सत्यवादी
प्रस्तुति: डॉ0 संतोष राय
इस्लाम असल में अरबी साम्राज्यवादी नीतियों का नाम है . जिसे मुहम्मद साहब ने प्रारंभ किया था .वह किसी न किसी तरह से सम्पूर्ण विश्व पर हुकूमत करना चाहते थे .लेकिन दूसरे क्षेत्रों को जीतने के लिए सेना की जरुरत होती है . जो उनके पास नहीं थी . इसलिए मुहम्मद ने ढोंग और पाखंड का सहारा लिया ..जैसे पहले तो खुद को अल्लाह का रसूल साबित करने के लिए यह अफवाह फैला दी कि मैं तो अनपढ़ हूँ . और जो भी मैं कुरान के माध्यम से कहता हूँ वह अल्लाह के वचन हैं ..जैसे पहले तो खुद को अल्लाह का रसूल साबित करने के लिए यह अफवाह फैला दी कि मैं तो अनपढ़ हूँ . और जो भी मैं कुरान के माध्यम से कहता हूँ वह अल्लाह के वचन हैं
1-अल्लाह ने अनपढ़ ही बनाया
कुरान-"और उसी अल्लाह ने अनपढ़ लोगों के बीच में एक अनपढ़ रसूल को उठाया जो हमारी आयतें सुनाता है "सूरा - जुमुआ 62 :2
"जो लोग उस अनपढ़ रसूल के पीछे चलते हैं , जो न लिख सकता है और न पढ़ सकता है , तो पायेंगे कि उसकी बातें तौरैत और इंजील से प्रमाणित होती हैं "सूरा -अल आराफ 7 :157
"हे रसूल न तुम कोई किताब लिख सकते हो और न पढ़ सकते हो . यदि ऐसा होता तो लोग तुम पर शक करते "सूरा -अनकबूत 29 :49
के अनुसार मुहम्मद साहब जीवन भर अनपढ़ ही बने रहे ,जैसा कि इन आयतों में दिया गया है ,
लेकिन मुसलमान रसूल के अनपढ़ होने को उनमे कमी मानने की जगह उनका चमत्कार बताते हैं .नहीं तो उन पर यह आरोप लग जाता की कुरान उन्ही ने लिखी होगी
2-रसूल मक्का से भागे
उन दिनों अरब के लोग अपने ऊंट काफिले वालों को किराये देते थे .जिन से सामान ढोया जाता था .और मक्का यमन से सीरिया जाने वाले मुख्य व्यापारिक मार्ग में पड़ता था .लेकिन कुरान की जिहादी तालीम के कारण मुसलमान बीच में ही काफिले लूट लेते थे .इस से अरबों की कमाई बंद हो गयी थी .मुहम्मद साहब का कबीला कुरैश भी ऊंट किराये पर चलाता था .इस लिए वह लोग महम्मद के जानी दुश्मन हो गए .इस लिए अपनी जान बचाने के लिए सितम्बर सन 622 मुहम्मद साहब अपनी औरतों ,रखैलों और साथियों के साथ मक्का से मदीना भाग गए . और उसी दिन से हिजरी सन शुरू हो गया .में अरबी इसे हिजरत यानी पलायन कहा जाता है .
3-हुदैबिया की संधि
मदीना पहुंच कर भी मुहम्मद साहब कुरान की आयतें सुना कर मुसलमानों जिहाद के लिए प्रेरित करते रहे . और जिहादी वहां और आस पास शहरों में लूट मार करते रहे .और यह खबरें मक्का वालों को पता हो जाती थीं .मक्का के लोग मुहम्मद साहब का क्रूर स्वभाव जानते थे .और उनकी बात पर विश्वास नहीं करते थे .तभी छः साल तक मदीना में रहने के बाद इस्लामी महीने जिल्काद में मुहम्मद साहब ने "(उमरा"( काबा की यात्रा ) के बहाने मक्का जाने की तयारी कर ली .उनके साथ मदीना के लोग भी शामिल हो गए .यह खबर मिलते ही मक्का के लोग मुहम्मद साहब की हत्या योजना बनाने लगे .और घोषणा कर दी जो भी मुहम्मद की हत्या करेगा उसे भारी इमाम दिया जायेगा .और जब मुहम्मद साहब को यह सूचना मिली तो वह बीच रास्ते में ही हुदैबिया नाम की जगह रुक गए और बहाना कर दिया की मेरी ऊंटनी ने आगे जाने से मना कर दिया है .और वहीं से अली के द्वारा कुरैश के लोगों को सन्देश भेजा कि हम युद्ध नहीं समझौता करना चाहते है .इतिहास में इस समझौते को " हुदैबिया सुलहصلح الحديبية "(The Treaty of Hudaybiyyah )कहा जाता है .यह संधि मार्च सन 628 ई० तदनुसार जुलकाद महिना हिजरी सन 6 को मक्का के कुरैश और मुसलमानों के बीच हुआ था .कुरैश की तरफ से " सुहैल बिन अम्र "और मुसलमानों की तरफ से मुहम्मद साहब थे .पहले दौनों पक्षों की शर्तें सुनाई गयी और जिन मुद्दों पर दोनो पक्ष राजी होगये थे . उनको लिखा गया था .लिखने का काम अली को दिया गया था .यह एतिहासिक संधि इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस ने मुहम्मद को लिखने पर अपने सही करने पर मजबूर कर दिया था .और उनको अपने नाम के साथ रसूल अल्लाह शब्द हटाना पड़ा था
Sahih al-Bukhari-Vol 3 Bk 50 Hadih 891
4-सुलह की शर्तें
इस सुलह में कुरैश की तरफ से " सुहैल बिन अम्र " और मुसलमानों की तरफ से मुहम्मद के बीच यह शर्तें तय हुई थी .1 - मुसलमान अभी उमरा किये बिना ही वापस चले जाएँ .2 . और अगले साल उम्र के लिए आयें 3 . अपने साथ हथियार नही लायें .4 .जो मक्का के निवासी हैं वह अपने साथ बाहर के लोग साथ में नही लायें 5 .गैर मुसलमानों को मक्का से बहर नहीं जाने दिया जायेगा 6 .मक्का के लोगों को गैर मुस्लिमों से व्यापर की अनुमति होगी 7 . यह संधि दस साल के लिए वैध होगी .
