Wednesday, March 6, 2013

हराम और हलाल इस्लाम का कमाल !


डॉ0 संतोष राय

सभी लोग अच्छी तरहसे जानते हैं कि भारत के मुसलमान हमेशा "वन्देमातरम " का विरोध करते हैं . और कहते हैं कि ऐसा बोलना हराम है .यानि पाप है .इस्लाम में जायज -नाजायज ,वैध -अवैध अर्थात हलाल और हराम की बड़ी विचित्र और तर्कहीन अवधारणा है ,जो कुरान ,हदीसों ,और मुफ्तियों द्वारा समय समय पर दिए फतवों के आधार पर तय की जाती है . जिसे मानना हर मुसलमान के लिए अनिवार्य होता है . वर्ना उसे काफ़िर समझा जाता है .इसलिए मुसलमान हमेशा हर विषय हराम और हलाल के आधार पर ही तय करते हैं , चाहे वह देश के संविधान या कानून के विरुद्ध ही क्यों न हो .वह विना समझे अंधे होकर उसका पालन करते हैं .
इस संक्षिप्त से लेख में कुरान ,हदीसों ,फतवों ,और समाचारों में प्रकाशित खबरों से चुन कर एक दर्जन ऐसे मुद्दे दिए जा रहे हैं , जिनको पढ़ कर प्रबुद्ध पाठक ठीक से समझ जय्र्गे कि इस्लाम के अनुसार हराम क्या है ,और हलाल क्या है .
1 -अल्लाह का नाम लिए बिना जानवर को मारना हराम है .
लेकिन जिहाद के नाम से हजारों इंसानों का क़त्ल करना हलाल है .

2-यहूदियों ,ईसाइयों से दोस्ती करना हराम है .
लेकिन यहूदियों ,ईसाईयों का क़त्ल करना हलाल है .
3-टी वी और सिनेमा देखना हराम है .
लेकिन सार्वजनिक रूप से औरतों को पत्थर मार हत्या करते हुए देखना हलाल है .
4-किसी औरत को बेपर्दा देखना हराम है .
लेकिन किसी गुलाम औरत को बेचते समय नंगा करके देखना हलाल है .
5-शराब का धंदा करना हराम है .
लेकिन औरतों ,बच्चों को गुलाम बना कर बेचने का धंदा हलाल है .
6-संगीत सुनना हराम है .
लेकिन जिहाद के कारण मारे गए निर्दोष लोगों के घर वालों की चीख पुकार सुनना हलाल है .
7घोड़ों की दौड़ पर दाव लगाना हराम है .
लेकिन काफिरों के घोड़े चुरा कर बेचना हलाल है
8-औरतों को एक से अधिक पति रखना हराम है .
लेकिन मर्दों लिए एक से अधिक पत्नियाँ रखना हलाल है .
9-चार से अधिक औरतें रखना हराम है .
लेकिन अपने हरम में सैकड़ों रखेंलें रखना हलाल है .
10किसी मुस्लिम का दिल दुखाना हराम है .
लेकिन किसी गैर मुस्लिम सर कटना हलाल है .
11-औरतों के साथ व्यभिचार करना हराम है .
लेकिन जिहाद में पकड़ी गयी औरतों के साथ सामूहिक बलात्कार करना हलाल है .
12-जब किसी औरत की पत्थर मार कर हत्या की जारही हो ,तो उसे बचाना हराम है .
जब उसी अपराध के लिए औरत को जिन्दा जलाया जा रहा हो ,तमाशा देखना हलाल है .
इन थोड़े से मुद्दों को ध्यान से पढ़ने से उन लोगों की आँखें खुल जाना चाहिए तो इस्लाम को शांति का धर्म समझ बैठे हैं .इसलिए "भंडाफोडू " ब्लॉग पिछले चार सालों से अपने प्रमाण सहित लेखों के माध्यम से देश प्रेमी लोगों को इस्लाम से सचेत करता आया है . ताकि भूले से भी कोई व्यक्ति जकारिया नायक जैसे धूर्त के जाल में नहीं फसे .जिनको भी इस लेख के सम्बन्ध में इस्लामी किताबों के प्रमाण चाहिए वह "भंडाफोडू " के सभी लेख पढ़ने का कष्ट करें .
ऐसे कमाल के तर्कहीन इस्लाम से जितनी दूरी बनाये रखोगे उतने ही निरापद रहोगे !!

http://www.faithfreedom.org/Articles/AyeshaAhmed20729.htm

आप इस आर्टिकल को  यहां भी पढ़ सकते हैं: भंडाफोडू


3 comments:

Unknown said...

