मूर्ख
कांग्रेसियों को कन्हैया कुमार मे शहीद
भगत सिंह दिखता है... और वीर सावरकर में गद्दार
''जहाँ इंदिरा गांधी ने सावरकर को महान स्वतंत्रता
सेनानी बताकर उनके सम्मान मे डाक टिकिट जारी किया था वहीं आज के ओछी
मानसिकता वाले कांग्रेसी महान स्वतंत्रता
सेनानी वीर सावरकर को गद्दार बता रही है। एक
स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह को श्रद्धांजलि देने के साथ दूसरे स्वतंत्रता सेनानी
विनायक वीर दामोदर सावरकर का अपमान .. .ये
सिर्फ नीच कांग्रेसी ही कर सकते हैं |'' उपरोक्त बातें
अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ नेता व फिल्म निर्माता डॉ0 संतोष राय नें आज
एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से कही । ज्ञात हो कि कांग्रेस ने बुधवार को भगत
सिंह के शहीदी दिवस पर एक ट्वीट किया। इसमें वीर सावरकर को ‘गद्दार’ और भगत सिंह को ‘शहीद’ बताया गया है। यह
ट्वीट कांग्रेस के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल @INCIndia पर किया गया।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए डॉ0 संतोष राय नें
कहा कि सच्चाई यही है कि विनायक दामोदर
सावरकर नेहरु की आँखों में किसी रेत के कण की तरह चुभते थे ..इसलिए नेहरु के इशारे
पर कांग्रेस उन्हें आज तक बदनाम करती आ रही है । वीर सावरकर विश्व के पहले क्रांतिकारी
और भारत के पहले राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने दो आजन्म कारावास की
सजा सुनाई थी…. सावरकर जी नें दो
जन्म कारावास की सजा सुनते ही हँसकर बोले- “चलो, ईसाई सत्ता ने
हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया। ”इतना ही नहीं उन्हें रोज दस किलो तेल भी निकलना
होता था, बैल की जगह खुद सावरकर अपने हाथो से कोल्हू
चालाकर तेल निकालते थे ।
आगे डॉ0 संतोष नें
बताया कि वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने
वाले संघर्ष को ‘1857 का स्वातंत्र्य
समर’ नामक ग्रन्थ लिखकर
सिद्ध कर दिया…. सावरकर पहले ऐसे
क्रांतिकारी लेखक थे जिनके लिखे ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ पुस्तक पर ब्रिटिश संसद ने प्रकाशित होने से पहले प्रतिबन्ध लगाया था… ‘1857 का स्वातंत्र्य
समर’ विदेशों में छापा
गया और भारत में भगत सिंह ने इसे छपवाया था जिसकी एक एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये
में बिकी थी… भारतीय
क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता थी… पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी…।
अपनी बात में आगे
श्री राय नें कहा कि वीर सावरकर पहले विद्वान लेखक थे जिन्होंने हिन्दू को
परिभाषित करते हुए लिखा कि-
‘आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका.
पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै
हिन्दुरितीस्मृतः.’
अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि
जिसकी पितृभू है जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्य भू है, जिसके तीर्थ भारत
भूमि में ही हैं, वही हिन्दू है..
हिन्दू महासभा के
वरिष्ठ नेता नें कहा कि वीर सावरकर प्रथम राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सत्ता
ने 30 वर्षों तक जेलों
में रखा तथा आजादी के बाद 1948 में नेहरु सरकार
ने गाँधी हत्या की आड़ में लाल किले में बंद रखा पर न्यायालय द्वारा आरोप झूठे पाए
जाने के बाद ससम्मान रिहा कर दिया… देशी-विदेशी दोनों सरकारों को उनके राष्ट्रवादी विचारों से डर लगता था…।
़श्री राय नें अपनी बात आगे बढ़ाते हुए
कहा कि जब वीर सावरकर की धर्मपत्नी बेहद गम्भीर बीमार थी तब उन्होंने पैरोल के लिए
आवेदन दिया .. अंग्रेजी कानून के मुताबिक जब भी कोई सेनानी पेरोल के लिए आवेदन
देता था तो उसे अपने अच्छे चाल-चलन की गारंटी देनी होती थी .. ये प्रथा आज भी है
... लेकिन धूर्त इतिहासकार सिर्फ उनके पेरोल आवेदन को ही दिखाकर कहते है की सावरकर
डर गये थे .. जबकि सच्चाई ये है की जब जेलर ने उन्हें कहा की मजिस्ट्रेट के सामने
यूनियन जैक [अंग्रेजी झंडा] के सामने शपथ लेनी होगी .. तो उन्होंने साफ़ मना कर
दिया और कहा की भले ही मैं अपनी मरती
पत्नी को न देख सकूं ..लेकिन मै अंग्रेजी झंडे की शपथ नही ले सकता | और उन्होंने अपनी
पेरोल का आवेदन वापस ले लिया | इतना ही नहीं वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में
ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफादार होने की शपथ
नही ली… इस कारण उन्हें
बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नही दिया गया…।
गोडसे फिल्म
निर्माता डॉ0 संतोष राय नें कांग्रेस की कड़े शब्दों में भर्त्सना करते हुए कहा
कि जेल में सावरकर ने दिवालों पर नाख़ून और
कोयले से कई किताबे लिखी ..जो देश आजाद होने के बाद छापी गई । सावरकर कांग्रेस की
दृष्टि में इसलिए खलनायक है क्योंकि उन्होंने हिन्दू राष्ट्रवाद को जन्म दिया था
.. जबकि कांग्रेस को मुस्लिम राष्ट्रवाद पसंद था। इतना ही नहीं जब भारत छोड़ो
आन्दोलन अपने चरम पर था, लोग अंग्रेजों के खिलाफ संगठित होकर विद्रोह करने लगे थे .. तब
अचानक गाँधी ने चौरी-चौरा कांड का बहाना बनाकर आन्दोलन को वापस क्यों ले लिया और
तो और नेताजी सुभाषचंद्र बोस नें जब
सशस्त्र हमला किया अंग्रेजों के ऊपर तब गाँधी ने लोगों को नेताजी के आंदोलन में शामिल न होने के लिए
अपील क्यों किया और उस समय नेहरू जी का
वक्तव्य था कि यदि सुभाष चंद बोस यदि भारत की धरती पर कदम रखे तो मैं तलवार लेकर
उन पर सबसे पहले हमला करूँगा ???
