Thursday, July 12, 2012

झूठा है आमिर का सत्यमेव जयते कार्यक्रम

डॉ0 संतोष राय
आमिर खान जैसा जेहादी मुसलमान सत्‍यमेव जयते कायर्क्रम में अपने  जेहादी  मानसिकता का  ही विस्‍तार कर रहा है न कि देश का  कोई भला। इस तरह के कार्यक्रम कोई गैर मुसलमान पाकिस्‍तान या मुस्लिम देश में चलाकर देख ले, उसे  जिंदा दफन कर दिया जायेगा। हमारे सहृदयता, समरसता व वसुधैव कुटुंबकम की भावना का इन जेहादी मुसलमानों ने खूब लाभ  लिया है और पूरे  भारत को इस्‍लामिस्‍तान बनाने के लिये वे देश से गद्दारी करने से भी नही हिचकिचाते। इसी जेहादी मानसिकता का ही दूसरा रूप सत्‍यमेव जयते है जिसे  हमारे शास्‍त्रों के नाम को हमारे ही विरूद्ध दुरूपयोग किया जा रहा है।

आमिर खान को अपने टेली विजन कार्यक्रम सत्यमेव जयते का नाम अतिशीघ्र बदल लेना चाहिए। जो कार्यक्रम सत्य नहीं अपितु झूठे भ्रामक और गंदेप्रचार पर आधारित हो व किसी धर्म विशेष के प्रति अत्‍यंत दुराग्रह से ग्रस्त हो, उसे मुंडकोपनिषद के इस महान उदात्त उद्घोष का प्रयोग करने का कोई अधिकार नहीं है, कि वो इसका दुरूपयोग करे। इस घटिया कार्यक्रम को देखकर यह प्रतीत होता है कि छुआछूत हिंदुधर्म की उपज है। कई ऐसे दृष्‍टांत  दिये गए जहां लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है, मानवता का उल्‍लंघन किया जा रहा है। वे दृष्‍टांत सच मेँ बेहद दुखद हैं किन्तु जिस तरह इस हृदय विदारक सामाजिक बुराई को हिंदुओं की धार्मिक बुराई के रूप मे प्रचारित कर हिन्दू धर्म से जोड़ा गया व इस कार्यक्रम के आड़ में हिन्‍दू धर्म को बदनाम किया जा रहा है वह अत्यंत ही निंदा के योग्‍य  है।
जो धर्म ‘वसुधैव कुटुंबकम्’, सर्वे भवन्तु सुखिन:के दर्शन को मानता हो, जो प्रत्येक जड़-चेतन पदार्थ को ब्रह्ममय मानता हो, वह धर्म भेदभाव किसी के साथ कैसे कर सकता है?
'सत्यमेव जयते' मेँ भेदभाव का आरंभ मनुस्मृति से बताया गया। जिस सूक्त का उदाहरण दिया गया वह मनुस्मृति नहीं अपितु ऋग्वेद के दशम मण्डल का सूक्त है। यह सूक्त ब्रह्मांडपुरुष की भव्य विराटता को अत्यंत सुंदरता से प्रस्तुत करता है-
ब्रा॒ह्म॒णो॓‌स्य॒ मुख॑मासीत् । बा॒हू रा॑ज॒न्यः॑ कृ॒तः ।
ऊ॒रू तद॑स्य॒ यद्वैश्यः॑ । प॒द्भ्याग्ं शू॒द्रो अ॑जायतः ॥
अर्थात- "ब्राह्मण इस (ब्रह्मांड पुरुष) का मुख हैं, क्षत्रिय भुजाएँ, वैश्य उदर तथा शूद्र चरण।"
कितनी सुंदर अभिव्यक्ति है... आदि।
ब्राह्मण अपनी बुद्धि तथा विचार क्षमता द्वारा समाज को दिशा प्रदान करते हैं अतः वे ब्रह्मांडपुरुष का मुख हैं। क्षत्रिय रक्षा करने वाली भुजाओं की भांति हैं। शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाले उदर की भांति वैश्य वाणिज्य के माध्यम से समाज को आर्थिक ऊर्जा प्रदान करते हैं तथा शूद्र अपने कर्मबल व श्रम के माध्यम से चरणों की भांति समाज के शरीर को चलायमान रखते हैं।
अब इसमे आपत्तिजनक क्या है यह मेरी समझ से परे है। क्या चरण शरीर का अपरिहार्य अंग नहीं है? जब चरण की बजाय अँग्रेजी में" Common People are the wheels of Society" कहा जाता है तब तो हमारे बुद्धिजीवी इन 'wheels' को समाजवाद का प्रतीक मान सर-आंखो पर बैठाते हैं! यह दोगला व्यवहार क्यों
?
शायद इन पश्चिमी सोच वाले तथाकथित बुध्द्धिजीवियों को यह नहीं मालूम कि भारत मे किसी भी अंग को अपवित्र नहीं माना जाता। यदि भारत मेँ चरण मुख/मस्तक की तुलना मे हीन माने जाते तो क्यों यहाँ चरण स्पर्श की परंपरा रहती? (तब तो सिर से सिर भिड़ाकर अभिवादन किया जाता शायद)! और यदि पश्चिमी दृष्टि के हिसाब से आप चरणों को अपवित्र, हीन या अनावश्यक मानतें हैं तब तो आपको अपने-अपने पैर काटकर फेंक देने चाहिए !
कार्यक्रम मे जातिप्रथा की जमकर आलोचना की गयी। हाँ, जातिप्रथा हिन्दू समाज का आधारस्तंभ है किन्तु यह छुआछूत से भिन्न है। जातिप्रथा व छुआछूत मे वही अंतर है जितना कि गंगा माँ और गंदे नाले मेँ होता है। जातिप्रथा सामाजिक व्यवस्था है जिसकी वजह से प्रतिभा, कुशलता व कारीगरी एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी मे हस्तांतरित होती जाती थी। यही कारण था कि हजारों वर्ष भारत के कौशल, ज्ञान, कलाओं व कारीगरी का दुनिया मे कोई जवाब नहीं था क्योंकि जातिगत रूप से व्यवसाय अपनाने पर कौशल मे निरंतर वृद्धि होती जाती थी।