( यह सभी शर्तें कुरान के हिंदी अनुवाद में सूरा न . 48 अल फतह के परिचय में पेज 936 में दिया है . जिसका अनुवाद फारुख खान ने किया है . और " मकतबा अल हसनात" राम पुर से प्रकाशित किया है )
इस सुलह का उल्लेख कुरान में इस तरह किया गया है ,
" और निश्चय ही अल्लाह ईमान वालों से राजी हुआ , जब रसूल एक पेड़ के नीचे खड़े होकर कुरैश के लोगों से हाथ में हाथ मिला कर सुलह की शर्तें तय कर रहे थे " सूरा -अल फतह 48 :18
5-डर के मारे लिख दिया
उस समय कुरैश के लोगों ने तय कर लिया था कि यदि मुहम्मद इस संधि पर सहमत नहीं होगा तो उसे और उसके साथियों को जीवित मदीना नहीं जाने दिया जायेगा .दी गयी हदीसों में यह बात इस तरह दी गयी है .,
"अनस ने बताया की जब कुरैश के लोगों के साथ सभी सातों शर्तें तय हो गयी . तो सुहैल ने अली से कहा कि लिखने से पहले सभी शर्तें लोगों के सामने जोर से सुना दी जाएँ .और जब अली सबसे पहले " बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम " लिखने लगे तो ,सुहैल ने टोक कर कहा "हम किसी रहमान और रहीम को नहीं जानते "हम तो सिर्फ अपने ही अल्लाह को जानते है , इसलिए लिखो " बिस्मिका अल्लाहुम्मा بسمك اللهمّ"यानि हमारे अल्लाह के नाम से और अली ने यही लिख दिया .और फिर जब अंतिम पंक्ति में अली लिखना चाह कि " मुहम्मद रसूलल्लाह " की तरफ से हम इन शर्तों को मानते हैं . तो यह सुनते ही कुरैश के लोग भड़क गए , और हम कैसे मानें कि मुहम्मद रसूल है .यह तो अब्दुल्ला का लड़का है .इसलिए या तो इस कागज को फाड़ो या युद्ध के लिए तैयार हो जाओ .तब रसूल ने अली से कागज लिया और खुद लिख दिया " मिन मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह من محمد بن عبد الله " यानि अब्दुल्लाह के बेटे मुहम्मद की तरफ से यह शर्तें स्वीकार की जाती हैं "
Muslim-Book 019, Number 4404:
इसी घटना को प्रमाणिक हदीस बुखारी में भी दूसरी तरह से दिया गया है
"अल बरा ने कहा जब रसूल उमरा के लिए मक्का जा रहे थे , रास्ते में उनको कुरैश के लोगों ने घेर लिया . और कहा पहले जब तक तुम हमारी नहीं मानोगे , तुम्हें मक्का में नहीं घुसने देंगे 'और जब रसूल सभी शर्तें मान कर आखिरी में " रसूल अल्लाह " लिखने लगे तो कुरैश ने घोर आपत्ति जताई .तब रसूल ने कागज हाथ में लिया और खुद लिख दिया "हाजा मा मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह कद वाकिफत अलैहि هذا ما محمد بن عبد الله قد وافقت عليه"यानी यही बातें हैं , जिन पर मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह सहमत है .(This is what Muhammad bin Abdullah has agreed upon )
Sahih Bukhari-Volume 3, Book 49, Number 863
हुदैबिया की इस सुलह ( संधि ) के बारे में जानकारी के लिए देखिये - विडियो Treaty of Hudaibiya:
http://www.youtube.com/watch?v=2765YaW-vT0&feature=related
6-मुहम्मद साहब के पत्र
मुहम्मद साहब ने अपने जीवन भर में कुल 92 पत्र और संधियाँ लिखवाई थी . और अधिकांश में हस्ताक्षर की जगह अपने नाम की मुहर लगा देते थे जिसमे लिखा होता था " मुहम्मद रसूल्लाह " लेकिन कुछ ऐसे भी पत्र और संधियाँ भी हैं , जिन पर मुहम्मद साहब ने आखिर में कुछ शब्द लिख कर अपने सही भी कर दिए थे .इसके लिए देखिये , विडियो
Original Letters of Prophet Muhammad
http://www.youtube.com/watch?v=JB5R1a4bSUM&feature=fvst
अब इस से बड़ा और कौन सा प्रमाण हो सकता है कि मुहम्मद साहब खुद को अल्लाह का रसूल और कुरान को अल्लाह कि किताब साबित करने के लिए अनपढ़ होने का ढोंग और पाखंड करते थे .लेकिन अब हरेक व्यक्ति को पता हो जाना चाहिए कि मुहमद साहब के ढोंग क भंडा फूट चुका है .अर्थात कुरान अल्लाह की किताब नहीं है .और न मुहमद साहब अल्लाह के रसूल थे .
http://www.sunniforum.com/forum/showthread.php?54597-When-did-Prophet-(saw)-learn-to-read-and-write
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