मयूर दूबे
प्रस्तुति- डॉ0 संतोष राय
19 मई 1910 को मुम्बई -
पुणे के बीच 'बारामती' में संस्कारित
राष्ट्रवादी हिन्दु परिवार मेँ जन्मेँ वीर नाथूराम गोडसे एक ऐसा नाम है जिसके
सुनते ही लोगोँ के मन-मस्तिष्क मेँ एक ही विचार आता है कि गांधी का हत्यारा।
इतिहास मेँ भी गोडसे जैसे परम राष्ट्रभक्त बलिदानी का इतिहास एक ही पंक्ति मेँ
समाप्त हो जाता है । गांधी का सम्मान करने वाले गोडसे को गांधी का वध आखिर क्योँ
करना पडा, इसके पीछे क्या
कारण रहे, इन कारणोँ की कभी
भी व्याख्या नही की जाती। नाथूराम गोडसे एक विचारक, समाज सुधारक, पत्रकार एवं सच्चा राष्ट्रभक्त था और गांधी का
सम्मान करने वालोँ मेँ भी अग्रिम पंक्ति मेँ था किन्तु सत्ता परिवर्तन के पश्चात
गांधीवाद मेँ जो परिवर्तन देखने को मिला, उससे नाथूराम ही नहीँ करीब-करीब सम्पूर्ण
राष्ट्रवादी युवा वर्ग आहत था।
गांधीजी इस देश के विभाजन के पक्ष मेँ नहीँ थे।
उनके लिए ऐसे देश की कल्पना भी असम्भव थी, जो किसी एक धर्म के अनुयायियोँ का बसेरा हो।
उन्होँने प्रतिज्ञयापूर्ण घोषणा की थी कि भारत का विभाजन उनकी लाश पर होगा। परन्तु
न तो वे विभाजन रोक सके, न नरसंहार का वह
घिनौना ताण्डव, जिसने न जाने कितनोँ
की अस्मत लूट ली, कितनोँ को बेघर
किया और कितने सदा - सदा के लिए अपनोँ से बिछड गये। खण्डित भारत का निर्माण
गांधीजी की लाश पर नहीँ, अपितु 25 लाख हिन्दू, सिक्खोँ और
मुसलमानोँ की लाशोँ तथा असंख्य माताओँ और बहनोँ के शीलहरण पर हुआ। किसी भी
महापुरुष के जीवन मेँ उसके सिद्धांतोँ और आदर्शो की मौत ही वास्तविक मौत होती है।
जब लाखोँ माताओँ, बहनोँ के शीलहरण
तथा रक्तपात और विश्व की सबसे बडी त्रासदी द्विराष्ट्रवाद के आधार पर पाकिस्तान का
निर्माण हुआ। उस समय गांधी के लिए हिन्दुस्थान की जनता मेँ जबर्दस्त आक्रोश फैल
चुका था। प्रायः प्रत्येक की जुबान पर एक ही बात थी कि गांधी मुसलमानोँ के सामने
घुटने चुके हैं। रही-सही कसर पाकिस्तान को 55 करोड रुपये देने के लिए गांधी के अनशन ने पूरी
कर दी। उस समय सारा देश गांधी का घोर विरोध कर रहा था और परमात्मा से उनकी मृत्यु
की कामना कर रहा था। जहाँ एक और गांधीजी पाकिस्तान को 55 करोड रुपया देने
के लिए हठ कर अनशन पर बैठ गये थे, वही दूसरी और पाकिस्तानी सेना हिन्दू निर्वासितोँ को अनेक
प्रकार की प्रताडना से शोषण कर रही थी, हिन्दुओँ का जगह-जगह कत्लेआम कर रही थी, माँ और बहनोँ की
अस्मतेँ लूटी जा रही थी, बच्चोँ को जीवित
भूमि मेँ दबाया जा रहा था।
जिस समय भारतीय सेना उस जगह पहुँचती, उसे मिलती जगह -
जगह अस्मत लुटा चुकी माँ - बहनेँ, टूटी पडी चुडियाँ, चप्पले और बच्चोँ के दबे होने की आवाजेँ। ऐसे
मेँ जब गांधीजी से अपनी जिद छोडने और अनशन तोडने का अनुरोध किया जाता तो गांधी का
केवल एक ही जबाब होता - "चाहे मेरी जान ही क्योँ न चली जाए, लेकिन मैँ न तो
अपने कदम पीछे करुँगा और न ही अनशन समाप्त करूँगा।"
आखिर मेँ नाथूराम गोडसे
का मन जब पाकिस्तानी अत्याचारोँ से ज्यादा ही व्यथित हो उठा तो मजबूरन उन्हेँ
हथियार उठाना पडा। नाथूराम गोडसे ने इससे पहले कभी हथियार को हाथ नही लगाया था। 30 जनवरी 1948 को गोडसे ने जब
गांधी पर गोली चलायी तो गांधी गिर गये। उनके इर्द-गिर्द उपस्थित लोगोँ ने गांधी को
बाहोँ मेँ ले लिया। कुछ लोग नाथूराम गोडसे के पास पहुँचे। गोडसे ने उन्हेँ
प्रेमपूर्वक अपना हथियार सौप दिया और अपने हाथ खडे कर दिये। गोडसे ने कोई प्रतिरोध
नहीँ किया। गांधी वध के पश्चात उस समय समूची भीड मेँ एक ही स्थिर मस्तिष्क वाला
व्यक्ति था, नाथूराम गोडसे।
गिरफ्तार होने के बाद गोडसे ने डाँक्टर से शांत मस्तिष्क होने का सर्टिफिकेट मांगा, जो उन्हेँ मिला
