Friday, September 7, 2012

सराय एक्ट को समाप्‍त करके देश की सभ्‍यता और संस्‍कृति पर एक और हमला




देशद्रोही, भ्रष्‍टाचारी और मल्‍टीनेशनल कंपनियों की दलाल कांग्रेस पार्टी

 का सराय एक्ट को समाप्‍त करके देश की सभ्‍यता और संस्‍कृति पर

एक और हमला


न कोई विरोध, न हल्ला, न शोर और न ही कोई तड़पन दिखाई पड़ी उसके मरने में जो हमें हमारी संस्कृति से जोड़ता था। सरकार ने चुपके से सराय एक्ट को दफना दिया और किसी को कानोकान खबर न लगी। किसी ने सुना भी तो अनसुना कर दिया। एक्का-दुक्का लोगों का मन कौंधा भी तो अपने किसी साथी को सराय एक्ट की हत्या का समाचार सुनाकर मन को शांत कर लिया। यूं ही हमारे बीच से कभी न वापस आने का वादा करके जा चुका है सराय एक्ट। भारत सरकार ने सराय एक्ट के बारे में कहा है कि यह अब बूढ़ा हो चला था, इसकी वर्तमान परिदृश्य में कोई प्रासंगिकता नहीं बची थी। वैसे तो अंग्रेजों ने इस देश को जैसे हो सका सब प्रकार से लूटा और हर प्रकार से इसका शोषण किया परन्‍तु अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में कुछ अच्‍छा काम किया था तो वह था सराय एक्‍ट को बनाना। परन्‍तु देशद्रोही, भ्रष्‍टाचारी, आतंकवादियों की पोषक और मल्‍टीनेशल कंपनियों की दलाल कांग्रेस सरकार ने अंगेजों के इस कानून को अब निरस्त कर दिया गया है। सराय एक्ट अंग्रेजों द्वारा वर्ष 1867 में बनाया गया था। इसके तहत यह बाध्यता थी कि किसी भी पड़ाव, सराय, होटल या अन्य ऐसा स्थान जहां ग्राहक आकर रूकते हों उसके मालिक को ग्राहक के लिए आते ही पानी का गिलास पेश करना होगा और उसका कोई पैसा ग्राहक से नहीं लिया जाएगा। ऐसा न करने वाले पर जुर्माने का प्रावधान था।

सरकार द्वारा पुराने पड़ चुके व अप्रचलित कानूनों की समीक्षा के लिए पी सी जैन की अध्यक्षता में वर्ष 1998 में एक विशेष आयोग का गठन किया गया था। आयोग ने ऐसे करीब 1382 पुराने कानूनों की जांच पहचान की, जिनमें से अब करीब 415 को निरस्त कर दिया गया है जबकि 17 कानून निरस्त किए जाने की प्रक्रिया में हैं। कुछ अन्य कानूनों की भी समीक्षा यह आयोग कर रहा है। हम यहां सराय एक्ट के संबंध में अगर गहनता से विचार करें तो प्रथम दृष्टया तो यही लगता है कि एक पुराना कानून था चला गया शायद कोई नया कानून इसका स्थान ले ले, लेकिन अगर इस कानून के जाने को शक की निगाह से देखा जाए तो लगता है कि कहीं जानबूझ कर तो नहीं सराय कानून को मिटा दिया गया है। संदेह करने का कारण बिल्‍कुल स्पष्ट है कि वर्तमान में जिस प्रकार से पानी का बाजारीकरण हुआ है उसमें कहीं न कहीं सराय कानून बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बिजनेस पर असर डाल रहा था।