आगे कांग्रेस पर डॉ0
राय नें करारा प्रहार करते हुए कहा कि मोहन दास करमचंद गाँधी सरदार भगत सिंह के
परोक्ष रूप से हंता (हत्यारे) थे क्योंकि
अहिंसा नीति के पोषक गाँधी जी नें अमर
हुतात्मा सरदार भगतसिंह के फांसी
वाले मामले पर कहा था, ‘‘हमें ब्रिटेन के
विनाश के बदले अपनी आजादी नहीं चाहिए ’’ और आगे कहा, ‘‘भगतसिंह की पूजा से
देश को बहुत हानि हुई और हो रही है, फाँसी शीघ्र दे दी जाए ताकि 30 मार्च से करांची में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में कोई बाधा न आवे।”
डॉ0 राय नें
मोहनदास करम चंद गाँधी पर मुस्लिम
कट्टरवाद का बढ़ावा देनें का आरोप लगाते हुए कहा कि मोहम्मद अली जिन्ना आदि
राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी ने
खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। वहीं केरल के मोपला में मुसलमानों
द्वारा वहाँ के हिन्दुओं से मारकाट की
जिसमें लगभग 1500 हिन्दू मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गाँधी जी नें इस हिंसा का विरोध नहीं किया वरन् खुदा के
बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया जो अत्यंत निंदनीय कृत्य था ।
इतना ही नहीं देश का बँटवारा कराने वाले को मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की
उपाधि दी।
हिन्दू महासभा के
वरिष्ठ नेता डॉ0 राय नें आगे कहा कि गाँधी नें भारत माता के वीर सपूतों का भी घोर
अपमान किया, उन्होंने अनेंक
अवसरों पर छत्रपति शिवाजी,
महाराणा प्रताप व
गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
फिल्म
निर्माता डॉ0 संतोष राय को देश के विभाजन के लिए प्रमुख रूप से गाँधी को जिम्मेदार बताते हुए कहा कि 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति
की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने
वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था
कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा। फिर भी देश का विभाजन करने वाले को इस देश के वासी राष्ट्रपिता
कहते हैं, इससे बड़ा देश का
दुर्भाग्य क्या हो सकता है ? इतना ही नहीं गाँधी नें गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाने का पूरजोर विरोध किया ।
हिन्दू महासभा के
वरिष्ठ नेता श्री संतोष राय नें गाँधी के अहिंसा को ढोंग बताते हुए कहा कि 1939 के द्वितीय विश्व युद्ध में गाँधी ने
भारतीय सैनिको को ब्रिटेन के लिए हथियार
उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित किया जबकि वो हमेंशा
अहिंसा की पीपनी बजाते रहते थे वहीं गाँधी और नेहरू दोनों पेशे से वकील थे तो क्या
भगत सिंह जी का मुकदमा नहीं लड़ सकते थे । इनकी नजरों में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा
भगत सिंह को फाँसी देना हिंसा नहीं थी ।
डॉ0 राय नें गाँधी
को देश के बँटवारे के लिए जिम्मेदार बताते हुए कहा कि देश को बँटवारे में गाँधी
नें मुस्लिमों को उकसाया । धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत के जरिये गाँधी जी का यही
मुस्लिम तुष्टिकरण देश के विभाजन का भी कारण बना, जब २६ मार्च १९४० को जब मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान
की अवधारणा पर जोर दिया तब गाँधी जी का वक्तव्य था – अन्य नागरिकों की तरह मुस्लिम को भी यह निर्धारण
करने का अधिकार है कि वो अलग रह सके, हम एक संयुक्त परिवार में रह रहे हैं ( हरिजन , ६ अप्रैल १९४० )
इतना ही नहीं अगर इस देश के अधिकांश मुस्लिम यह सोचते हैं कि एक अलग देश जरूरी है
और उनका हिंदुओं से कोई समानता नहीं है तो दुनिया की कोई ताक़त उनके विचार नहीं