छूआछूत की देन इस्‍लामी आक्रांताओं  द्वारा


वहीं छुआछूत की घृणित प्रथा का स्त्रोत हिन्दू धर्मनहीं अपितु इस्लामी आक्रमण है। जिन हिन्दू वीरों ने म्लेच्‍छों के धर्म इस्लाम अपनाने से इंकार कर दिया उन्हे या तो मार डाला गया अथवा उन्हें व उनके परिवार को मानव-मल उठाने के घृणित कार्य हेतु बलपूर्वक मजबूर किया गया। धीरे-धीरे ये वीर हिन्दू समाज से काटकर अस्पृश्य घोषित हो गए क्योंकि मुस्लिम आक्रांता उन्हे घृणित मानते थे तथा हिन्दू उन्हे आक्रांताओं के यहाँ कार्य करने की वजह से बहिष्कृत कर देते थे। धीरे-धीरे कुछ नासमझ हिंदुओं ने स्वयं को उच्च व औरों को अधम घोषित करना प्रारम्भ कर दिया, फलस्वरूप हिंदुसमाज पतन की गर्त मेँ गिरने लगा।
अब आते हैं इस्लाम में रेसिज़्म अवधारणा पर। मैं जाति नहीं कहूँगा इसे क्योंकि Race या वर्गभेद जाति की अपेक्षा बहुत संकीर्ण विचारधारा से प्रेरित है। आमिर खान हिन्दू धर्म के खिलाफ जहर उगलते हुए बड़े गर्व से कहते हैं कि इस्लाम में जातिवाद नहीं है। जी हाँ यह सच है कि इस्लाम मेँ जाति जैसी पवित्र संस्था नहीं है अपितु वहाँ वंशभेद तथा रंगभेद है। दृष्‍टांत अवश्‍य देखें-
1. इस्लामी कानून संख्या 025.3 के अनुसार खलीफा बनने हेतु आवश्यक 5 शर्तों मे से एक शर्त यह है कि खलीफा अरब मूल के कुरैशी कबीले का ही होना चाहिए। शहीह बुखारी (4.56.704) इसकी पुष्टि करते है कि अल्लाह ने कुरैश अरबों को दुनिया पर राज करने के लिए अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया है। अब भी यदि आमिर साहब सोचते हैं कि इस्लाम मे भेद नहीं है तो कोई भी गैर कुरैशी मुसलमान, खलीफा बनकर दिखाये।
2. हदीस मे कहा गया है कि अरब लोग अल्लाह की शुद्धतम, सर्वोत्तम रचना हैं जो एक महाझूठ है।
3. जब आमिर हिंदु धर्म मे रोटी और बेटी के सम्बन्धों मेँ भेदभाव की बात कर रहे थे तो वे शरिया कानून भूल गए जिसके मुताबिक कोई भी गैर-अरब मुस्लिम किसी अरब मुस्लिम महिला से निकाह नहीं कर सकता क्योंकि वे उच्च रक्त की हैं और कई मुस्लिम देशों मेँ ऐसा करने पर सज़ा-ए-मौत निश्चित है।
4. यमन के मुस्लिमों मे वर्गभेद के रूप मेँ अख्दम वंश विद्यमान है जिन्हे स्थानीय समाज मेँ बहुत ही हीनतम और निकृष्‍ट माना जाता है।
5. यदि आप मानते हैं कि इस्लाम मेँ भेदभाव हिन्दू परंपरा की देन है तो भारत से बाहर इस्लामी देशों मेँ सुन्नी, शिया, वहाबी, अहमदिया आदि भेदभाव के चलते क्यों हजारों लोगों का कत्लेआम होता है? क्यों एक वहाबी खुद को अन्य मुस्लिमों से ऊंचा मानता है? क्यों सुन्नी लोग शियाओं का कत्ल करते हैं और क्यों इन तीनों वर्गों द्वारा अहमदिया मुस्लिमों को प्रताड़ित किया जाता है? हिन्दू तो कभी अरब मुल्कों मेँ भेदभाव की शिक्षा देने नहीं गए थे!