अब प्याऊ के जगह बोतल बंद पानी बिक रहा है



ये कम्पनियां उस प्रत्येक दरवाजे को बंद कर देना चाहती हैं जो कि इनकी कमाई के आड़े आता हो। सराय कानून का चले जाना इसी षड़यंत्र का नतीजा है। क्योंकि पियाऊ लगाने वाली संस्कृति के देश भारत को सराय एक्ट से नई उर्जा मिली थी कि हमारी एक संस्कृति को अंग्रेजों द्वारा कानूनन भी बाध्य कर दिया गया है। लेकिन आजाद देश में आज कांग्रेस पार्टी हमारी संस्कृति और सभ्‍यता को मिटाने के लिए उतारू हैं। आखिर ऐसा क्या नुकसान हो जाता अगर सराय कानून बना रहता? आखिर कौन सा पहाड़ टूट पड़ता अगर इस कानून को निरस्त नहीं किया जाता, लेकिन भविष्य के बड़े बिजनेस पर निगाह गड़ाए बैठी कम्पनियों की नजर में यह कानून खटक रहा था। हमने इस कानून से अपनी संस्कृति और सभ्‍यता को जोड़ लिया था लेकिन कानून की सख्ताई समाप्त होने पर हम संस्कृति और सभ्‍यता से भी हाथ न धो बैठें।

जब कोई मेहमान घर पर आता है तो उसे सबसे पहले पानी पिलाया जाता है। जेठ की दोपहरी में व चिलचिलाती गर्मी में धर्मलाभ कमाने के लिए श्रद्धालु प्याऊ लगाते हैं। कुछ लोग 12 महीने प्याऊ लगाकर रखते हैं तो कुछ गर्मी के दिनों में। जब थका-हारा कोई व्यक्ति किसी पेड़ के नीचे जाकर बैठता है और उसे ठंडा-शीतल जल पीने को मिल जाए तो उसकी अन्तरात्मा की जो आवाज का सुकुन होता है उसका कुछ अंश पानी पिलाने वाले वाला भी महसूस करता है। हिन्दुओं में प्याऊ लगाकर पानी पिलाना धर्म माना जाता है। पहले किसान के पास गांव में शक्का हुआ करते थे जिनका काम चमड़े से बनी मसक लेकर पानी पिलाने का ही होता था। कुएं पर कपड़े धोते हुए महिलाएं आने-जाने वालों को पानी पिलाती रहती थीं। हम ऐसी संस्कृति में जन्मे-पले और बड़े हुए। लेकिन जब से पानी पिलाने के बदले पैसे का चलन बढ़ा है हम मिट से गए हैं, हमारी संस्कृति और सभ्‍यता चौपट हो रही है और हमारा धर्म गुमराही के रास्ते पर चला गया है।


खत्म होती पानी पिलाने की परंपरा


सराय कानून का जाना एक खतरनाक संकेत है कि भविष्य बहुत कठिन होने वाला है। एक ओर तो भूजल और सतही जल में षड़यंत्र के तहत जहर घोला जा रहा है वहीं दूसरी ओर सराय जैसे कानून समाप्त किए जा रहे हैं। अब सरकार की यह भी तैयारी है कि सरकारी हैंडपम्प न लगाए जाएं। प्रत्येक गांव में टंकी बनाई जाए और उसी से प्रत्येक घर को पानी दिया जाए तथा उससे उसका पैसा लिया जाए। ऐसा बहुत जल्द होने वाला है। सराय कानून को पुनः नए रूप में जीवित किया जाना अति-आवश्यक है। अगर ऐसा नहीं होता है तो हमें यह समझने में कतई भूल नहीं करनी चाहिए कि हमारी सरकारें पानी का व्यापार करने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बहुत अधिक दबाव में हैं जिनसे इन्‍हें मोटी दलाली मिलती है।

पानी-पानी और पानी का हल्ला मचाकर लाखों-करोड़ों रुपए डकारने वाले स्वयं सेवी संगठन और इस देश की बिकाउ और भांड मीडिया आखिर अब कहां हैं, वे क्यों सराय कानून को पुनः बनाने की मांग नहीं कर रहे हैं और क्‍यों इसके लिए सरकार पर दबाव नहीं बना रहे है। क्यों नहीं समाज को बता रहे हैं कि सराय कानून का जाना देश और समाज में अस्थिरता पैदा करेगा? कहां हैं तथाकथित पानी के सामाजिक सरोकारी? कोई तो उन्हें ढूंढे और बताए कि सराय कानून मार दिया गया है। कभी-कभी तो यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि क्या वाकई हम भारत में  रहते हैं या फिर इंडिया में? क्या हम मानव ही हैं? अगर हां तो ऐसी लाचारी तो कीड़े-मकोड़े दिखाते हैं जैसी आज के मानव दिखा रहे हैं। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि समय उसी का साथ देता है जो सही समय पर सही काम करते हैं।

























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