भी। नाथूराम गोडसे ने न्यायालय के सम्मुख अपना पक्ष रखते हुए गांधी का वध करने के 150 कारण बताये थे।
उन्होँने जज से आज्ञा प्राप्त कर ली थी कि वह अपने बयानोँ को पढकर सुनाना चाहते हैं। अतः उन्होँने वो 150 बयान माइक पर पढकर सुनाए। लेकिन नेहरु सरकार ने(डर से) गोडसे के गांधी वध के कारणोँ पर रोक लगा दी जिससे वे बयान भारत की जनता के समक्ष न पहुँच पाये। गोडसे के उन क्रमबद्ध बयानोँ मेँ से कुछ बयान आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा जिससे आप जान सके कि गोडसे के बयानोँ पर नेहरु ने रोक क्योँ लगाई ? तथा गांधी वध उचित था या अनुचित ? दक्षिण अफ्रिका मेँ गांधीजी ने भारतियोँ के हितोँ की रक्षा के लिए बहुत अच्छे काम किये थे लेकिन जब वे भारत लोटे तो उनकी मानसिकता व्यक्तिवादी हो चुकी थी। वे सही और गलत के स्वयंभू निर्णायक बन बैठे थे। यदि देश को उनका नेतृत्व चाहिये था तो उनकी अनमनीयता को स्वीकार करना भी उनकी बाध्यता थी। ऐसा न होने पर गांधी कांग्रेस की नीतियोँ से हटकर स्वयं अकेले खडे हो जाते थे। वे हर किसी निर्णय के खुद ही निर्णायक थे। सुभाष चन्द्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहते हुए गांधी की नीति पर नहीँ चलेँ। फिर भी वे इतने लोकप्रिय हुए की गांधीजी की इच्छा के विपरीत पट्टाभी सीतारमैया के विरोध मेँ प्रबल बहुमत से चुने गये।
उन्होँने जज से आज्ञा प्राप्त कर ली थी कि वह अपने बयानोँ को पढकर सुनाना चाहते हैं। अतः उन्होँने वो 150 बयान माइक पर पढकर सुनाए। लेकिन नेहरु सरकार ने(डर से) गोडसे के गांधी वध के कारणोँ पर रोक लगा दी जिससे वे बयान भारत की जनता के समक्ष न पहुँच पाये। गोडसे के उन क्रमबद्ध बयानोँ मेँ से कुछ बयान आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा जिससे आप जान सके कि गोडसे के बयानोँ पर नेहरु ने रोक क्योँ लगाई ? तथा गांधी वध उचित था या अनुचित ? दक्षिण अफ्रिका मेँ गांधीजी ने भारतियोँ के हितोँ की रक्षा के लिए बहुत अच्छे काम किये थे लेकिन जब वे भारत लोटे तो उनकी मानसिकता व्यक्तिवादी हो चुकी थी। वे सही और गलत के स्वयंभू निर्णायक बन बैठे थे। यदि देश को उनका नेतृत्व चाहिये था तो उनकी अनमनीयता को स्वीकार करना भी उनकी बाध्यता थी। ऐसा न होने पर गांधी कांग्रेस की नीतियोँ से हटकर स्वयं अकेले खडे हो जाते थे। वे हर किसी निर्णय के खुद ही निर्णायक थे। सुभाष चन्द्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहते हुए गांधी की नीति पर नहीँ चलेँ। फिर भी वे इतने लोकप्रिय हुए की गांधीजी की इच्छा के विपरीत पट्टाभी सीतारमैया के विरोध मेँ प्रबल बहुमत से चुने गये।
गांधी को दुःख हुआ, उन्होँने कहा की
सुभाष की जीत गांधी की हार है। जिस समय तक सुभाष चन्द्र बोस को कांग्रेस की गद्दी
से नहीँ उतारा गया तब तक गांधी का क्रोध शांत नहीँ हुआ। मुस्लिम लीग देश की शान्ति
को भंग कर रही थी और हिन्दुओँ पर अत्याचार कर रही थी। कांग्रेस इन अत्याचारोँ को
रोकने के लिए कुछ भी नहीँ करना चाहती थी, क्योकि वह मुसलमानोँ को खुश रखना चाहती थी।
गांधी जिस बात को अनुकूल नहीँ पाते थे उसे दबा देते थे। इसलिए मुझे यह सुनकर
आश्चर्य होता है की आजादी गांधी ने प्राप्त की। मेरा विचार है की मुसलमानोँ के आगे
झुकना आजादी के लिए लडाई नहीँ थी। गांधी व उसके साथी सुभाष को नष्ट करना चाहते थे
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2 comments:
lekh adhura hai kripya poora kare.
i hate idiot gandhi sala ullu tha
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