बदल सकती और इस कारण वो नए देश की मांग रखते है तो वो मानना चाहिए, हिन्दू इसका विरोध
कर सकते है ( हरिजन , १८ अप्रैल १९४२ )। दूसरे
शब्दों में कहें तो गाँधी जी ने मुसलामानों को पाकिस्तान बनाने के लिए प्रेरित ही
किया। इस घटना के बाद वल्लभ भाई ने भी बंटवारा स्वीकार करने का फैसला किया।
अपनी बात को आगे
बढ़ाते हुए डॉ0 संतोष राय ने कहा कि ये
वीर सावरकर जी ही थे जिन्होंने लन्दन के इण्डिया हाउस में अंग्रेजो के नाक के नीचे
ही सेनानियों को तैयार करते थे .. मदन लाल धिंगरा जैसे शहीदों को उन्होंने ही
तैयार किया था .. लन्दन में जब अंग्रेजो ने उन्हें गिरफ्तार किया तो वे पानी के
जहाज से कूदकर फरार हो गये .. और कई दिनों
तक समुद्र में तैरने के बाद फ्रांस पहुंच गये ।
फिल्म निर्माता
राय नें बताया कि वीर सावरकर माँ भारती के पहले सपूत थे जिन्हें जीते जी और मरने
के बाद भी आगे बढ़ने से रोका जाता रहा …पर आश्चर्य की बात यह है कि इन सभी विरोधियों के घोर अँधेरे प्रतिरोध को चीरकर आज वीर सावरकर के राष्ट्रवादी विचारों का
सूर्य उदय हो रहा है………जिसे
कांग्रेस जैसी देश की गद्दार पार्टी जिसने देश के दो टुकड़े करा दिये, नहीं रोक सकती।
डॉ0 संतोष राय नें
युवाओं का आह्वान करते हुए कहा कि हर युवा को भारत का स्वतंत्रता संग्राम पढ़ना
चाहिए जिससे आपको विश्वास हो जायेगा की नेहरु और गाँधी असल में सेनानी नही बल्कि
अंग्रेजों के दलाल थे .. एक तरफ अंग्रेज
सरकार स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को फाँसी से लेकर कालेपानी की सजा देती थी
..लेकिन इन दोनों दलालों को कभी तीन सालो से ज्यादा जेल में नही रखा .. गाँधी को
तो अंग्रेज जेल में नही बल्कि आलिशान आगा खान के पैलेस में रखते थे ...जहाँ वो
सुरा और सुन्दरी का जमकर मजा ले सकते थे |
अंत में डॉ0 संतोष
राय नें कहा कि जो कुछ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने युग पुरुष वीर सावरकर जी
के बारे में कहा है वह सोनिया गाँधी की अज्ञानता और महामूर्खता को दर्शाता है| मेरी यह भी धारणा बन गई है कि
कांग्रेस में अब कोई स्वाभिमानी व्यक्ति नहीं रह गया है जो ऐसी जाहिल महिला के
नेतृत्व को अस्वीकार करने का साहस दिखा पाए| १९०६-१० के समय में जब वीर
सावरकर लंदन में अपने क्रन्तिकारी विद्यार्थी साथियों के साथ मिलकर हिन्दुस्थान की
स्वतंत्रता के लिए रोजना जलसे – जलूस कर रहे थे उस समय (जवाहर लाल नेहरु) भी वहां पढ़ रहे थे और वह इन
आन्दोलनों से दूर रहकर संभवतः अपनी अंग्रेज आया के आंचल में छुपे रहते थे|
वीर विनायक दामोदर सावरकर के तप, तपष्या और त्याग
के कारण इतने महान, दसियों गाँधी और
जवाहर उन पर कुर्बान किये जाएं तो भी कम पड़ेंगे ।
गाँधी नेहरु की देश को जो देन है वह मुख्यतः यह है
१.
१९४७ में देश विभाजन
२.
कश्मीर समस्या
३.
१९६२ में चीन से लड़ाई में हिन्दुस्थान की पराजय
तभी तो जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने श्री
मोहन दास करमचंद गाँधी को अंग्रेजों का एजेंट कहा है|
महान वीर सावरकर के मुकाबले में गाँधी और
नेहरु का कोई वजूद ही नहीं है|
देश के बँटवारे वाले
प्रमाणपत्र पर हस्ताक्षर नेहरू के थे, सुभाष चंद्र बोस
के जीवन को बर्बाद करने वाले नेहरू थे और चंद्रशेखर आजाद को यदि किसी नें छल से
मरवाया तो वे नेहरू ही थे। इसलिए देश को आजाद देश के क्रांतिकारियों ने करवाया था
न कि अंग्रेज के दो एजेंट गाँधी और नेहरू नें ।
इस मसले पर हिन्दू महासभा किसी भी जाँच के लिए तैयार है । हिंदू महासभा
मांग करती है कि सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद से जुड़ी जितनी फाइलें हैं उसे सार्वजनिक किया जाए ।