही नास्तिकता है
भोगवाद
,चरम स्वार्थपरायण मानसिकता और अय्याशी
ही नास्तिक होने की निशानी है , चाहे
ऐसे व्यक्ति किसी भी धर्म से सम्बंधित हों .चार्वाक की उस समय कही गयी बातें आजकल
के लोगों पर सटीक बैठती हैं ,चार्वाक
ने कहा था ,
न
स्वर्गो नापवर्गो वा नैवात्मा पार्लौकिकः
नैव
वर्नाश्रमादीनाम क्रियश्चफल्देयिका .
अर्थ
-न कोई स्वर्ग है ,न उस् जैसा लोक है .और न आत्मा ही
पारलौकिक वस्तु है .और अपने किये गए सभी भले बुरे कर्मों का भी कोई फल नहीं मिलता
अर्थात सभी बेकार हो जाते हैं .
यावत्
जीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्वा घृतं पीबेत
भस्मीभूतस्य
देहस्य पुनरागमनं कुतः .
अर्थात-जब
तक जियो मौज से जियो और कर्ज लेकर घी पियो मतलब मौज मस्ती करो
कैसी
चिंता, शरीर के भस्म हो जाने के बाद फिर वह
वापस थोड़े ही आती है।
"पीत्वा पीत्वा पुनः पीत्वा यावतपतति
भूतले , पुनरुथ्याय वै पीत्वा
पुनर्जन्म न
विद्यते .
अर्थ
-पियो ,पियो खूब शराब पियो ,यहाँ तक कि लुढ़क कर जमीन पर गिर जाओ .
और होश में आकर फिर से पियों .क्योंकि फिरसे जन्म नही होने वाला .
वेद
शाश्त्र पुराणानि सामान्य गाणिका इव, मातृयोनि
परित्यज विहरेत सर्व योनिषु .
अर्थ
-वेद , और सभी शास्त्र और पुराण तो वेश्या की
तरह हैं .तुम सिर्फ अपनी माँ को छोड़कर सभी के साथ सहवास कर सकते हो .
3-यूनानी नास्तिक
भारत
की तरह यूनान (Greece ) भी एक प्राचीन देश है ,और वहां की संस्कृति भी काफी समृद्ध थी
.वहां भी नास्तिक लोगों का एक बहुत बड़ा समुदाय था .जिसे एपिक्युरियनिस्म (Epicureanism)कहा जाता है .जिसे ईसा पूर्व 307 में एपिक्युरस (Epicurus)नामके एक व्यक्ति ने स्थापित किया था
.ग्रीक भाषा में ऐसे विचार को "एटारेक्सिया (Ataraxia Aταραξία )भी कहा जाता है .इसका अर्थ उन्माद , मस्ती ,मुक्त होता है .इस दर्शन(Philosophy ) का उद्देश्य मनुष्य को हर प्रकार के नियमों , मर्यादाओं .और सामाजिक . कानूनी बंधनों
से मुक्त कराना था .ऐसे लोग उन सभी रिश्ते की महिलाओं से सहवास करते थे . जिनसे
शारीरिक सम्बन्ध बनाना पाप और अपराध समझा जाता था .
ऐसे
लोग जीवन को क्षणभंगुर मानते थे .और मानते थे कि जब तक दम में दम है हर प्रकार का
सुख भोगते रहो .क्योंकि फिर मौका नहीं मिलेगा .जब इन लोगों को स्वादिष्ट भोजन मिल
जाता था तो यह लोग इतना खा लेते थे कि इनके पेट में साँस लेने की जगह भी नहीं रहती
थी . तब यह लोग उलटी करके पेट खाली कर लेते थे .स्वाद लेने के लिए फिर से खाने
लगते थे .
4-असली नास्तिक सेकुलर
सेकुलर
प्राणियों की एक ऐसी प्रजाति है ,अनेकों
प्राणियों गुण पाए जाते हैं .गिरगिट की तरह रंग बदलना , लोमड़ी की तरह मक्कारी ,कुत्तों की तरह अपने ही लोगों पर
भोंकना ,अजगर की तरह दूसरों का माल हड़प कर
लेना .और सांप की तरह धोके से डस लेना .इसलिए ऐसे प्राणी को मनुष्य समझना बड़ी
भारी भूल होगी . ऐसे लोग पाखंड और ढोंग के साक्षात अवतार होते हैं .दिखावे के लिए
ऐसे लोग सभी धर्मों को मानने का नाटक करते हैं, लेकिन
वास्तव में इनको धर्म या ईश्वर से कोई मतलब नहीं होता . अपने स्वार्थ के लिए यह
लोग ईश्वर को भी बेच सकते हैं .ना यह किसी को अपना सगा मानते है .और न कोई
बुद्धिमान इनको अपना सगा मानने की भूल करे .
वास्तव
में आजकल के सेकुलर ही नास्तिक हैं .बौद्ध और जैन नहीं .मुलायम सिंह , लालू प्रसाद ,दिग्विजय सिंह ,और अधिकांश कांगरेसी सेकुलर- नास्तिक
है .
http://en.wikipedia.org/wiki/C%C4%81rv%C4%81ka
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