Thursday, April 6, 2017

अब गोरखालैंड गोरखा प्रदेश के नाम से जाना जाएगा

नई दिल्ली 6 अप्रैल । उच्चतम न्यायालय परिसर में स्थित भारतीय न्यायिक संस्‍थान (इंडियन लॉ इंस्टिट्यूट) में  राष्ट्रीय क्षेत्रीय मंच और लाइव वैल्यू फाउंडेशन के तत्‍वाधान में "क्षेत्रीय न्याय पर सम्मेलन" का आयोजन गत दिनों किया गया। इसका उद्देश्य गोरखाओं की समस्या और उनके साथ हुए निरंतर पक्षपात और अन्याय पर प्रकाश डालना था। पहली बार ब्रिटिश भारत द्वारा और फिर भारतीय सरकारों द्वारा लंबे समय तक गोरखाओं की उपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए गोरखा प्रदेश की मांग बढ़ी जो आज तीव्र आंदोलन के रूप परिणित हो गया है।  सन 1814 में एंग्लो-गोरखा युद्ध से वर्तमान तिथि तक गोरखा के अमुल्य  बलिदान और राष्ट्र की सेवा के लिए अनुकरणीय साहस को सबने माना है। उपरोक्‍त सम्मेलन में दार्जिलिंग, तराई डुवर्स के एवं उत्तरांचल, तेलंगाना और उत्तर-पूर्व से प्रतिभागियों ने भाग लिया। साथ ही विभिन्न गोरखा संगठनों के प्रतिनिधियों भी इस उद्देश्य के लिए एकजुट हुए। गोरखा संगठनों ने भारत के अधीन रहकर पश्चिम बंगल राज्य से अलग होकर राज्य गठन मुख्य मुद्दा बताया ।
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इस कार्यक्रम मे  तेलंगाना और त्रिपुरी स्वदेशी लोगों के प्रतिनिधियों- क्रमशः अनुसूचित जाति एड्वेट रेड्डी और अघोर देब बर्मन ने भी अपनी मांगों को आवाज़ देने के लिए कार्यक्रम में भाग लिया। अखिल भारत हिन्दू महासभा के योगी ब्रह्मऋषि डॉ0 संतोष राय ने कहा कि गोरखालैंड के बजाय गोरखा प्रदेश की मांग की जानी चाहिए, क्योंकि गोरखालैंड से नागालैंड जैसे अलगाववाद की दुर्गन्ध आती है। आगे उनहोंने कहा कि उनका संगठन "एबीएचएम गोरखा प्रदेश का समर्थन करता है। गांधी की आलोचना करते हुए योगी ब्रह्मऋषि ने कहा, "गोरखा प्रदेश का गठन गांधीवाद के माध्यम से नहीं बल्कि चाणक्य नीति के द्वारा किया जाएगा।
प्रमुख गोरखा नेता, उत्तम छेत्री ने अपनी आवाज को मुखर करते हुए कहा कि, गोरखाओं को भारत के इतिहास में जोड़ा तो गया लेकिन उनके अधिकार उन्हें नहीं  मिल सके जबकि गोरखाओं ने विषम से विषम परिस्थितियों में नागा और बोडो की भांति हथियार नहीं उठाये। राजनीतिक दलों ने उन्हें बार-बार धोखा दिया है और उन्हें हर बार से झूठी उम्मीदें दी हैं। उन्हें वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है और बाद में सीट मिलने के बाद मंत्री गोरखा प्रदेश की प्रमुख  मुद्दा भूल जाते हैं। सही मायने में देखा जाए तो "गोरखा  आईएसआई झंडे नहीं फहराते हैं  इसलिए शायद हमें कश्मीरियों की तरह सुविधाएं नहीं मिलतीं। लेकिन हम कश्मीरी नहीं हैं, हमारी मांग अलगाववादी नहीं हैं"।
 श्री छेत्री ने अपनी बात आगे बढाते हुए कहा  कि हम गोरखा ने भारत माता के सुरक्षा को लेकर अपने  प्राणों की  आहुति दिया है  किंतु उनके बलिदान को आज तक कोई नहीं सोचता और भारत आजादी  के समय  से भारत के संविधान बनाने तक गोरखा ने देश का साथ दिया। गोरखा देशहित के कार्यों में बढ‌-चढ कर सहभागी होता था इतना ही नहीं वह सुशिक्षित व राजनीतिक रूप से पूरी तरह परिपक्व था। आप इसे इस तरह के उदाहरण से समझ सकते हैं कि  1992 में लागू हुए संविधान में गोरखाओं की भाषा के पंजीकरण को प्राप्त करने के लिए 43 अहिंसक संवैधानिक युद्धों को लड़ा है। श्री छेत्री ने  अपने ह‌ृदय की पीडा को  व्यक्त की कि 1947 में सिर्फ 1.2 मिलियन सिंधियों के भारत सरकार में 2 प्रतिनिधि थे, लेकिन 3 लाख गोरखाओं के लिए केवल 1 प्रतिनिधि ही थे। इस तरह के "गणित क्या दर्शाता है?"
