Saturday, August 20, 2011

मैं भी अन्‍ना भक्‍त अन्‍ना भक्‍तों से गाली खाने आया हूं

दिवस गौड़

प्रस्‍तुति:  डॉ0 संतोष राय

मित्रों लेख शुरू करने से पहले यहाँ आने वाले सभी पाठकों से आग्रह है कि कृपया इस लेख को ध्यान से पढ़ें|

मित्रों अन्ना हजारे का अनशन जनलोकपाल मुद्दे को लेकर चल ही रहा है| अनशन दिल्ली में है लेकिन उसकी आग देश भर में लगी हुई दिखाई दे रही है| मैं तो यहाँ जयपुर में देख रहा हूँ कि जो कहीं नहीं हो रहा वो कल दिनांक १८ अगस्त को जयपुर में हो गया| आन्दोलनकारियों ने सुबह से ही रैली निकालनी शुरू कर दी| इसमें यहाँ के व्यापारी भी शामिल थे| उन्होंने शहर भर में घूम घूम कर आधे दिन के लिए अन्ना के समर्थन में दुकाने व बाज़ार बंद रखने की याचना लोगों से की| कोई जोर ज़बरदस्ती नहीं थी, जिसकी इच्छा हो वो बंद करे जिसकी इच्छा न हो वो न करे| अधिकतर दुकाने व बाज़ार कल बंद रहे|
इसके अतिरिक्त रोज़ शाम को शहर के मुख्य मार्गों व चौराहों पर लोग एकत्र हो जाते हैं| ये लोग किसी दल के नहीं होते, इनका कोई नेता नहीं होता, केवल अपनी इच्छा से सड़कों पर उतर आए हैं व अन्ना के समर्थन में नारे लगा रहे हैं, मोमबत्तियां जला रहे हैं|
तीन दिनों से मेरा भी टाइम टेबल कुछ ऐसा ही चल रहा है| दिन भर अपना काम करते हैं व शाम को सड़कों पर उतर आते हैं| रोज़ भीड़ बढ़ती ही जा रही है| कल तो इतनी भीड़ थी कि लग रहा था कि पूरा देश ही अन्ना के समर्थन में आ गया है| खैर अपने को तो यूपीए सरकार या कहिये कांग्रेस पार्टी को घेरने का बहाना चाहिए|

देश भर का मीडिया भी जैसे सरकार गिराने पर तुला है| जहां देखो अन्ना, अन्ना और केवल अन्ना| जब भी, जहां भी कोई समाचार देखो तो बस अन्ना|

एक नारा जो बार बार सुनाई दे रहा है, वह है - "अन्ना एक आंधी है, देश का दूसरा गांधी है|"

बिलकुल मैं भी आज यही कह रहा हूँ| अन्ना दूसरा गांधी ही है| और अंग्रेजों की संज्ञा इस कांग्रेस को दी जा सकती है| बिलकुल ऐसा ही लग रहा है जैसे १९४७ से पहले का कोई सीन चल रहा हो| देश भर में रैलियाँ प्रदर्शन हो रहे हैं, जैसे गांधी जी के समर्थन में व अंग्रेजों के विरोध में १९४७ से पहले होते थे|

किन्तु अंग्रेजों को इनसे कोई फर्क नहीं पड़ता था| जिसकी प्रकृति ही अत्याचारी हो, उसे इन नारों व भाषणों से भला क्या समस्या होती? अंग्रेजों को कौनसा यहाँ भारतीयों का दिल जीतना था? उनका मकसद तो भारत को लूटना व भारतीयों पर अत्याचार करना था| और वही काम आज कांग्रेस कर रही है| इन काले अंग्रेजों ने अपने गुरु गोरे अंग्रेजों से बहुत कुछ सीखा है|