उपर्युक्त दृष्‍टांत देने का उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं है अपितु लोगों की आंखो से पश्चिम द्वारा प्रदान अंधी सोच का पर्दा हटाकर सच्चाई से सामना करवाना है।






हमे यह स्वीकार है कि भेदभाव की घृणित प्रथा द्वारा लाखों व्यक्तियों को प्रताड़ित किया जाता रहा है किन्तु इस दुखद प्रथा के लिए धर्म को दोष देना अत्‍यंत दूषित और घृणित मानसिकता का परिचायक है। छुआछूत प्रथा मानव की वह कुत्सित प्रवृत्ति है जिसके चलते वह दूसरों को स्‍वयं से हीन समझने लगता है इसलिए छुआछूत विश्व के हर कोने मेँ वंशभेद, रंगभेद, वर्गभेद के रूप मेँ लोगों को जकड़े हुए है। छुआछूत हेतु धर्म नहीं अपितु उसकी गलत व्याख्या करने वाले व्यक्ति दोषी हैं।
अब समय आ गया है कि भारत के लोग सत्यमेव जयते जैसे कार्यक्रमों द्वारा हिंदुधर्म के खिलाफ षड्यंत्रपूर्वक किए जा रहे दुष्प्रचार का खुलकर  विरोध करे तहा वेदो के उद्घोष- सर्वं खल्विदम ब्रह्मअर्थात सभी कुछ ब्रह्म हैको पुनः आत्मसात कर छुआछूत तथा भेदभाव को उखाड़ फेंके अन्‍यथा वो दिन दूर नही कि इस्‍लामिक षडयंत्रकारी कश्‍मीर,असम की तरह पूरे भारत में जेहाद छेड़ देंगे फिर भारत में मुगलिस्‍तान का राज आ जायेगा।
आज हर मुसलमान किसी न  किसी स्‍तर पर अपने सामर्थ्‍य के अनुसार  जेहाद कर रहा है और हिन्‍दू जानकर या अनजान में आंखें मूंदे हुये हैं। भाजपा जैसी पार्टी, संघ  जैसा संगठन अब सबके सब धर्म निरपेक्ष हो गये है। ये संगठन हिन्‍दुओं को मूर्ख बनाकर सिर्फ अपना उल्‍लू सीधा करने में लगे हैं। ऐसे में हिन्‍दुओं को पूरी ताकत के साथ एकता के सूत्र में बंध जाना चाहिये।

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