हिन्दुस्तान के पूरे इतिहास पर अगर इनसानी
परिप्रेक्ष्य में पुनर्विचार किया जाए
तो पता चलता है कि सांप्रदायिकता और
फासीवाद का तथाकथित हिंदूधर्म या आजकल
के तथाकथित हिंदुत्व से बड़ा पुराना और
गहरा नाता है। यहां यह बात भी साफ़
हो जानी चाहिए कि तथाकथित हिंदू धर्म और
तथाकथित हिंदुत्व कोई दो अलग-अलग चीजें
नहीं हैं। आज के संदर्भ में दोनों एक ही हैं। हिन्दू
धर्म का विकसित रूप आजकल का तथाकथित
हिन्दुत्व है जो पहले से कहीं ज्यादा आक्रामक
और हिंसक है। उसे लगातार राजसत्ता और
उससे जुड़े धार्मिक संस्थानों का संरक्षण और
समर्थन मिलता रहा है। आज भी यह बात
उतनी ही सच है। इसलिए हिन्दुस्तान में
सांप्रदायिकता और फासीवाद
की समस्या को इंसानी समुदायों और
राजसत्ता के पूरे इतिहास के संदर्भ में रखकर
ही देखा जाना चाहिए।
हिन्दूधर्म को आदि धर्म बताया गया है। वैदिक
धर्म को भी आदि धर्म बताया गया है। मगर
वैदिक धर्म कोई धर्म नहीं है, वह एक प्रकार
की प्राचीन सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था है।
बौद्धधर्म, जैन धर्म, इस्लाम, सिख धर्म,
इसाई धर्म और आर्य समाज का इतिहास
हिन्दुस्तान में हिन्दू धर्म के बाद शुरू होता है।
हिन्दू धर्म के वर्चस्ववादी स्वरूप,
उसकी जकड़बंदियों और उसमें लगातार पनपने
वाली विकृतियों के चलते ही हिन्दुस्तान में दूसरे
धर्मों का उदभव हुआ है और
उनकी स्वीकार्यता बढ़ी है। यही कारण हैं जिनके
चलते बहुसंख्यक दलित लोग हिन्दू धर्म से बाहर
आते रहे हैं और दूसरे धर्मों में जाते रहे हैं।
हिन्दूधर्म शुरुआत से ही फासीवादी और
सांप्रदायिक प्रकृति का रहा है। पुराणों,
उपनिषदों, स्मृतियों से लेकर हिन्दू धर्म के
समर्थन में आजकल भी लिखी जाने
वाली सैकड़ों पुस्तकों में इस बात के सबूत भरे पड़े
हैं। आधुनिक फासीवाद और सांप्रदायिक
संगठनों के आधार ग्रंथ भी यही पुस्तकें हैं। पुराने
ग्रंथों में ऐसे अनगिनत उदाहरण मिल जाएंगे
जिनमें कोई ईश्वरीय रूप, तथाकथित अवतार
या वर्चस्व और सत्ता के प्रतीक इस
तथाकथित हिन्दू धर्म की रक्षा के उददेश्य से
�दूसरों� की हत्याएं करते फिरते हैं। ये
�दूसरे� लोग कौन हैं? क्यों तथाकथित
ईश्वरीय रूप इनकी हत्याएं करते दिखाई पड़ते हैं।

Unknown said...

हिन्दुस्तान के पूरे इतिहास पर अगर इनसानी
परिप्रेक्ष्य में पुनर्विचार किया जाए
तो पता चलता है कि सांप्रदायिकता और
फासीवाद का तथाकथित हिंदूधर्म या आजकल
के तथाकथित हिंदुत्व से बड़ा पुराना और
गहरा नाता है। यहां यह बात भी साफ़
हो जानी चाहिए कि तथाकथित हिंदू धर्म और
तथाकथित हिंदुत्व कोई दो अलग-अलग चीजें
नहीं हैं। आज के संदर्भ में दोनों एक ही हैं। हिन्दू
धर्म का विकसित रूप आजकल का तथाकथित
हिन्दुत्व है जो पहले से कहीं ज्यादा आक्रामक
और हिंसक है। उसे लगातार राजसत्ता और
उससे जुड़े धार्मिक संस्थानों का संरक्षण और
समर्थन मिलता रहा है। आज भी यह बात
उतनी ही सच है। इसलिए हिन्दुस्तान में
सांप्रदायिकता और फासीवाद
की समस्या को इंसानी समुदायों और
राजसत्ता के पूरे इतिहास के संदर्भ में रखकर
ही देखा जाना चाहिए।
हिन्दूधर्म को आदि धर्म बताया गया है। वैदिक
धर्म को भी आदि धर्म बताया गया है। मगर
वैदिक धर्म कोई धर्म नहीं है, वह एक प्रकार
की प्राचीन सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था है।
बौद्धधर्म, जैन धर्म, इस्लाम, सिख धर्म,
इसाई धर्म और आर्य समाज का इतिहास
हिन्दुस्तान में हिन्दू धर्म के बाद शुरू होता है।
हिन्दू धर्म के वर्चस्ववादी स्वरूप,
उसकी जकड़बंदियों और उसमें लगातार पनपने
वाली विकृतियों के चलते ही हिन्दुस्तान में दूसरे
धर्मों का उदभव हुआ है और
उनकी स्वीकार्यता बढ़ी है। यही कारण हैं जिनके
चलते बहुसंख्यक दलित लोग हिन्दू धर्म से बाहर
आते रहे हैं और दूसरे धर्मों में जाते रहे हैं।
हिन्दूधर्म शुरुआत से ही फासीवादी और
सांप्रदायिक प्रकृति का रहा है। पुराणों,
उपनिषदों, स्मृतियों से लेकर हिन्दू धर्म के
समर्थन में आजकल भी लिखी जाने
वाली सैकड़ों पुस्तकों में इस बात के सबूत भरे पड़े
हैं। आधुनिक फासीवाद और सांप्रदायिक
संगठनों के आधार ग्रंथ भी यही पुस्तकें हैं। पुराने
ग्रंथों में ऐसे अनगिनत उदाहरण मिल जाएंगे
जिनमें कोई ईश्वरीय रूप, तथाकथित अवतार
या वर्चस्व और सत्ता के प्रतीक इस
तथाकथित हिन्दू धर्म की रक्षा के उददेश्य से
�दूसरों� की हत्याएं करते फिरते हैं। ये
�दूसरे� लोग कौन हैं? क्यों तथाकथित
ईश्वरीय रूप इनकी हत्याएं करते दिखाई पड़ते हैं।

Unknown said...

Call me 09785583555