श्री छेत्री ने कहा कि  हम सभी गोरखा प्रतिनिधि एक सामूहिक पीड़ा व्यक्त करने के लिए एकजुट हुए  हैं। एक  संविधान के बावजूद एक अलग भाषा व भोजन की आदत, चेहरे की विशेषताओं, साहित्य, स्थानीय संस्कृति, किसी विशेष क्षेत्र में बहुसंख्यक बनाने  यह गोरखा वाले एक समुदाय के तहत उस क्षेत्र का एक अलग प्रांत बना सकता है। भारतीय संघ, गोरखा मातृभूमि अभी भी एक सुदूर स्वप्न है।
वहीं वरिष्ठ पत्रकार राजेश शर्मा ने प्रस्तावित गोरखा प्रदेश के माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताओं पर बल दिया जिसे भारत के लिए रणनीतिक रूप से चिकन गर्ल कहा जाता है। अगर भारत सरकार अलग राज्य गठन करती है तो सिक्किम राज्य से लेकर नेपाल, भूटान बंगला देश आदि सीमा से सटा क्षेत्र पर सुरक्षा की दृष्टिकोण से अच्छा होगा। आगे उन्‍होंने कहा कि वरिष्ठ हिंदू महासभा नेता योगी ब्रह्मऋषि डॉ0 संतोष राय ने सम्मेलन के माध्यम से गोरखा संगठनों के साथ एक राजनीतिक गठबंधन बनाया है,  हालांकि इस समझौते का विवरण अभी भी गुप्त है। सम्भावना है कि हिंदू महासभा  गोरखा प्रदेश में चुनाव लड़ेगी और यदि निर्वाचित होती है तो संसद में गोरखा प्रदेश की मांग बढ़ाएगी। योगी ने प्रस्ताव किया कि गोरखा प्रदेश केवल दार्जिलिंग तक ही सीमित नहीं रहेगा, अलिपुरद्वार, जलपाईगुड़ी, कालिम्पोंग और कोछबीर जैसे गोरखा बहुमत वाले आसपास के क्षेत्रों को भी प्रस्तावित गोरखा प्रदेश के तहत लाया जाएगा। आगे उन्‍होंने कहा कि "ममता बनर्जी नाराज होंगी लेकिन हम अब हम उनकी परवाह नहीं करते। गोरखा प्रदेश कभी भी पश्चिम बंगाल से संबंधित नहीं था। 1954 में गोरखा प्रदेश 'अवशोषित' किया गया था, इसे पश्चिम बंगाल के साथ 'कभी विलीन नहीं किया गया,' योगी ने एक कड़े स्वर में कहा।
"वहीं पहाड़ दार्जीलिंग आए हुए किशोर प्रधान ने कहा है गोरखा जाति  के लिए अलग राज्य क्यों हो, इस पर प्रकाश डाला । श्री प्रधान ने पिछले 110  साल से गोरखा जाति बंगाल से अलग राज्य की मांग करते हुए अपनी  आवाज उठा रहा है परन्तु आज उसकी मांग को राष्ट्रीय अधिकर मंच  जो उठा  रहा है यह गोरखा जाति का सम्मान  है  और जब वे  दार्जीलिंग जाएंगे तब  पार्टी मे सलाह-मशविरा  कर के गोरखा प्रदेस का नाम मांग करने का  सर्वसम्मति से प्रस्ताव लाएंगे।
और, देहरादून से आयीं पूजा गोरखा ने स्मृति साझा की कैसे गोरखा भाषा एक आंदोलन के माध्यम से मान्यता प्राप्त हुयी थी जिसे देहरादून के आनंद सिंह थापा द्वारा शुरू किया गया था और प्रस्तावित किया गया कि गोरखा प्रदेश के लिए इतिहास को दोहराते हुए उसी देहरादून से पुन: गोरखा प्रदेश आंदोलन की शुरूआत करनी चाहिए।