याद रखने वाली बात यह है कि आज़ादी की लड़ाई केवल गांधी ने नहीं लड़ी| लेकिन अंग्रेजों ने केवल गांधी जी को हाई लाईट कर यह दिखाया कि भारत की आज़ादी के लिए लड़ने वाला सिर्फ गांधी ही है, क्योंकि गांधी से उन्हें कोई समस्या जो नहीं थी| जिनसे समस्या थी (भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाष चन्द्र बोस आदि) उन्हें पीछे धकेल दिया गया| जिनसे डर था वे गुमनामी में जीते रहे, और तो और अपने ही देशवासियों से अपमानित होते रहे| यहाँ तक कि उन्होंने अपनी लड़ाई के साथ साथ गांधी का भी सहयोग किया किन्तु स्वयं गांधीवादियों ने भी उन्हें अपनी लड़ाई से दूर रखा| निश्चित रूप से गांधी जी का अभियान देश के हित में था| इसके लिए भारत सदैव गांधी जी को याद रखेगा| लेकिन साथ ही यह भी ध्यान देने योग्य है कि समस्या को जड़ से मिटाने के लिए गांधी के रास्तों के साथ साथ कोई अन्य रास्ता भी अपनाना चाहिए था|

बिलकुल वही सीन अभी दोहराया आ रहा है|

कांग्रेस को डर अन्ना का नहीं है| अन्ना का डर होता तो आज अन्ना को मीडिया में इतना कवरेज नहीं मिलता| डर है तो बाबा रामदेव का| तभी तो अन्ना की गिरफ्तारी पर हो हल्ला होने पर भी कांग्रेसियों के कान पर जून तक नहीं रेंग रही थी| लेकिन जैसे ही बाबा रामदेव दिल्ली पहुंचे कि अन्ना की रिहाई के लिए सरकार ही पलकें बिछाने लगी| जो सरकार कल तक अनशन की इजाज़त तक नहीं दे रही थी, आज अचानक अनशन की अवधी का बढ़ाकर पहले तीन दिन से सात दिन व बाद में सात दिन से बढ़ाकर १५ दिन कर देती है| अन्ना थोड़े भाव और खाते तो शायद एक महिना या एक साल की अनुमति भी मिल जाती| ऐसा लग रहा था जैसे सरकार अन्ना से गुहार लगा रही हो कि आइये आप अनशन कीजिये और हो सके तो बचाइये अपने देश को| कहीं ऐसा न हो जाए कि इस पूरे प्रकरण में बाबा रामदेव हीरो बन जाएं और हम देखते रह जाएं|

इस बात से बिलकुल भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस को डर मुख्यत: बाबा रामदेव से ही है| जहां अन्ना को मीडिया में हाई लाईट किया आ रहा है वहीँ बाबा रामदेव के किसी कार्यक्रम को टीवी चैनलों का हिस्सा एक मिनट के लिए भी नहीं बनने दिया गया| क्योंकि अन्ना भ्रष्टाचार रुपी दानव के पैरों के नाखून काटने से शुरुआत कर रहे हैं जबकि बाबा रामदेव सीधा गले पर वार कर रहे हैं|
ध्यान रहे १९४७ से पहले गांधी जी भी किसी न किसी क़ानून को लेकर अंग्रेजों से बहस किया करते थे जबकि क्रांतिकारी सीधे भारत से अंग्रेजों को भगाने के लिए लड़ते थे|
क़ानून बन जाने से क्या होगा? बन जाए लोकपाल, जब कपिल सिब्बल जैसे क़ानून का बलात्कार करने वाले स्वयं मंत्रिमंडल में बैठे हों तो भला कोई क़ानून क्या उखाड़ लेगा?

गांधी जी के साथ "नेहरु" था, तो यहाँ अन्ना के साथ भी एक दल्ला "अग्निवेश" है| इन जैसों की छत्र छाया में भला कोई क़ानून कैसे सुरक्षित रह सकता है?
मुझे लगता है कि अन्ना की टीम में यदि किसी पर भरोसा किया जा सकता है तो वह स्वयं अन्ना पर अथवा किरण बेदी व अरविन्द केजरीवाल पर| भूषण बाप बेटे भला कब से भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ने लगे?

कांग्रेस का बाबा से डर तो उसी समय समझ आ जाना चाहिए था जब अन्ना को राम लीला मैदान में अनशन की अनुमति मिली| जिस राम लीला मैदान से बाबा रामदेव व उनके एक लाख से अधिक समर्थकों को आधी रात में ही मार मार कर भगाया गया वहां अन्ना को सरकारी खर्चे पर जल्द से जल्द मैदान की सफाई करवा कर अनशन के लिए जमीन उपलब्ध की जा रही है|
बाबा रामदेव के आन्दोलन का दमन करने का कांग्रेस के पास जो सबसे बड़ा बहाना था वह ये कि "राम लीला मैदान चांदनी चौक के निकट है और यह स्थान साम्प्रदायिक हिंसा का केंद्र रहा है|"
तो अब अन्ना को ऐसे साम्प्रदायिक हिंसा के केंद्र पर अनशन की अनुमति क्यों दी गयी? क्या दिल्ली में और कोई जगह नहीं है?


कांग्रेस का मकसद साफ़ साफ़ दिखाई दे जाना चाहिए| उसे पता है कि इतनी फजीती होने के बाद वह २०१४ के लोकसभा चुनावों में नहीं आ सकती| उसकी हालत अभी वैसी ही है, जैसी इंदिरा गांधी के आपातकाल के समय थी| अत: जितना हो सके उसे जनलोकपाल के मुद्दे को घसीटना ही पड़ेगा| और दो साल बाद यह क़ानून पारित कर दिया जाएगा, जिसमे प्रधानमंत्री भी लोकपाल का शिकार होगा| ऐसे में बाबा रामदेव से भी पीछा छुडाया जा सकेगा और आने वाली सरकार को इसी लोकपाल से गिराकर फिर से तख़्त पर बैठा जा सकेगा|
कोई आश्चर्य नहीं जो ऐसे समय में पुन: कांग्रेस सत्ता में आ जाए| जब आपातकाल के बाद केवल दो वर्षों के जनता पार्टी के शासन के बाद पुन: सत्ता में आ सकती है तो आज क्यों नहीं? दरअसल भारत देश की जनता भूलती बहुत जल्दी है| देखिये न केवल दो ही वर्षों में इंदिरा का आपातकाल भूल गयी| १९४७ पूरा होते ही अंग्रेजों के दो सौ साल के अत्याचार भूल कर इंग्लैण्ड से दोस्ती कर बैठी| पाकिस्तान द्वारा थोपे गए चार युद्ध व सैकड़ों आतंकवादी घटनाओं को भूल कर दोस्ती की बात कर बैठी|

अन्ना की गलती वही है जो गांधी ने की| अन्ना जिस प्रकार बाबा रामदेव से दूरी बना रहे हैं वह प्रशंसनीय नहीं है| बाबा रामदेव अब भी अन्ना के सहयोग के लिए दिल्ली पहुँच गए, किन्तु अन्ना ने तो उनसे मिलने से भी मना कर दिया| ये सब कांग्रेस की चाल है जो वह अन्ना व बाबा को एक नहीं होने दे रही|

अन्ना को इन धूर्तों के षड्यंत्र को समझना होगा, नहीं तो वही इतिहास दोहराया जाएगा जो १९४७ में सत्ता के हस्तांतरण द्वारा देश आज तक झेल रहा है|

इस पूरे विवाद में मैं ये बात साफ़ कर देना चाहता हूँ कि मुझे अन्ना के आन्दोलन से कोई तकलीफ नहीं है| मैं तो खुद गला फाड़ फाड़ कर नारेबाजियां कर रहा हूँ| गला छिल गया है, ठीक से आवाज़ भी नहीं आ रही अब तो| लोकपाल के मुद्दे को लेकर देश भर में जो कुछ भी हो रहा है वह बहुत सही हो रहा है| किन्तु भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर जो हो रहा है वह सही नहीं है| यही जन आक्रोश बाबा रामदेव के समर्थन में भी चाहता हूँ| लोकपाल की लड़ाई अंतिम लड़ाई नहीं है| यह तो केवल एक शुरुआत है, अंत नहीं| ऐसा न हो कि लोकपाल का मुद्दा शांत होते ही सब अपने अपने घरों की ओर चल दें|

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