गोरखा राज्य निर्माण समिति के नेता  दावा पखरीन, देवी काली के धार्मिक  गोरखनाथ अनुयायी हैं। उन्होंने महाष्टमी स्तोत्र के माध्यम से अपना भाषण शुरू किया। उन्होंने अखिल भारत हिंदू महासभा को राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दा उठाने के लिए आभार व्यक्त किया: "हम आभारी हैं कि गोरखा नहीं होने के बावजूद एबीएचएम कार्यकर्ताओं ने हमारे कारणों के लिए गंभीर चिंताओं को उठाया है," श्री पाखरीन ने धन्यवाद किया, जिसके लिए पूरे गोरखा नेतृत्व ने स्वर में सहमति व्यक्त की।
श्री पाखरीन ने कहा, "हम अलगाववादी नहीं बल्कि संघवादी हैं, हम भारतीय संघ में एक और  राज्य चाहते हैं- गोरखा प्रदेश। "भारत के सविधान के तहत एक अधिकार के तहत अलग राज्य का मांग कर रहा हूं  परन्तु बंगाल सरकार क्यू अड़चनें डाल रही  है जबकि जो क्षेत्र बंगाल का भू-भाग ही नहीं है जो 1954 के एक एक्ट  के तहत बंगाल के अधीन है। जोइन्ट एक्सन कमिटि आफ तेलांगना का दिल्ली के अध्यक्ष एवं सुप्रीम कोर्ट के वकील डी आर के   रेड्डी ने एक चौंकाने वाला विडंबना बताया कि तेलंगाना को आंध्र प्रदेश से अलग करने के बाद, आंध्र प्रदेश तेलंगाना की तुलना में अधिक उन्नत होने के बावजूद भारत सरकार से विशेष दर्जा प्राप्त करना था और गोरखाओं का बहुत लंबे समय से अलग राज्य का मांग कर रहा है उसको तेलांगना समर्थन और साथ देगा ।
इस अवसर पर वरिष्‍ठ समाज सेविका पूजा सुब्‍बा भी थी उन्‍होंने अपने वक्‍तव्‍य में कहा कि मैं शीघ्र ही गोरखा प्रदेश के लिए दीर्जिलिंग से दिल्‍ली तक की पद-यात्रा करूंगी। उन्‍होंने गोरखा जाति का सम्‍मान करते हुए एक कविता सुनाई जिसके बोल थे :
वीर गोरखा, वीर गोरखा। हाम्रो जाति है, वीर गोरखा।।
पुर्खाले कमाएको नाम गोरखा।। पुर्खाले गुमाएको जियान गोरखा।
वीर गोरखा, वीर गोरखा। हाम्रो जाति नै वीर गोरखा।।
पहाड़ी भेख नै हामरो पहिचान हो, खुखरी टोपी नै हम्रो शान हो।
वीर गोरखा, वीर गोरखा। हाम्रो जाति नै वीर गोरखा।।
ये गोर्खाली सिर हाम्रो कहिले न झुकने। हिमाल सरी शत्रु अधि सधैं अडि़ रहने।।
वीर गोरखा, वीर गोरखा। हाम्रो जाति है, वीर गोरखा।।
देश को निमित्‍त सिर चढ़ाउने, शुत्रु को निमित्‍त खुखुरी नचाउने।।
वीर गोरखा, वीर गोरखा। हाम्रो जाति नै वीर गोरखा।।
अखिल भारत हिंदू महासाभा ने गणमान्य व्यक्तियों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर गंभीर चिंताओं को उठाया। राष्ट्रीय सुरक्षा विषयों को ध्यान में रखते हुए एबीएचएम  नेतृत्व ने पूर्वोत्तर में अपनी राजनीतिक परियोजनाओं में अधिक गंभीरता लाने के प्रति वचन दिया। संबंधित क्षेत्रों में मिट्टी के बेटों के लिए एक सुरक्षित और न्यायपूर्ण मातृभूमि की नई आशा के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।उपरोक्त   समारोह में गणमान्य जन थे :  राष्ट्रीय अधिकार मंच अध्यक्ष रवि रंजन सिहं , सदस्य हर्क बहादुर छेत्री , राकेस लिमए , देवन्द्र प्रसाद आदि ।